दिल्ली जिला जनता पार्टी इकाई के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने अग्रिवेश का ऊपरी खण्ड से जब सारा सामान उनके आवास के बाहर खुले चबूतरे पर फैंका तब अग्रिवेश तथा उनके मुक्ति प्रतिष्ठान की तत्कालीन अध्यक्ष सुमेधा सत्यार्थी और उनके पति कैलाश सत्यार्थी तमाशबीन बन कर सहानुभूति बटोरने में जुटे रहे, जबकि राजस्थान के कार्यकर्ताओं और राजस्थान के प्रवासी मजदूरों ने 7,जंतर-मंतर पर अग्रिवेश के साथ एकजुट होकर ताकत दिखाई थी। शायद समय के साथ अग्रिवेश इन बातों को भूल गये हैं। वैसे भूलना इनकी फिदरत है। अग्रिवेश, श्रीमती सुमेधा सत्यार्थी और कैलाश सत्यार्थी की शायद स्मृति उतनी ही प्रज्वलित रहती है, जितना उनका स्वार्थ होता है। स्वार्थ का ही नतीजा है कि आज सुमेधा सत्यार्थी और कैलाश सत्यार्थी कथित बचपन बचाने के लिये देशी-विदेशी सहायता जुटाने की जुगत बैठाने राजस्थान के अलवर जिले में आश्रम जमाकर बैठे हैं, वहीं अग्रिवेश बंधुआ मुक्ति अभियान से पैसे बटोरने के कार्यक्रम के अलावा बाकी सब कुछ भूल गये लगते हैं।
खैर! मुद्दा है फिलहाल 7, जंतर-मंतर में कब्जा हुए मकानात का! सरदार वल्लभ भाई पटेल ट्रस्ट की इस सम्पत्ति पर अग्रिवेश लगभग 30 सालों से कुंड़ली जमाये बैठे हैं। इनसे और इनके कपिल मुनि और गृहमंत्री पी.चिदम्बरम सहित इनके सभी अमचे-चमचों से पूछा जाये कि वे अग्रिवेश से यह सवाल क्यों नहीं पूछना चाहते हैं कि सरदार वल्लभ भाई पटेल ट्रस्ट की सम्पत्ति जोकि उनके कब्जे में है, उसका किराया क्यों नहीं चुकाना चाहते हैं?
हम अभी यह मुद्दा भी आगे उठायेंगे कि आर्य समाजी सन्यासी का वेश धारण करने वाले अग्रिवेश कितने आर्य समाजी है, कितने समाज सेवी हैं और कितने बड़े सरकारी (नेताओं के) सन्त हैं। दरअसल अब वक्त आ गया है कि खुद अग्रिवेश को अपनी हकीकत अवाम के सामने साफ-साफ पेश कर देनी चाहिये। वहीं अग्रिवेश, श्रीमती सुमेधा सत्यार्थी और कैलाश सत्यार्थी को अवाम को साफ-साफ बताना होगा कि बंधुआ मुक्ति अभियान की आड़ में बंधुआ मुक्ति मोर्चा और बचबन बचाओ की नौटंकी के पेटे कितनी देशी/विदेशी सहायता इन लोगों ने बटोरी है और उसका आय-व्यय का हिसाब भी अब अवाम को बताना ही होगा। क्रमश:
अग्रिवेश और उनके सहयोगियों के अतीत के कुछ अनछुए पहलू-2
स्वामी अग्रिवेश कितने चर्चित हैं, हम बतायेंगे कुछ उनके अनछुए पहलू। लेकिन इससे पहिले हम बतादें कि स्वामी अग्रिवेश जब हरियाणा में शिक्षामंत्री रहे तब भी इतने चर्चित नहीं रहे। लेकिन वर्ष 1984 में जब अग्रिवेश ने बंधुआ मुक्ति अभियान चलाया तब से वे चर्चा में आये। हरियाणा में शिक्षामंत्री की कुर्सी पर रहते हुए उन्होंने क्या किया, यह तो अग्रिवेश ही बता सकेंगे, लेकिन हम अग्रिवेश के 7, जतंर-मंतर स्थित विवादास्पद आवास के मुद्दे से शुरू करें तो, तब वक्त था जनता पार्टी के अध्यक्ष चंद्र शेखर का! चंद्रशेखर जी के सामने स्वामी अग्रिवेश ने जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा था और फिर हारे भी। कितने मतों के अंतर से हारे, यह भी अग्रिवेश बता सकते हैं। लेकिन प्रचार पाने के चक्कर में चुनावों में हारे अग्रिवेश का सामना जनता पार्टी की दिल्ली इकाई के पदाधिकारियों से हो गया और उन्होंने उन का सामान ऊपरी मंजिल के उस कमरे में से निकाल फैंका था, जिसके लिये जनता पार्टी के नेताओं का दावा था कि वह उनके आधीन था और उन्होंने ही अग्रिवेश को उपयोग में लेने के लिये दिया था, जिसे उन्होंने वापस ले लिया है।
अपने मंत्रियों-संत्रियों की करो ढिबरी टाइट, हुजूर!
प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को सत्तासीन हुए दो साल पूरे हो चुके हैं। हमने पिछले 25 नवम्बर, 2010 को 'किसको फांसी मिलनी चाहिये गहलोत साहब शीर्षक से सम्पादकीय में विस्तृत टिप्पणी की थी। हम पुन: उसे यहां नीचे उद्रित कर रहे हैं।प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ग्राम गंगातीकलां (दूदू तहसील) में अपने प्रवास के दौरान कहा बताया जाता है कि मिलावट कर लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ करने वालों को फांसी की सजा मिलनी चाहिये। उन्होंने बिजली कम्पनियों का इलाज करने, अधिकारियों पर जुर्माना करने और तबादलों को रूल्स ऑफ बिजनेस में शामिल करने की बात भी कही बताई। अशोक गहलोत ने ग्राम गंगातीकलां में जो कुछ कहा बताया जाता है, उस पर वे खुद, उनके आधीन मंत्रियों की भीड़ और अधिकारियों की फौज क्यों अमल नहीं करना चाहते हैं? प्रदेश में अशोक गहलोत सरकार बने लगभग दो साल होने को आये। लेकिन एक भी मिलावटिये, जमाखोर, रिश्वतखोर को सजा नहीं मिली। मिलावट के हजारों सैम्पल पूरे प्रदेश में लिये गये, फांसी की सजा की तो बात ही छोड़ दें, मुख्यमंत्री जी यह तो बता दें कि मिलावट के मामलों में कुल कितने चालान अदालतों में पेश हुए और उनके निस्तारण की क्या स्थिति है?राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को यह समझ लेना चाहिये कि राजनीति से प्रेरित भाषणबाजी एक बात है और प्रशासनिक कुशलता दूसरी बात! मुख्यमंत्री पानी पी-पी कर पिछली सरकार को कोसते रहे, उनके घपलों-घोटालों को ढूंढ़ते रहे, लेकिन गुड गवर्नेस की बात करने वाले गहलोत साहब अपने लगभग दो साल के शासनकाल में राजस्थान की जनता को क्या दे पाये, यह तो वे खुद ही बता सकते हैं। दीपावली के बाद से ही प्रदेश में प्रशासन गांव के संग कार्यक्रम जोरशोर से चलाया जा रहा है। सरकारी अफसर और कारिंदे जुटे हैं ग्रामीण कैम्पों में। तहसील मुख्यालय के कस्बों, शहरों से लेकर जिला एवं प्रदेश के सारे शहरी इलाकों में प्रशासन गायब है, प्रशासनिक कामकाज लगभग ठप्प है। तहसीलदार, हो या उपखण्ड अधिकारी एवं उच्च अधिकारी सभी ने गांवों की ओर रूख कर रखा है। उनके अपने मुख्यालय पर रोजमर्रा के सारे कामकाज ठप्प पड़े हैं। हमारे प्रदेश के मुख्यमंत्री जी ने यह सोचने की जहमत भी नहीं उठाई कि 60 प्रतिशत लोगों को फायदा पहुंचाने की लालीपापनुमा सनक ने बाकी 40 प्रतिशत आबादी के रोजमार्रा के कामकाज को ठप्प कर दिया है। जिस 60 प्रतिशत ग्रामीण आबादी को फायदा पहुंचाने की बात की जा रही है, अब तक के आंकड़े बताते हैं कि साठ प्रतिशत गरीबों में से 20 प्रतिशत को भी फायदा पहुंचने की कोई स्थिति सरकारी अमला पैदा ही नहीं कर पाया है। चूरू जिले को ही लेें। गांवों में कैम्पों में डॉक्टरों की व्यस्तता और प्रशासनिक पकड़ ढीली होने के कारण सरदारशहर, रतनगढ़, पडिहारा, सादुलपुर के अस्पतालों में व्यवस्था बद्हाल हो गई है। इन अस्पतालों में डॉक्टरों के अभाव में मरीजों के बुरे हाल हैं और कोई सुनने वाला नहीं है। सरदारशहर में तो बद्हाली की इन्तेहा ही हो गई और लेडी डॉक्टर, सीएमएचओ व अस्पताल प्रशासन की लापरवाही का खमियाजा एक नवजात को अपनी जान देकर चुकाना पड़ा। अब जिले के सीएमएचओ मामले को रफादफा करने में लगे हैं। आज स्थिति यह है कि प्रदेश की सकल आमदनी से ज्यादा तो सरकारी अमले के वेतन भत्तों पर ही खर्च हो जाता है और सरकार वेतन भत्तों के चुकारे के लिये भी उधार लेती है, फिर सिर्फ राजनैतिक फायदा उठाने के लिये शहर से गांव और गांव से शहर आने-जाने के भत्तों को चुकाने का बोझ गहलोत सरकार आखिर क्यों आम अवाम के मत्थे मंढ़ रही है? गहलोत मंत्रीमंडल के एक सदस्य खाद्यमंत्री बाबूलाल नागर ने शुद्ध के लिये युद्ध कार्यक्रम चलाया था। सफलता के बड़े-बड़े दावे किये गये थे, लेकिन एक भी मिलावटिये को वे सजा नहीं दिला पाये। शिक्षामंत्री मास्टर भंवरलाल मेघवाल ने समानीकरण की तोप चला कर पता नहीं कौन-सा तीर मारा, लेकिन आज भी 8 हजार से ज्यादा शिक्षक डेप्यूटेशन पर जमे बैठे मलाई चाट रहे हैं। सभी सिफारिशिये हैं। शिक्षामंत्री की हैसियत भी नहीं है, उन पर हाथ डालने की। पहिले सिंचाई विभाग और पुलिस विभाग को भ्रष्टाचार के खूंटे माना जाता था, लेकिन इस गहलोत सरकार में शिक्षा विभाग भ्रष्टाचार का प्रमुख अड्डा बन गया है। स्वायत्त शासन विभाग और उसके आधीन स्थानीय निकायों का भगवान मालिक है। वन एवं पर्यावरण विभाग में तो काम ही हरे वृक्षों की कटाई और संरक्षित पशु-पक्षिओं की आबादी घटाने का बचा है, क्योंकि वेतन भत्ते उठाने के बाद इस विभाग के कर्मचारियों को अपने परिवार के लिये लक्जरी सामान खरीदने हेतु ऊपर की कमाई जो चाहिये।पूरा प्रदेश नकारा, निकम्मे, भ्रष्ट सरकारी अमले से भरा है, मिलावटिये, जमाखोर, कालाबाजारिये गांव-गांव तक मिलेंगे! किस-किस को फांसी दिलवायेंगे मुख्यमंत्री जी? कहना आसान है, भाषण झाडऩा आसान है, सक्षमता से प्रशासनिक कामकाज निपटाना दूसरी बात है। आज हमारे मुख्यमंत्री की यह हिम्मत भी नहीं है कि अपने आधीन भ्रष्ट मंत्रियों, प्रशसनिक अधिकारियों पर सक्षमता से कार्यवाही कर सकें। क्या हमारे मुख्यमंत्री जी में हिम्मत है, प्रशासन में घुन की तरह घुसे-जमे बैठे भ्रष्ट, नाकारा, निकम्मे लोगों को बाहर निकाल फैंकने की? फांसी की बात तो बहुत दूर की कौड़ी है। यह हिम्मत तो कोई स्टालिन-जार्ज वाशिंगटन ही कर सकता है, जो राजस्थान में तो अभी तक पैदा हुआ नहीं है!शोर शराबा करना आसान है, प्रशासन सम्भालना मुश्किल। ढिबरी टाइट करना है तो मुख्यमंत्री जी अपने मंत्रियों-संत्रियों की करो ढिबरी टाइट, हुजूर! OBJECT WEEKLY
राज्यपाल का अभिभाषण और उसके मायने
गत सोमवार को राज्य विधानसभा का बजट सत्र प्रारम्भ हुआ। विपक्षी सदस्यों की मामूली टोका-टाकी के अलावा विपक्षी सदस्यों ने राज्यपाल के एक घंटा 25 मिनट चले अभिभाषण में कोई व्यवधान नहीं डाला। यही नहीं विपक्ष ने इसके बाद चली विधानसभा की कार्यवाही में भी व्यवधान नहीं डाला। इसे विपक्ष के सकारात्मक रूख की तरह देखा जा रहा है। राज्यपाल के अभिभाषण में कुछ मुद्दे शामिल किये गये हैं जैसे कि-राज्य में कानून व्यवस्था सामान्य,वन विभाग में 30 हजार दावों का निस्तारण, जयपुर एवं जोधपुर में कमिश्नर प्रणाली लागू की गई, अल्पसंख्यक छात्रों के कल्याण पर 7 करोड़ 30 लाख व्यय, भूमि संबधी मामलों के लिए जेडीए में थाना गठित, शिक्षा विभाग में 50 हजार शिक्षकों की भर्ती की योजना, गुर्जर आंदोलन का शांतिपूर्ण निपटारा, ई-गर्वनेंस से सूचना गांव-गांव तक पहुंची, पेयजल के लिए 12 हजार करोड़ की योजनाएं बनीं, 22 परियोजनाओं पर काम पूरा, जल नीति के बेहतर क्रियान्वयन के प्रयास, मार्च 2012 तक 50 हजार हेक्टेयर में फव्वारा पद्धति से सिचाई का लक्ष्य, प्रशासन गांवों के संग अभियान का सफल संचालन, पंचायतीराज संस्थाओं की मजबूती के लिए जिला कलक्टरों को शक्तियां, निशक्तजनों को प्रमाण पत्र व पंजीकरण नि:शुल्क वितरण, देवनारायण योजना का प्रभावी क्रियान्वयन, 27 विकासखंडों में 5700 करोड़ की योजनाएं प्रारंभ, कच्चे तेल की खोज के रूप में राज्य को अनोखी उपलब्घि, 36.57 लाख परिवारों को दो रूपए प्रति किग्रा की दर से अनाज देना, महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को 413 करोड़ का ऋण उपलब्ध कराना, बालिका शिक्षा प्रोत्साहन के लिए 51 हजार लड़कियों को साइकिल वितरण, औद्योगिक एवं निवेश नीति 2010 के तहत उद्योगों को बढ़ावा, भिवाड़ी में राज्य का पहला कार उत्पादन कारखाना, शहरी इंफ्रास्ट्रक्चर पर 597 करोड़ खर्च, एकल खिड़की योजना लागू करने से निवेश को मिला बढ़ावा, सामाजिक सुरक्षा के लिए पेंशन में वृद्घि।लेकिन राज्यपाल का अभिभाषण राज्य के अवाम की नजरों में निराशाजनक ही रहा। अभिभाषण में सरकार की जो उपलब्धियां गिनाई गई वह तो प्रशासन के औसत दर्जे का कामकाज है। खास बात है कि पिछले दो बजटों में की गई घोषणाओं और प्रावधानों को आज तक पूरा नहीं किया गया है। नतीजन अवाम परेशान है। पिछले दो सालों में प्रदेश में एक भी नई नियुक्ति नहीं की गई। नतीजन शिक्षा, चिकित्सा, स्थानीय निकाय विभागों से जुड़ी सेवाओं के हाल बद्हाल हैं। कानून और व्यवस्था की स्थिति चरमरा गई है। राज्य में कृषि नीति नहीं होने और औद्योगिकरण से किसान बर्बाद हो रहे हैं। नरेगा में भ्रष्टाचार अपने चरम की ओर जा रहा है। बिजली-पानी सेवायें भ्रष्टाचार की भेंट पहिले ही चढ़ चुकी हैं। मंहगाई, बेरोजगारी, जमाखोरी, कालाबाजारी और मुनाफाखोरी के मुद्दों पर राज्यपाल ने अपने अभिभाषण में एक शब्द भी नहीं बोला। नतीजन आम अवाम में जन आक्रोश पनपना स्वभाविक ही होगा।प्रदेश में राज्यपाल प्रदेश की सरकार का मुखिया होते हैं। जब प्रदेश का मुखिया ही अपने अवाम की पीड़ा में भागीदार नहीं होगा और उसके दु:खदर्दों पर अपने अभिभाषण के जरिये महरम नहीं लगायेगा तो प्रदेश के मुखिया के अभिभाषण का अवाम के सामने क्या महत्व रह जाता है!अब राज्यपाल के अभिभाषण पर तीन दिन बहस चलेगी। पक्ष-विपक्ष अपने तीर चलायेंगे, लेकिन अवाम की पीड़ा के मुद्दे ही जब अभिभाषण में नहीं हैं तो अवाम के लिये अभिभाषण पर बहस और धन्यवाद पारित करने की रस्म मात्र औपचारिकता बनने के अलावा क्या होगी? OBJECT WEEKLY
अनैतिक दुस्साहस और समाज
जयपुर में सरे आम दो छात्राओं पर तेजाब फैकने की घटना ने फिर एक बार मानवीय संवेदनाओं को झकझोर कर रख दिया है। जिस युवक ने यह अमानवीय कृत्य किया वह इन दो युवतियों में से एक से शादी करना चाहता था, लेकिन युवती ने इंकार कर दिया।इस घटना से एक बात पुन: स्पष्ट हो गई है कि हमारे पारिवारिक और सामाजिक सरोकारों में गहरी गिरावट आ गई है। युवक एवं युवती में परिचय था। यह परिचय विवाह के प्रस्ताव तक पहुंच गया और दोनों ही के परिवार इससे अनभिज्ञ रहे! ऐसा यदि हुआ है तो यह अत्यन्त चिंता का विषय है। युवकों-युवतियों में परिचय-मेलजोल होता है और उनके विभिन्न कारण भी होते हैं, लेकिन इनकी जानकारी परिजनों को नहीं होना एक गम्भीर स्थिति है। किसी भी स्कूल कॉलेज के आसपास का जायजा लें तो काफी तादाद में युवा एक दूसरे से गपशप करते मिलेंगे। शहर में ऐसे कई झौंपड़ी रेस्टोरेंट हैं जहां लड़के और लड़कियां स्कूलों-कॉलेजों से गैर हाजिर होकर एकांत मिलन में व्यस्त नजर आयेंगे। कुछ दुस्साहसी पुलिस अधिकारियों ने ऐसे जोडों को पकड़ा भी और युवतियों को चेतावनी देकर उनके अभिभावकों को सौंपा भी। लेकिन समस्या वहीं की वहीं है। स्कूल-कॉलेज में सख्ती होती है तो युवाओं के मां-बाप शिक्षण संस्था प्रशासन पर राशन लेकर चढ़ जाते हैं। स्कूल-कॉलेजों में युवाओं की उपस्थिति का आंकड़ा निचले स्तर तक गिरता जा रहा है। परिवारों में ज्यादा लाड़-प्यार के कारण युवा अपनी मर्यादा से बाहर जाकर आचरण करने लगे हैं। नतीजन पारिवारिक अनुशासन की कडी कमजोर होते ही युवा स्वच्छन्द हो जाते हैं और धीरे-धीरे अपनी सीमा लांध कर परिवार और समाज के लिये समस्या के रूपमें सामने खड़े हो जाते हैं। जैसा कि इस मामले में भी हुआ।आज की परिस्थितियों का अगर गहराई से मूल्यांकन करें तो साफ हो जायेगा कि हमारा सामाजिक तानाबाना पूरी तरह चरमरा गया है। समाज से लेकर परिवार तक हमारे नैतिक आचरण में अत्याधिक गिरावट आ गई है। हर एक व्यक्ति धन कमाने के लिये वह सब कुछ करने के लिये तैयार है, जिन्हें आज से 25 साल पहिले तक दुराचरण माना जाता था। सामाजिक संस्थाएं धन्नासेठों, नवधनाढ्यों और उनके चमचों-दुमछल्लों की जागीर बन गई है। इसही तरह समाज से जुड़ी गैर सरकारी शिक्षण संस्थाएं भी पूंजीपतियों की जागीर बन चुकी है। ये पूंजीपति, धनाढ्य, नवधनाढ्य अपने आधीन संस्थाओं में अपने दुमछल्लों-नौकरों के माध्यम से अपना राज चलाते हैं। संस्थाओं पर कब्जा करने के लिये और फिर उसे कायम रखने के लिये अनैतिक कृत्य करना तो शायद उनका जन्म सिद्ध अधिकार बन गया है। नतीजन समाज और सामाजिक संस्थाओं का सामाजिक स्वरूप खत्म हो कर ये सेठों की प्राइवेट जागीर बनते जा रहे हैं। इनके निकृष्ट स्वरूप का असर परिवारों और परिवार के सदस्यों पर पड़ता है और पूरे समाज में अराजकता का माहौल बन जाता है। नतीजे सामने हैं! जब जमीन और खाद्य बीज ही जहरीले होंगे तो परिणाम मीठे कैसे हो सकते हैं?वक्त है समाज के प्रमुखों को सोचने समझने का कि सामाजिक-पारिवारिक अनुशासन को किस तरह पुर्नस्थापित किया जाये, ताकि आनेवाली पीढ़ी अनुशासनहीनता को त्याग कर अनुशासित हो और देश के कल्याण में अपना योगदान दें। OBJECT WEEKLY
मंहगाई पर केंद्र व राज्य सरकारों की नूरा-कुश्ती
पिछले दिनों केंद्रीय मंत्रियों की प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह की सदारत में मंहगाई से अवाम को निजात दिलाने के उपायों पर चर्चा हुई। प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह ने इन बैठकों में कहा बताते हैं कि गरीबों की आमदनी बढऩे के कारण खर्च बढ़े, नतीजन मंहगाई बढ़ी। जब उनके ये विचार मीडिया के जरिये अवाम के सामने उजागर हुए तो अवाम में सरकार के खिलाफ नाराजगी बढ़ गई।सवाल यह उठा कि गरीब के पास पैसा आया कहां से? उसके आय के स्त्रोत् तो जग जाहिर हैं। सिर्फ गरीब ही नहीं, मध्यम वर्ग और निम्र मध्यम वर्ग के तो पूरी तरह से हाल बेहाल हैं। इन वर्गों की हालत इसलिये भी पतली है कि वे इज्जत बचाने के लिये अपना दुखड़ा किसी के सामने रो भी नहीं सकते हैं। देश में प्याज की कमी से अवाम परेशान है। खाद्यमंत्री शरद पंवार का कहना है कि प्याज की फसल चौपट होने के कारण प्याज बाजार से गायब हो गया। पंवार साहब के इस बयान ने अवाम के जले पर नमक छिड़क दिया है। जब पंवार साहब की जानकारी में था कि प्याज की फसल चौपट हो रही है, तो फिर उन्होंने प्याज के निर्यात को क्यों क्लीन चिट दी? बिना रोक-टोक के गत दिसम्बर, 2010 तक थोक में प्याय का निर्यात होता रहा और हमारे खाद्यमंत्री शरद पंवार खूंटी तान कर सोते रहे। आखीर क्यों?पिछले हफ्ते ही मंहगाई पर प्रधानमंत्री द्वारा बुलाई गई बैठक में शरद पंवार और प्रणब मुकर्जी में चीनी के निर्यात को लेकर तनातनी हो गई। दादा तो बैठक से भी उठ कर चले गये। जबकि शरद पंवार का कहना था कि चीनी वर्ष अक्टूबर, 2010 से सितम्बर, 2011 में चीनी का उत्पादन 245 लाख टन ही होने की आशंका है और खपत रहेगी 250 लाख टन। ऐसे में जबकि घरेलू मांग के लिये चीनी की कमी महसूस की जा रही है, व्यापारियों को फायदा पहुंचाने के लिये शरद पंवार 5 लाख टन चीनी के निर्यात करने पर अड़े हुए हैं। उधर नये साल में चीनी पर 65 प्रतिशत आयात शुल्क भी थोप दिया गया है। नतीजन खुले बाजार में चीनी मंहगी हो गई, लेकिन पंवार साहब को इसकी कोई चिंता नहीं है। क्योंकि यह सिरदर्द तो जनता का है कि वह चीनी खाये या न खाये। पंवार साहब को तो चिंता मुनाफाखोरों की सेहत चुस्त दुरूस्त रखने की है, क्योंकि उनसे ही तो पंवार साहब को मोटा चंदा मिलता है।देश में मंहगाई की मार से हाहाकार कर रही जनता को मंहगाई से बचाने के लिये केंंद्र और राज्य सरकारें अपने-अपने दावपेच खेल रही है। केंद्र सरकार मंहगाई रोकने की जुम्मेदारी राज्य सरकारों पर डाल रही है, वहीं राज्य सरकारें पैट्रोलियम पदार्थों की कीमतें बढ़ाने, बेतरतीब निर्यात करने और खाद्य जिंसों के वायदा बाजार को रोकने में असफल केंद्र सरकार को कोस रही है। राज्य सरकारों और केंद्र सरकार की इस नूरा-कुश्ती के चलते आम अवाम को मंहगाई से निजात नहीं मिल पा रही है। कागजों में पिछले दो सालों से देश में मंहगाई पर नियन्त्रण के लिये लफ्फाजी के उपायों का एजेंडा बनाया जाता रहा है! राजनैतिक लफ्फाजी एवं केंद्र व राज्य सरकारों की लापरवाही के कारण जमाखोरों, कालाबाजारियों और मुनाफाखोरों के खिलाफ किसी भी स्तर पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं की जा रही है। जमाखोरों, कालाबाजारियों व मुनाफाखोरों के खिलाफ कार्यवाही की जुम्मेदारी केंद्र और राज्य सरकारें एक दूसरे पर डाल कर अपने दायित्वों की इतिश्री कर रहे हैं और इन देश के दुश्मनों के हौंसले बुलंद हैं। राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की कांग्रेसी सरकार ने बड़े जोरशोर से शुद्ध के लिये युद्ध चलाया था, जो आखीरकार आंकड़ों के मायाजाल में उलझ कर दम तोड़ गया। लेकिन पिछले दो सालों में सुशासन का दावा करने वाली अशोक गहलोत सरकार ने जमाखोरों, कालाबाजारियों और मुनाफोखोरों के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाया। राज्य में आम उपभोक्ता वस्तुओं के जखीरे भरे हैं। अलवर प्याज प्रकरण हो या जयपुर के गोदामों में अग्रिकांड प्रकरण। सब ही यह साफ-साफ दर्शाते हैं कि राज्य के भण्डारगृहों में करोड़ों रूपये की जिंसों की जमाखोरी की गई है और जब बाजार में उनकी कमी होती है तब उन्हें ऊंचे दामों पर बेचा जाता है।राज्य के अशोक गहलोत मंत्रिमण्डल के सदस्यों सहित सरकारी हुक्कामों की जानकारी में होते हुए भी जमाखोरों-कालाबाजारियों, मुनाफाखोरों के खिलाफ कार्यवाही की हिम्मत किसी में नहीं है क्योंकि इन ही से तो नेता और हुक्काम मोटा चंदा/रिश्वत लेते हैं।अब आगे केंद्रीय वित्तमंत्री प्रणब मुकर्जी की राज्य के वित्त मंत्रियों के साथ मंहगाई पर लगाम लगाने के लिये होने वाली बैठक से ही साफ होगा कि मंहगाई पर अंकुश लगाने में कौन इच्छुक है और कौन अडंगा लगा रहा है। OBJECT WEEKLY
