आखीर गुर्जर आंदोलन राजनेताओं की राजनीति में अटक ही गया। पिछड़ा वर्ग और विशेष पिछड़ा वर्ग की नौटंकी ने गूर्जरों को कहीं का नहीं छोड़ा। अनुसूचित जनजाति, फिर विशेष पिछड़ा वर्ग और अब पिछड़ा वर्ग में पांच प्रतिशत आरक्षण की बैंसला की मांग ने कुल मिला कर गुर्जरों को ही नुकसान पहुंचाया है। यह बात तो साफ है कि गुर्जरों में शैक्षिक पिछड़ापन अन्य आरक्षित समुदायों से ज्यादा है और यही कारण है कि गुर्जर सरकारी नौकरियां प्राप्त करने में पिछड़ रहे हैं। लेकिन यह भी आइने की तरह साफ है कि गुर्जर समाज आर्थिक रूप से पिछड़ा नहीं है। मृत्यु भोज, शादी-व्याह में जिस तरह से धन पानी की तरह बहाया जाता है और अभी भी गुर्जर आंदोलन में धन जिस तरह से फंूका जा रहा है, ऐसी स्थिति में यह बात गले उतरने वाली नहीं है कि गुर्जर आर्थिक रूप से पिछड़े हैं। दूसरी बात जो महत्वपूर्ण है, वह है गुर्जर आरक्षण पर राजनीति! यह स्पष्ट है कि गुर्जर आरक्षण का मामला भाजपा के समय में ही अटक गया था। श्रीमती वसुन्धरा राजे सरकार ने विशेष पिछड़ा वर्ग के लिये पांच प्रतिशत आरक्षण और सामान्य वर्ग के गरीबों के लिये 14 प्रतिशत आरक्षण की खिचडी इस तरह पकवाई कि आज उसमें कानूनों के इतने कंकड़ अटक गये हैं कि खिचड़ी को न तो खाते बन रहा है और न ही उसे फैंकी जा सकती है। भाजपा और कांग्रेस गुर्जर आरक्षण मुद्दे पर एक दूसरे को शह और मात देने के रास्ते पर चल रहे हैं वहीं आरक्षित समुदाय अपने हिस्से में से धेला भी गुर्जर समुदाय को देने के लिये तैयार नहीं है। आज हालात ये हैं कि देश के समाजवादी, निरपेक्ष गणतान्त्रिक स्वरूप को आरक्षण ने जातियों-समुदायों में बांट दिया है। आरक्षण का प्रावधान मूलरूप से आजादी के बाद संविधान के निर्माण से अगले दस सालों के लिये इसलिये किया गया था कि आरक्षित समुदायों का आर्थिक-शैक्षिक उत्थान हो और वे देश में अन्य समुदायों की बराबरी कर सके। इस प्रावधान को देश की बागड़ोर सम्भालने वाली सरकारें हर दसवें साल अपने राजनैतिक फायदों के लिये बढ़ाती रही है और आज आरक्षण की आग बुरी तरह देश को जकड़े हुए है!ऐसा नहीं है कि आरक्षित समुदायों को आरक्षण का फायदा न मिला हो। आरक्षित समुदायों ने आरक्षण का भरपूर फायदा उठाया है नतीजन आरक्षित समुदायों में भी दो वर्ग बन गये हैं। पहले वर्ग ने आरक्षण का जम कर फायदा उठाया और आज वह आर्थिक, शैक्षिक, राजनैतिक एवं सामाजिक रूप से सामान्य वर्ग से भी कहीं आगे निकल गया है वहीं दूसरा वर्ग अपने ही समुदाय के पहिले वर्ग की गैरजुम्मेदारान स्वार्थी हरकतों के कारण आर्थिक रूप से पिछड़ा है। होना यह चाहिये कि जो आरक्षित वर्ग संविधान की आरक्षण की भावना के अनुरूप लाभान्वित हो चुका है (क्रीमीलेयर) उसे तत्काल प्रभाव से आरक्षण का फायदा मिलना बंद हो जाना चाहिये और उनके स्थान पर अन्य पिछड़े पीडि़त शोषित वर्गों को उसका फायदा मिलना चाहिये। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। जो लोग आरक्षण का फायदा उठा कर हर तरह से सम्पन्न हो गये हैं, वे आरक्षण को अब अपनी बपौती समझने लगे हैं और किसी भी कीमत पर आरक्षण लाभ को छोडऩा नहीं चाहते हैं। उधर अनारक्षित सम्पन्न वर्ग भी उनकी देखा-देखी आरक्षण का लाभ किसी भी कीमत पर उठाने की तैयारी में है। आरक्षित एवं अनारक्षित सम्पन्न वर्गों की इस लड़ाई में इन वर्गों के सम्पन्न लोग अपने समुदाय के पीडि़त शोषितों को साथ लेकर मोर्चेबंदी कर रहे हैं, ताकि उन्हें ज्यादा से ज्यादा फायदा मिल सके। लेकिन एक बात साफ है कि इन समाजों के पीडि़त शोषित तकबे को कुछ भी हांसिल होने वाला नहीं है। क्योंकि उनका हक तो जाति के नाम पर उन ही के समाज के सम्पन्न लोग उठा लेंगे और वे दूर खड़े तमाशबीनों की तरह तमाशा देखेंगे अपनी बरबादी का! हकीकत में अब जाति समुदाय के आधार पर आरक्षण व्यवस्था समाप्त हो जानी चाहिये और ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिये कि आरक्षण केवल समाज के निम्र एवं निम्रतम वर्ग को ही मिले जो आर्थिक एवं शैक्षिक स्तर पर पूरी तरह पिछड़ा हो और उन लोगों को आरक्षण परिधि से निकाला जाना चाहिये, जो आरक्षण का लाभ उठा कर सर्वसम्पन्न हो गये हैं। OBJECT WEEKLY
