समस्या के समाधान का सर्वश्रेष्ठ उपाय यही है !समस्या की श्रृखला में एक नई समस्या जोड़ दो !जनता का ध्यान पुरानी समस्या से हटा उस ओर मोड दो !जो यथार्थ का प्रतिबिंब दे उस शीशे को फोड़ दो !आचार्य महाप्रज्ञ

कुछ सारहीन बेगारों को, श्रमदान नहीं कहते ! बंजर भूमि देने को, भूदान नहीं कहते ! कुछ जोड़-तोड़ करने को, निर्माण नहीं कहते ! उठ-उठ कर गिर पड़ने को, उत्थान नहीं कहते ! दो-चार कदम चलने को, अभियान नहीं कहते ! सागर में तिरते तिनके को, जलयान नहीं कहते ! हर पढ़-लिख जाने वाले को, विद्धान नहीं कहते ! एक नजर मिल जाने को, पहचान नहीं कहते ! चिकनी-चुपडी बातों को, गुणगान नहीं कहते ! मंदिर में हर पत्थर को, भगवान नहीं कहते। --मुनि तरूणसागर
समाज तो सामायिक है,क्षणभंगुर है !रोज बदलता रहता है,आज कुछ-कल कुछ !भीड भेड है!

सदगुरू, तुम्हें भीड से मुक्त कराता है !सदगुरू, तुम्हें समाज से पार लेजाता है !सदगुरु तुम्हें शाश्वत के साथ जोड़ता है !
--रजनीश

अपने मंत्रियों-संत्रियों की करो ढिबरी टाइट, हुजूर!

प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को सत्तासीन हुए दो साल पूरे हो चुके हैं। हमने पिछले 25 नवम्बर, 2010 को 'किसको फांसी मिलनी चाहिये गहलोत साहब शीर्षक से सम्पादकीय में विस्तृत टिप्पणी की थी। हम पुन: उसे यहां नीचे उद्रित कर रहे हैं।प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ग्राम गंगातीकलां (दूदू तहसील) में अपने प्रवास के दौरान कहा बताया जाता है कि मिलावट कर लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ करने वालों को फांसी की सजा मिलनी चाहिये। उन्होंने बिजली कम्पनियों का इलाज करने, अधिकारियों पर जुर्माना करने और तबादलों को रूल्स ऑफ बिजनेस में शामिल करने की बात भी कही बताई। अशोक गहलोत ने ग्राम गंगातीकलां में जो कुछ कहा बताया जाता है, उस पर वे खुद, उनके आधीन मंत्रियों की भीड़ और अधिकारियों की फौज क्यों अमल नहीं करना चाहते हैं? प्रदेश में अशोक गहलोत सरकार बने लगभग दो साल होने को आये। लेकिन एक भी मिलावटिये, जमाखोर, रिश्वतखोर को सजा नहीं मिली। मिलावट के हजारों सैम्पल पूरे प्रदेश में लिये गये, फांसी की सजा की तो बात ही छोड़ दें, मुख्यमंत्री जी यह तो बता दें कि मिलावट के मामलों में कुल कितने चालान अदालतों में पेश हुए और उनके निस्तारण की क्या स्थिति है?राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को यह समझ लेना चाहिये कि राजनीति से प्रेरित भाषणबाजी एक बात है और प्रशासनिक कुशलता दूसरी बात! मुख्यमंत्री पानी पी-पी कर पिछली सरकार को कोसते रहे, उनके घपलों-घोटालों को ढूंढ़ते रहे, लेकिन गुड गवर्नेस की बात करने वाले गहलोत साहब अपने लगभग दो साल के शासनकाल में राजस्थान की जनता को क्या दे पाये, यह तो वे खुद ही बता सकते हैं। दीपावली के बाद से ही प्रदेश में प्रशासन गांव के संग कार्यक्रम जोरशोर से चलाया जा रहा है। सरकारी अफसर और कारिंदे जुटे हैं ग्रामीण कैम्पों में। तहसील मुख्यालय के कस्बों, शहरों से लेकर जिला एवं प्रदेश के सारे शहरी इलाकों में प्रशासन गायब है, प्रशासनिक कामकाज लगभग ठप्प है। तहसीलदार, हो या उपखण्ड अधिकारी एवं उच्च अधिकारी सभी ने गांवों की ओर रूख कर रखा है। उनके अपने मुख्यालय पर रोजमर्रा के सारे कामकाज ठप्प पड़े हैं। हमारे प्रदेश के मुख्यमंत्री जी ने यह सोचने की जहमत भी नहीं उठाई कि 60 प्रतिशत लोगों को फायदा पहुंचाने की लालीपापनुमा सनक ने बाकी 40 प्रतिशत आबादी के रोजमार्रा के कामकाज को ठप्प कर दिया है। जिस 60 प्रतिशत ग्रामीण आबादी को फायदा पहुंचाने की बात की जा रही है, अब तक के आंकड़े बताते हैं कि साठ प्रतिशत गरीबों में से 20 प्रतिशत को भी फायदा पहुंचने की कोई स्थिति सरकारी अमला पैदा ही नहीं कर पाया है। चूरू जिले को ही लेें। गांवों में कैम्पों में डॉक्टरों की व्यस्तता और प्रशासनिक पकड़ ढीली होने के कारण सरदारशहर, रतनगढ़, पडिहारा, सादुलपुर के अस्पतालों में व्यवस्था बद्हाल हो गई है। इन अस्पतालों में डॉक्टरों के अभाव में मरीजों के बुरे हाल हैं और कोई सुनने वाला नहीं है। सरदारशहर में तो बद्हाली की इन्तेहा ही हो गई और लेडी डॉक्टर, सीएमएचओ व अस्पताल प्रशासन की लापरवाही का खमियाजा एक नवजात को अपनी जान देकर चुकाना पड़ा। अब जिले के सीएमएचओ मामले को रफादफा करने में लगे हैं। आज स्थिति यह है कि प्रदेश की सकल आमदनी से ज्यादा तो सरकारी अमले के वेतन भत्तों पर ही खर्च हो जाता है और सरकार वेतन भत्तों के चुकारे के लिये भी उधार लेती है, फिर सिर्फ राजनैतिक फायदा उठाने के लिये शहर से गांव और गांव से शहर आने-जाने के भत्तों को चुकाने का बोझ गहलोत सरकार आखिर क्यों आम अवाम के मत्थे मंढ़ रही है? गहलोत मंत्रीमंडल के एक सदस्य खाद्यमंत्री बाबूलाल नागर ने शुद्ध के लिये युद्ध कार्यक्रम चलाया था। सफलता के बड़े-बड़े दावे किये गये थे, लेकिन एक भी मिलावटिये को वे सजा नहीं दिला पाये। शिक्षामंत्री मास्टर भंवरलाल मेघवाल ने समानीकरण की तोप चला कर पता नहीं कौन-सा तीर मारा, लेकिन आज भी 8 हजार से ज्यादा शिक्षक डेप्यूटेशन पर जमे बैठे मलाई चाट रहे हैं। सभी सिफारिशिये हैं। शिक्षामंत्री की हैसियत भी नहीं है, उन पर हाथ डालने की। पहिले सिंचाई विभाग और पुलिस विभाग को भ्रष्टाचार के खूंटे माना जाता था, लेकिन इस गहलोत सरकार में शिक्षा विभाग भ्रष्टाचार का प्रमुख अड्डा बन गया है। स्वायत्त शासन विभाग और उसके आधीन स्थानीय निकायों का भगवान मालिक है। वन एवं पर्यावरण विभाग में तो काम ही हरे वृक्षों की कटाई और संरक्षित पशु-पक्षिओं की आबादी घटाने का बचा है, क्योंकि वेतन भत्ते उठाने के बाद इस विभाग के कर्मचारियों को अपने परिवार के लिये लक्जरी सामान खरीदने हेतु ऊपर की कमाई जो चाहिये।पूरा प्रदेश नकारा, निकम्मे, भ्रष्ट सरकारी अमले से भरा है, मिलावटिये, जमाखोर, कालाबाजारिये गांव-गांव तक मिलेंगे! किस-किस को फांसी दिलवायेंगे मुख्यमंत्री जी? कहना आसान है, भाषण झाडऩा आसान है, सक्षमता से प्रशासनिक कामकाज निपटाना दूसरी बात है। आज हमारे मुख्यमंत्री की यह हिम्मत भी नहीं है कि अपने आधीन भ्रष्ट मंत्रियों, प्रशसनिक अधिकारियों पर सक्षमता से कार्यवाही कर सकें। क्या हमारे मुख्यमंत्री जी में हिम्मत है, प्रशासन में घुन की तरह घुसे-जमे बैठे भ्रष्ट, नाकारा, निकम्मे लोगों को बाहर निकाल फैंकने की? फांसी की बात तो बहुत दूर की कौड़ी है। यह हिम्मत तो कोई स्टालिन-जार्ज वाशिंगटन ही कर सकता है, जो राजस्थान में तो अभी तक पैदा हुआ नहीं है!शोर शराबा करना आसान है, प्रशासन सम्भालना मुश्किल। ढिबरी टाइट करना है तो मुख्यमंत्री जी अपने मंत्रियों-संत्रियों की करो ढिबरी टाइट, हुजूर! OBJECT WEEKLY