समस्या के समाधान का सर्वश्रेष्ठ उपाय यही है !समस्या की श्रृखला में एक नई समस्या जोड़ दो !जनता का ध्यान पुरानी समस्या से हटा उस ओर मोड दो !जो यथार्थ का प्रतिबिंब दे उस शीशे को फोड़ दो !आचार्य महाप्रज्ञ

कुछ सारहीन बेगारों को, श्रमदान नहीं कहते ! बंजर भूमि देने को, भूदान नहीं कहते ! कुछ जोड़-तोड़ करने को, निर्माण नहीं कहते ! उठ-उठ कर गिर पड़ने को, उत्थान नहीं कहते ! दो-चार कदम चलने को, अभियान नहीं कहते ! सागर में तिरते तिनके को, जलयान नहीं कहते ! हर पढ़-लिख जाने वाले को, विद्धान नहीं कहते ! एक नजर मिल जाने को, पहचान नहीं कहते ! चिकनी-चुपडी बातों को, गुणगान नहीं कहते ! मंदिर में हर पत्थर को, भगवान नहीं कहते। --मुनि तरूणसागर
समाज तो सामायिक है,क्षणभंगुर है !रोज बदलता रहता है,आज कुछ-कल कुछ !भीड भेड है!

सदगुरू, तुम्हें भीड से मुक्त कराता है !सदगुरू, तुम्हें समाज से पार लेजाता है !सदगुरु तुम्हें शाश्वत के साथ जोड़ता है !
--रजनीश

गुर्जर आंदोलन-दोनों पक्ष गम्भीरता से निर्णय लें!

गुर्जर आंदोलन के लिये तैयारियां जोरों पर हैं। गुर्जर अपनी मांग मनवाने के लिये ताकत का प्रदर्शन करेंगे वहीं सरकार कानून एवं व्यवस्था की स्थिति कायम रखने की आड़ में अपनी ताकत का प्रदर्शन करेगी। मुसीबत होगी आम अवाम की। जिसका इन सब से कोई लेना देना नहीं होगा। गुर्जर ट्रेन रोकेंगे। रेल यात्रियों की क्या गलती है, जो उन्हें यात्रा करने से गुर्जर रोकेंगे? रेल यात्रियों का गुर्जर आंदोलन से दूर तक का वास्ता नहीं है, लेकिन राज्य सरकार, केंद्र सरकार और गुर्जर नेताओं की हटधर्मिता के कारण बेकसूर रेल यात्रियों को खमियाजा भुगतना पड़ेगा!दरअसल गुर्जर समस्या का समाधान आसानी से, बिना संघर्ष, आंदोलनों के हो सकता है, लेकिन कोई करना ही नहीं चाहता है! पचास प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण पर अदालती रोक है। 6 मई, 2010 को गुर्जर नेताओं और राज्य सरकार ने एक प्रतिशत आरक्षण देने और बाकी के लिये मिलकर अदालत में पैरवी करने की मामले में सहमति जताई थी। अवाम यह जानना चाहता है कि इस मुद्दे पर आगे कार्यवाही क्या हुई, बताये सरकार और गुर्जर नेता?गुर्जर आंदोलनों से जुड़े मामलों पर कार्यवाही कर उन्हें तीन महिनों में निपटाया जाना था, लेकिन उस पर क्या कार्यवाही हुई, यह राज्य सरकार को बताना है। आंदोलन में मारे गये लोगों के आश्रितों को सहायता, गम्भीर घायलों-अपंगों को पेंशन, आर्थिक मदद देने, जप्त शुदा लाइसेंसी हथियार गुर्जरों को लौटाने, लाइसेंस नवीनीकरण करने के मामलों में सरकार ने क्या किया? यह भी सरकार को ही बताना होगा।एक कदम आगे, इस सारे प्रकरण में जो गुर्जरों की खास एक मांग है, वह यही है कि उन्हें पांच प्रतिशत आरक्षण दिया जाये। इस पांच प्रतिशत आरक्षण में गुर्जरों के साथ रेबारी, नायक आदि शामिल हैं। चूंकि इस पांच प्रतिशत आरक्षण से कुल आरक्षण 54 प्रतिशत हो जाता है। नतीजन हाईकोर्ट के 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण पर रोक लगा दी है और मामला हाईकोर्ट में लम्बित है। सवाल उठता है कि इस पांच प्रतिशत आरक्षण को आपरेशल करने के लिये क्या किया जाना चाहिये और या किया जा सकता है? वर्तमान स्थिति में एक प्रतिशत आरक्षण सरकार दे सकती है और 4 प्रतिशत पर अदालती रोक है। ऐसी स्थिति में सरकार की यह जुम्मेदारी बनती ही है कि वह समझौते के अनुरूप गुर्जरों, रेबारियों, नायकों आदि को एक प्रतिशत आरक्षण मुहैय्या करवायें और चूंकि चार प्रतिशत न्यायपालिका के निर्णय के आधीन होने के कारण मामले की न्यायपालिका में पैरवी करें। सरकार समस्या के त्वरित तात्कालिक समाधान के लिये कुल भर्तियों का चार प्रतिशत न्यायपालिका का फैसला आने तक फ्रिज कर दे और जो फैसला न्यायपालिका दे, उसके अनुरूप उन पर भर्ती सुनिश्चित करे। गुर्जर नेताओं से 6 मई, 2010 को हुए समझौते में वर्णित अन्य बातें राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार की हैं और उन पर उसे त्वरित फैसले लेने से किसी ने रोका भी नहीं है! अत: गुर्जर नेताओं की मांगों, जिन पर समझौता हो चुका है पर कार्यवाही व फैसले नहीं लेना सरकार की गैर जुम्मेदाराना सोच है। या तो समझौता मत करो और अगर किया है, तो उसे निभाओ! यह बात दोनों पक्षों पर लागू होती है।ऐसी स्थिति में दोनों ही पक्षों को गम्भीरता से अवाम की परेशानियां और तकलीफों को ध्यान में रखते हुए और स्थिति की गम्भीरता को समझते हुए फैसले लेने होंगे! OBJECT WEEKLY