पिछले दिनों केंद्रीय मंत्रियों की प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह की सदारत में मंहगाई से अवाम को निजात दिलाने के उपायों पर चर्चा हुई। प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह ने इन बैठकों में कहा बताते हैं कि गरीबों की आमदनी बढऩे के कारण खर्च बढ़े, नतीजन मंहगाई बढ़ी। जब उनके ये विचार मीडिया के जरिये अवाम के सामने उजागर हुए तो अवाम में सरकार के खिलाफ नाराजगी बढ़ गई।सवाल यह उठा कि गरीब के पास पैसा आया कहां से? उसके आय के स्त्रोत् तो जग जाहिर हैं। सिर्फ गरीब ही नहीं, मध्यम वर्ग और निम्र मध्यम वर्ग के तो पूरी तरह से हाल बेहाल हैं। इन वर्गों की हालत इसलिये भी पतली है कि वे इज्जत बचाने के लिये अपना दुखड़ा किसी के सामने रो भी नहीं सकते हैं। देश में प्याज की कमी से अवाम परेशान है। खाद्यमंत्री शरद पंवार का कहना है कि प्याज की फसल चौपट होने के कारण प्याज बाजार से गायब हो गया। पंवार साहब के इस बयान ने अवाम के जले पर नमक छिड़क दिया है। जब पंवार साहब की जानकारी में था कि प्याज की फसल चौपट हो रही है, तो फिर उन्होंने प्याज के निर्यात को क्यों क्लीन चिट दी? बिना रोक-टोक के गत दिसम्बर, 2010 तक थोक में प्याय का निर्यात होता रहा और हमारे खाद्यमंत्री शरद पंवार खूंटी तान कर सोते रहे। आखीर क्यों?पिछले हफ्ते ही मंहगाई पर प्रधानमंत्री द्वारा बुलाई गई बैठक में शरद पंवार और प्रणब मुकर्जी में चीनी के निर्यात को लेकर तनातनी हो गई। दादा तो बैठक से भी उठ कर चले गये। जबकि शरद पंवार का कहना था कि चीनी वर्ष अक्टूबर, 2010 से सितम्बर, 2011 में चीनी का उत्पादन 245 लाख टन ही होने की आशंका है और खपत रहेगी 250 लाख टन। ऐसे में जबकि घरेलू मांग के लिये चीनी की कमी महसूस की जा रही है, व्यापारियों को फायदा पहुंचाने के लिये शरद पंवार 5 लाख टन चीनी के निर्यात करने पर अड़े हुए हैं। उधर नये साल में चीनी पर 65 प्रतिशत आयात शुल्क भी थोप दिया गया है। नतीजन खुले बाजार में चीनी मंहगी हो गई, लेकिन पंवार साहब को इसकी कोई चिंता नहीं है। क्योंकि यह सिरदर्द तो जनता का है कि वह चीनी खाये या न खाये। पंवार साहब को तो चिंता मुनाफाखोरों की सेहत चुस्त दुरूस्त रखने की है, क्योंकि उनसे ही तो पंवार साहब को मोटा चंदा मिलता है।देश में मंहगाई की मार से हाहाकार कर रही जनता को मंहगाई से बचाने के लिये केंंद्र और राज्य सरकारें अपने-अपने दावपेच खेल रही है। केंद्र सरकार मंहगाई रोकने की जुम्मेदारी राज्य सरकारों पर डाल रही है, वहीं राज्य सरकारें पैट्रोलियम पदार्थों की कीमतें बढ़ाने, बेतरतीब निर्यात करने और खाद्य जिंसों के वायदा बाजार को रोकने में असफल केंद्र सरकार को कोस रही है। राज्य सरकारों और केंद्र सरकार की इस नूरा-कुश्ती के चलते आम अवाम को मंहगाई से निजात नहीं मिल पा रही है। कागजों में पिछले दो सालों से देश में मंहगाई पर नियन्त्रण के लिये लफ्फाजी के उपायों का एजेंडा बनाया जाता रहा है! राजनैतिक लफ्फाजी एवं केंद्र व राज्य सरकारों की लापरवाही के कारण जमाखोरों, कालाबाजारियों और मुनाफाखोरों के खिलाफ किसी भी स्तर पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं की जा रही है। जमाखोरों, कालाबाजारियों व मुनाफाखोरों के खिलाफ कार्यवाही की जुम्मेदारी केंद्र और राज्य सरकारें एक दूसरे पर डाल कर अपने दायित्वों की इतिश्री कर रहे हैं और इन देश के दुश्मनों के हौंसले बुलंद हैं। राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की कांग्रेसी सरकार ने बड़े जोरशोर से शुद्ध के लिये युद्ध चलाया था, जो आखीरकार आंकड़ों के मायाजाल में उलझ कर दम तोड़ गया। लेकिन पिछले दो सालों में सुशासन का दावा करने वाली अशोक गहलोत सरकार ने जमाखोरों, कालाबाजारियों और मुनाफोखोरों के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाया। राज्य में आम उपभोक्ता वस्तुओं के जखीरे भरे हैं। अलवर प्याज प्रकरण हो या जयपुर के गोदामों में अग्रिकांड प्रकरण। सब ही यह साफ-साफ दर्शाते हैं कि राज्य के भण्डारगृहों में करोड़ों रूपये की जिंसों की जमाखोरी की गई है और जब बाजार में उनकी कमी होती है तब उन्हें ऊंचे दामों पर बेचा जाता है।राज्य के अशोक गहलोत मंत्रिमण्डल के सदस्यों सहित सरकारी हुक्कामों की जानकारी में होते हुए भी जमाखोरों-कालाबाजारियों, मुनाफाखोरों के खिलाफ कार्यवाही की हिम्मत किसी में नहीं है क्योंकि इन ही से तो नेता और हुक्काम मोटा चंदा/रिश्वत लेते हैं।अब आगे केंद्रीय वित्तमंत्री प्रणब मुकर्जी की राज्य के वित्त मंत्रियों के साथ मंहगाई पर लगाम लगाने के लिये होने वाली बैठक से ही साफ होगा कि मंहगाई पर अंकुश लगाने में कौन इच्छुक है और कौन अडंगा लगा रहा है। OBJECT WEEKLY
