देश में मंहगाई पर गहरी राजनैतिक चकल्लस चल रही है। प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह और उनक मंत्रीमण्डल के सिपहसालारों ने साफ-साफ जता दिया है कि बढ़ी मंहगाई पर नियन्त्रण मुश्किल है। प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह और उनके मंत्रीमण्डल के साथियों ने पहिले तो प्राकृतिक आपदा को मंहगाई के लिये दोषी ठहराया और फिर गरीब अवाम की आमदनी बढऩे के कारण बढ़े खर्चों को मंहगाई के लिये जुम्मेदार ठहराया। दरअसल अर्थशास्त्री और देश के प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह का अर्थशास्त्र अब अनर्थ शास्त्र बनता चला जा रहा है। ऐसा महसूस होने लगा है कि डॉ.मनमोहन सिंह की शायद अपने देश भारत से कहीं ज्यादा अमरीका के प्रति प्रतिबद्धता है। आज देश की जो आर्थिक परिस्थितियां बनती जा रही है, वे साफ-साफ संकेत दे रही है कि जब तक रूपये का स्थिर मूल्य निर्धारित नहीं होगा, तब तक मंहगाई बेलगाम बढ़ती जायेगी। ऑब्जेक्ट के इन ही कालमों में हमने लिखा था कि भारतीय रूपये का अघोषित अवमूल्यन हो चुका है। देश के प्रबुद्ध अर्थशास्त्री भारतीय रूपये के अवमूल्यन पर मौन साधे हुए हैं, क्या उन्हें सांप सूंघ गया है, जो रूपये के अवमूल्यन पर उनकी जबान नहीं खुल रही है!अर्थशास्त्र का सीधा-सीधा फार्मूला है कि जब मुद्रा मजबूत होती है तब मुद्रा की छोटी इकाइयां ज्यादा क्रियाशील होती है। भारतीय मुद्रा रूपया अमरीकन डॉलर के मुकाबले अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मजबूत है। अगर आंकड़ों में भारतीय रूपये को डॉलर के मुकाबले मात्र फुलाया जा रहा है तो यह अत्यन्त गम्भीर मसला है। यदि वास्तव में रूपया डॉलर के मुकाबले मजबूत है तो देश के अंदर रूपये की हालत पतली क्यों है? यह गम्भीर चिंतन का विषय है। देश की आंतरिक अर्थव्यवस्था में रूपये की छोटी इकाइयां जैसे कि एक पैसा, दो पैसा, पांच पैसा, दस पैसा, बीस पैसा और पच्चीस पैसे की इकाइयां (सिक्के) चलन से बाहर हो चुके हैं। यदि रूपया मजबूत होता तो एक पैसे से पच्चीस पैसे तक के सिक्के स्थिर रूपसे चलन में होते। उन्हें चलन से बाहर करने की जरूरत नहीं होती वही नये बड़े नोटों का प्रचलन भी सीमित रहता। लेकिन अब तो खुद केंद्र सरकार ने पच्चीस पैसे तक के सिक्कों को भी वैधानिक रूपसे चलन के बाहर कर दिया है। पचास पैसे का सिक्का भी लगभग चलन से बाहर हो चुका है। एक भिखारी भी पचास पैसे का सिक्का लेने से कतराता है। इससे साफ जाहिर हो जाता है कि रूपये की क्रय शक्ति लगभग खत्म हो चुकी है और वास्तव में रूपये का शत् प्रतिशत अवमूल्यन हो चुका है। जब देश में रूपये की हालत गम्भीर रूपसे पतली है, जो ऐसी स्थिति में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में डॉलर के मुकाबले रूपये के मजबूत होने की बात बेतुकी और बेमानी है। विश्व में ऐसी कोई मुद्रा नहीं है जिसके दो रूप हों। अपने देश में कुछ ओर और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कुछ ओर, जैसा कि भारतीय मुद्र के हाल हैं। पिछले दिनों देश में पैट्रोल की कीमतों में इजाफा हुआ। बताया गया कि क्रूड ऑयल की कीमतें अंतर्राष्ट्रीय बाजार में 92 से 98 डॉलर हो गई है। हमारे देश के कर्णधारों को अपनी याददाश्त दुरूस्त कर लेनी चाहिये कि पिछले सालों जब कच्चे तेल की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कीमत 123 डॉलर से ऊपर निकल गई थी, तब देश में पैट्रोललियम पदार्थों की कीमतें बढ़ाई गई थी। आज तो अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत सौ डॉलर से भी कम है, ऐसी स्थिति में कच्चा तेल मंहगा होने की बात भी बेमानी एवं हास्यास्पद है। एक बात साफ है कि जब भारतीय रूपया डॉलर के मुकाबले मजबूत है तो इसका विपरीत प्रभाव निर्यात और आयात पर पड़ता है। आयात मंहगा और निर्यात घाटे का सौदा! लेकिन सत्ता में बैठे देश के कर्णधार सत्ताशीन खाद्यान्न वस्तुओं का बेतरतीब तरीके से पहिले निर्यात करते हैं और नतीजन खाद्यान्नों की देश में उपलब्धता कम हो जाती है और जिन्सें मंहगी हो जाती है। फिर अचानक आयात शुरू होता है और जब तक आयातीत माल आता है मंहगाई बादस्तुर चालू रहती है। वहीं आयात पर सब्सीडी के नाम पर करोड़ों का घोटाला होता है। मरती कुल मिला कर गरीब जनता है!चीन पर भी दबाव डाला गया था और डाला जा रहा है कि वह अपनी मुद्र को डॉलर के मुकाबले मजबूत करे ताकि अमरीका की अर्थव्यवस्था को सम्बल मिल सके जैसा कि भारत के रूपये को डॉलर के मुकाबले मजबूत रख कर अमरीकी अर्थव्यवस्था को सम्बल दिया जा रहा है। लेकिन चीन ने अमरीका और भारत के इस दबाव को मानने से इंकार कर दिया है। यूरोपियन अर्थव्यवस्था ने तो डॉलर से पहिले ही किनारा कर लिया था।अब हमारे देश की अर्थव्यवस्था की पीठ पर चढ़ कर अमरीकी अर्थव्यवस्था को ठोस सम्बल मिल रहा है, वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे चरमरा रही है और कब तड़कने की स्थिति में आ जाये कुछ कहा नहीं जा सकता है! ऐसी स्थिति में रूपये की वैल्यू का सही मूल्यांकन कर तत्काल अवमूल्यन कर रूपये की स्थिर वैल्यू निर्धारित तत्काल की जानी चाहिये। हो सकता है कि रूपये के अवमूल्यन से तत्काल मंहगाई बढे, लेकिन यह मंहगाई बढऩे का क्षणिक उबाल होगा और लम्बे अंतराल में मंहगाई धीरे-धीरे कम होकर मूल्य स्थिर हो जायेंगे। OBJECT WEEKLY
