जयपुर में सरे आम दो छात्राओं पर तेजाब फैकने की घटना ने फिर एक बार मानवीय संवेदनाओं को झकझोर कर रख दिया है। जिस युवक ने यह अमानवीय कृत्य किया वह इन दो युवतियों में से एक से शादी करना चाहता था, लेकिन युवती ने इंकार कर दिया।इस घटना से एक बात पुन: स्पष्ट हो गई है कि हमारे पारिवारिक और सामाजिक सरोकारों में गहरी गिरावट आ गई है। युवक एवं युवती में परिचय था। यह परिचय विवाह के प्रस्ताव तक पहुंच गया और दोनों ही के परिवार इससे अनभिज्ञ रहे! ऐसा यदि हुआ है तो यह अत्यन्त चिंता का विषय है। युवकों-युवतियों में परिचय-मेलजोल होता है और उनके विभिन्न कारण भी होते हैं, लेकिन इनकी जानकारी परिजनों को नहीं होना एक गम्भीर स्थिति है। किसी भी स्कूल कॉलेज के आसपास का जायजा लें तो काफी तादाद में युवा एक दूसरे से गपशप करते मिलेंगे। शहर में ऐसे कई झौंपड़ी रेस्टोरेंट हैं जहां लड़के और लड़कियां स्कूलों-कॉलेजों से गैर हाजिर होकर एकांत मिलन में व्यस्त नजर आयेंगे। कुछ दुस्साहसी पुलिस अधिकारियों ने ऐसे जोडों को पकड़ा भी और युवतियों को चेतावनी देकर उनके अभिभावकों को सौंपा भी। लेकिन समस्या वहीं की वहीं है। स्कूल-कॉलेज में सख्ती होती है तो युवाओं के मां-बाप शिक्षण संस्था प्रशासन पर राशन लेकर चढ़ जाते हैं। स्कूल-कॉलेजों में युवाओं की उपस्थिति का आंकड़ा निचले स्तर तक गिरता जा रहा है। परिवारों में ज्यादा लाड़-प्यार के कारण युवा अपनी मर्यादा से बाहर जाकर आचरण करने लगे हैं। नतीजन पारिवारिक अनुशासन की कडी कमजोर होते ही युवा स्वच्छन्द हो जाते हैं और धीरे-धीरे अपनी सीमा लांध कर परिवार और समाज के लिये समस्या के रूपमें सामने खड़े हो जाते हैं। जैसा कि इस मामले में भी हुआ।आज की परिस्थितियों का अगर गहराई से मूल्यांकन करें तो साफ हो जायेगा कि हमारा सामाजिक तानाबाना पूरी तरह चरमरा गया है। समाज से लेकर परिवार तक हमारे नैतिक आचरण में अत्याधिक गिरावट आ गई है। हर एक व्यक्ति धन कमाने के लिये वह सब कुछ करने के लिये तैयार है, जिन्हें आज से 25 साल पहिले तक दुराचरण माना जाता था। सामाजिक संस्थाएं धन्नासेठों, नवधनाढ्यों और उनके चमचों-दुमछल्लों की जागीर बन गई है। इसही तरह समाज से जुड़ी गैर सरकारी शिक्षण संस्थाएं भी पूंजीपतियों की जागीर बन चुकी है। ये पूंजीपति, धनाढ्य, नवधनाढ्य अपने आधीन संस्थाओं में अपने दुमछल्लों-नौकरों के माध्यम से अपना राज चलाते हैं। संस्थाओं पर कब्जा करने के लिये और फिर उसे कायम रखने के लिये अनैतिक कृत्य करना तो शायद उनका जन्म सिद्ध अधिकार बन गया है। नतीजन समाज और सामाजिक संस्थाओं का सामाजिक स्वरूप खत्म हो कर ये सेठों की प्राइवेट जागीर बनते जा रहे हैं। इनके निकृष्ट स्वरूप का असर परिवारों और परिवार के सदस्यों पर पड़ता है और पूरे समाज में अराजकता का माहौल बन जाता है। नतीजे सामने हैं! जब जमीन और खाद्य बीज ही जहरीले होंगे तो परिणाम मीठे कैसे हो सकते हैं?वक्त है समाज के प्रमुखों को सोचने समझने का कि सामाजिक-पारिवारिक अनुशासन को किस तरह पुर्नस्थापित किया जाये, ताकि आनेवाली पीढ़ी अनुशासनहीनता को त्याग कर अनुशासित हो और देश के कल्याण में अपना योगदान दें। OBJECT WEEKLY
