नागौर के जिला कलक्टर डॉ.समित शर्मा के तबदले को लेकर जिले के वाशिंदे आंदोलित हैं। चित्तौडग़ढ़ में कांग्रेशियों की छिछली राजनीति के शिकार डॉ.समित शर्मा का तबादला जब नागौर में जिला कलक्टर के पद पर हुआ तब चित्तौडग़ढ में भी अवाम सड़कों पर आ गया था। अब जब वे नागौर में भी कांग्रेसियों को हजम नहीं हुए तो उनका तबादला राज्य के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग में कर दिया गया। लेकिन अब नागौर के वाशिंदे हड़ताल-धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं।उधर कोटा में जिला परिषद् के कार्यकारी अधिकारी पी.रमेश छुट्टी पर हैं। उनकी पीड़ा थी कि उनसे जूनियर कोटा में जिला कलक्टर हैं। अब सरकार ने कोटा में राजस्थान प्रशासनिक सेवा के अधिकारी को जिला कलक्टर लगा दिया है, जबकि पी.रमेश आईएएस हैं और पहिले झालावाड़ में जिला कलक्टर रह चुके हैं। सवाल इन दो अफसरों की नियुक्ति या तबादले का नहीं है। नियुक्ति एवं तबादले राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार की बात है। इसे चुनौती देना ही बेमानी है। लेकिन राज्य सरकार के स्तर से अफसरों की नियुक्ति का प्रोटोकॉल भी है। किसी वरिष्ठ अधिकारी को उससे जूनियर के आधीन लगाना या फिर एक कर्तव्यनिष्ठ अफसर को बेवजह राजनैतिक आधार पर इधर से उधर करना सरकारी नियुक्तियों के प्रोटोकॉल के खिलाफ है। सिर्फ ये दो उदाहरण ही सरकार की तबादला नीति की बखिया नहीं उधेड़ रहे हैं। राज्य में ऐसे कई ईमानदार-निष्ठावान आईएएस और आरएएस अधिकारी हैं, जो कांग्रेस-भाजपा की राजनैतिक उठापटक के शिकार हो कर सरकारी बर्फ में लगे हैं और वर्तमान सत्तारूढ दल और मुख्यमंत्री की नजर में वे पूर्व मुख्यमंत्री के विश्वास पात्र रहे नजर आते हैं। ऐसा नहीं है कि वर्तमान सत्तारूढ दल या उनके मुख्यमंत्री का ही सोच ऐसा हो। जब-जब सरकारें बदलती हैं, सत्ता में आनेवाला दल और उनके मुख्यमंत्री इस ही तरह का व्यवहार करते हैं। कांग्रेस-भाजपा की लठ्ठमलठ्ठा से परेशान कई प्रतिभावान अफसर केंद्र में जाने की जुगत बैठाते रहते हैं या बर्फ में लगे जस तस दिन बिताने की जुगत बैठाते रहते हैं। इस तरह की राजनेतओं की हरकतों से प्रदेश के प्रशासनिक अमले में मौजूद ईमानदार एवं कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी न्यूट्रल हो कर जो हुक्म की लीक पर चला जाता है। वहीं सिफारिशी भ्रष्ट एवं निक्कमे अफसरों को राजनीतिज्ञों की शह मिलने से प्रशासन में निकम्मापन, भ्रष्टाचार और अनुशासनहीनता को प्रश्रय मिलता है। राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को इस गम्भीर समस्या पर निश्चित रूप से चिंतन करना चाहिये कि राज्य के निष्ठावान अफसर निष्क्रिय हो कर न बैठें। अफसरों की नियुक्तियों और तबादलों की स्पष्ट आचार संहिता बननी चाहिये और अफसरों की जनकल्याण कार्यों में लिप्तता एवं जनता को सुशासन देने की उनकी प्रतिबद्धता को ही उनकी योग्यता का प्रमाण माना जाना चाहिये।मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का भी तो सुशासन देने का ही नारा है। OBJECT WEEKLY
