समस्या के समाधान का सर्वश्रेष्ठ उपाय यही है !समस्या की श्रृखला में एक नई समस्या जोड़ दो !जनता का ध्यान पुरानी समस्या से हटा उस ओर मोड दो !जो यथार्थ का प्रतिबिंब दे उस शीशे को फोड़ दो !आचार्य महाप्रज्ञ

कुछ सारहीन बेगारों को, श्रमदान नहीं कहते ! बंजर भूमि देने को, भूदान नहीं कहते ! कुछ जोड़-तोड़ करने को, निर्माण नहीं कहते ! उठ-उठ कर गिर पड़ने को, उत्थान नहीं कहते ! दो-चार कदम चलने को, अभियान नहीं कहते ! सागर में तिरते तिनके को, जलयान नहीं कहते ! हर पढ़-लिख जाने वाले को, विद्धान नहीं कहते ! एक नजर मिल जाने को, पहचान नहीं कहते ! चिकनी-चुपडी बातों को, गुणगान नहीं कहते ! मंदिर में हर पत्थर को, भगवान नहीं कहते। --मुनि तरूणसागर
समाज तो सामायिक है,क्षणभंगुर है !रोज बदलता रहता है,आज कुछ-कल कुछ !भीड भेड है!

सदगुरू, तुम्हें भीड से मुक्त कराता है !सदगुरू, तुम्हें समाज से पार लेजाता है !सदगुरु तुम्हें शाश्वत के साथ जोड़ता है !
--रजनीश

अग्रिवेश और उनके सहयोगियों के अतीत के कुछ अनछुए पहलू-2

स्वामी अग्रिवेश कितने चर्चित हैं, हम बतायेंगे कुछ उनके अनछुए पहलू। लेकिन इससे पहिले हम बतादें कि स्वामी अग्रिवेश जब हरियाणा में शिक्षामंत्री रहे तब भी इतने चर्चित नहीं रहे। लेकिन वर्ष 1984 में जब अग्रिवेश ने बंधुआ मुक्ति अभियान चलाया तब से वे चर्चा में आये। हरियाणा में शिक्षामंत्री की कुर्सी पर रहते हुए उन्होंने क्या किया, यह तो अग्रिवेश ही बता सकेंगे, लेकिन हम अग्रिवेश के 7, जतंर-मंतर स्थित विवादास्पद आवास के मुद्दे से शुरू करें तो, तब वक्त था जनता पार्टी के अध्यक्ष चंद्र शेखर का! चंद्रशेखर जी के सामने स्वामी अग्रिवेश ने जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा था और फिर हारे भी। कितने मतों के अंतर से हारे, यह भी अग्रिवेश बता सकते हैं। लेकिन प्रचार पाने के चक्कर में चुनावों में हारे अग्रिवेश का सामना जनता पार्टी की दिल्ली इकाई के पदाधिकारियों से हो गया और उन्होंने उन का सामान ऊपरी मंजिल के उस कमरे में से निकाल फैंका था, जिसके लिये जनता पार्टी के नेताओं का दावा था कि वह उनके आधीन था और उन्होंने ही अग्रिवेश को उपयोग में लेने के लिये दिया था, जिसे उन्होंने वापस ले लिया है।

दिल्ली जिला जनता पार्टी इकाई के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने अग्रिवेश का ऊपरी खण्ड से जब सारा सामान उनके आवास के बाहर खुले चबूतरे पर फैंका तब अग्रिवेश तथा उनके मुक्ति प्रतिष्ठान की तत्कालीन अध्यक्ष सुमेधा सत्यार्थी और उनके पति कैलाश सत्यार्थी तमाशबीन बन कर सहानुभूति बटोरने में जुटे रहे, जबकि राजस्थान के कार्यकर्ताओं और राजस्थान के प्रवासी मजदूरों ने 7,जंतर-मंतर पर अग्रिवेश के साथ एकजुट होकर ताकत दिखाई थी। शायद समय के साथ अग्रिवेश इन बातों को भूल गये हैं। वैसे भूलना इनकी फिदरत है। अग्रिवेश, श्रीमती सुमेधा सत्यार्थी और कैलाश सत्यार्थी की शायद स्मृति उतनी ही प्रज्वलित रहती है, जितना उनका स्वार्थ होता है। स्वार्थ का ही नतीजा है कि आज सुमेधा सत्यार्थी और कैलाश सत्यार्थी कथित बचपन बचाने के लिये देशी-विदेशी सहायता जुटाने की जुगत बैठाने राजस्थान के अलवर जिले में आश्रम जमाकर बैठे हैं, वहीं अग्रिवेश बंधुआ मुक्ति अभियान से पैसे बटोरने के कार्यक्रम के अलावा बाकी सब कुछ भूल गये लगते हैं।
खैर! मुद्दा है फिलहाल 7, जंतर-मंतर में कब्जा हुए मकानात का! सरदार वल्लभ भाई पटेल ट्रस्ट की इस सम्पत्ति पर अग्रिवेश लगभग 30 सालों से कुंड़ली जमाये बैठे हैं। इनसे और इनके कपिल मुनि और गृहमंत्री पी.चिदम्बरम सहित इनके सभी अमचे-चमचों से पूछा जाये कि वे अग्रिवेश से यह सवाल क्यों नहीं पूछना चाहते हैं कि सरदार वल्लभ भाई पटेल ट्रस्ट की सम्पत्ति जोकि उनके कब्जे में है, उसका किराया क्यों नहीं चुकाना चाहते हैं?
हम अभी यह मुद्दा भी आगे उठायेंगे कि आर्य समाजी सन्यासी का वेश धारण करने वाले अग्रिवेश कितने आर्य समाजी है, कितने समाज सेवी हैं और कितने बड़े सरकारी (नेताओं के) सन्त हैं। दरअसल अब वक्त आ गया है कि खुद अग्रिवेश को अपनी हकीकत अवाम के सामने साफ-साफ पेश कर देनी चाहिये। वहीं अग्रिवेश, श्रीमती सुमेधा सत्यार्थी और कैलाश सत्यार्थी को अवाम को साफ-साफ बताना होगा कि बंधुआ मुक्ति अभियान की आड़ में बंधुआ मुक्ति मोर्चा और बचबन बचाओ की नौटंकी के पेटे कितनी देशी/विदेशी सहायता इन लोगों ने बटोरी है और उसका आय-व्यय का हिसाब भी अब अवाम को बताना ही होगा। क्रमश: