समस्या के समाधान का सर्वश्रेष्ठ उपाय यही है !समस्या की श्रृखला में एक नई समस्या जोड़ दो !जनता का ध्यान पुरानी समस्या से हटा उस ओर मोड दो !जो यथार्थ का प्रतिबिंब दे उस शीशे को फोड़ दो !आचार्य महाप्रज्ञ

कुछ सारहीन बेगारों को, श्रमदान नहीं कहते ! बंजर भूमि देने को, भूदान नहीं कहते ! कुछ जोड़-तोड़ करने को, निर्माण नहीं कहते ! उठ-उठ कर गिर पड़ने को, उत्थान नहीं कहते ! दो-चार कदम चलने को, अभियान नहीं कहते ! सागर में तिरते तिनके को, जलयान नहीं कहते ! हर पढ़-लिख जाने वाले को, विद्धान नहीं कहते ! एक नजर मिल जाने को, पहचान नहीं कहते ! चिकनी-चुपडी बातों को, गुणगान नहीं कहते ! मंदिर में हर पत्थर को, भगवान नहीं कहते। --मुनि तरूणसागर
समाज तो सामायिक है,क्षणभंगुर है !रोज बदलता रहता है,आज कुछ-कल कुछ !भीड भेड है!

सदगुरू, तुम्हें भीड से मुक्त कराता है !सदगुरू, तुम्हें समाज से पार लेजाता है !सदगुरु तुम्हें शाश्वत के साथ जोड़ता है !
--रजनीश

गहलोत सरकार के बीते दो साल

अगर आंकड़ों की गणित पर नजर डालें तो पिछले दो सालों में राज्य की वर्तमान विकास दर मात्र लगभग ढ़ाई प्रतिशत ही रह गई है। दो साल पूर्व जब अशोक गहलोत ने सत्ता सम्भाली थी तब राज्य की विकास दर 6.99 प्रतिशत थी। इन दो सालों में राज्य में राजस्व घाटा भी लगभग चार हजार करोड़ रूपये से अधिक हो गया है। सरकारी स्तर पर राज्य की पतली-माली हालत के लिये छठे वेतन आयोग एवं कमजोर मानसून के कारण अकाल की परिस्थितियों को दिया जा रहा है। लेकिन इनके अलावा भी अन्य कई कारण हैं जिनके चलते राज्य की विकास दर घटी।राजस्थान एक ऐसा प्रदेश है जहां उद्योगों के विकास के लिये मात्र हवाई योजनाएं हैं। सरकार राज्य में नये उद्योगों की स्थापना के लिये नित नई घोषणाएं तो करती रहती है, लेकिन राज्य में औद्योगिक हब कायम करने के लिये कोई सार्थक कार्य नहीं हो रहा है। औद्योगिक विकास कार्यक्रमों में खर्च होने वाली राशि दिन प्रतिदिन घटती जा रही है। यही हाल कृषि क्षेत्र का है। सरकारी घोषणाओं का कोई फायदा गरीब किसानों को नहीं मिल रहा है। किसान के्रडिट कार्ड के छलावे में आकर किसान की हालत कर्जों के कारण पतली होती चली जा रही है। राज्य में कृषि लगभग भगवान भरोसे है। नरेगा में व्याप्त अव्यवस्था और भ्रष्टाचार के कारण यह योजना मलाई मारनेवालों की हविश का शिकार बनती जा रही है। नरेगा में भ्रष्टाचार अब बेकाबू होता जा रहा है। इसका असर कृषि क्षेत्र में पड़ रहा है और गम्भीर नतीजे सामने आने लगभग शुरू हो गये हैं। कृषि क्षेत्र के लिये ख्ेातीहर मजदूरों का भारी टोटा हो गया है। ऐसी परिस्थिति में किसानों के सामने फसलों के रखरखाव, सुरक्षा एवं फसलों की कटाई के लिये सस्ते एवं उचित मूल्य पर मजदूर तलाशना भारी पड़ रहा है। कुल मिला कर राज्य में कृषि क्षेत्र भगवान भरोसे है। पेयजल और सिंचाई के मामले में भी कुछ ऐसा ही है। पडौसी राज्यों से पानी के समझौतों पर अमल के मामले में सरकारी चाल धीमी है। नतीजा किसान भुगत रहे हैं। पेयजल के मामले में शहरी क्षेत्रों में तो सरकार कुछ करती नजर आ रही है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में ढाक के वही तीन पात! सब कुछ राम भरौसे! बिजली उत्पादन आंकड़ों के मायाजाल में अटक कर रह गया है। एक आंकड़ा दूसरे आंकड़े में इस कदर उलझा है कि हकीकत तलाशने के लिये भी नये आंकड़े की जरूरत पड़ेगी।शिक्षा का क्षेत्र पिछले दो सालों से समानीकरण, स्थानान्तरण शिक्षामंत्री, पंचायतीराज मंत्री की नूरा कुश्ती में ऐसा उलझा कि बच्चों के पूरे दो सत्र् बर्बाद हो गये। आज भी अधिकांश स्कूलों में शिक्षकों के अभाव में बच्चों की पढ़ाई चौपट हो रही है। प्रदेश में तत्काल 28 हजार नये शिक्षकों की आवश्यकता है, लेकिन पिछले दो सालों से एक भी नये शिक्षक की नियुक्ति नहीं हो पाई है। हालात ये हैं कि शिक्षक बेहद नाराज हैं। राज्य का चिकित्सा विभाग भी बद्हाली झेल रहा है। प्रदेश में 15 हजार नये चिकित्सकों की तत्काल आवश्यकता है। लेकिन राज्य सरकार नई भर्ती को बहानेबाजी के साथ अटका रही है। नतीजन प्रदेश की जनस्वास्थ्य सेवायें लगभग चरमरा गई है। राज्य की कानून एवं व्यवस्था की स्थिति पर टिप्पणी करना ही बेकार है। पुलिस विभाग में सिपाही से इंस्पेक्टर तक के पदों पर नई नियुक्तियां नहीं हो रही है, जबकि अफसरों के नये पद लगातार सृजित किये जा रहे हैं, नतीजन विभाग के अफसरों व कर्मचारियों के बीच पदों का संतुलन बिगड़ता जा रहा है। लेकिन सिपाहियों और सबइंस्पेक्टरों की तत्काल भर्ती शुरू कर इस असन्तुलन को नहीं सुधारा जा रहा है। प्रदेश में कानून एवं व्यवस्था के हालात भी किसी से छिपे नहीं हैं। शासन प्रशासन की स्थिति नाजुक दौर में है। प्रशासन में भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा पर है प्रशासन गांवों के संग अभियान की उपलब्धियां ही खुद-ब-खुद प्रदेश के प्रशासनतंत्र की बद्हाली बयान कर रहा है। वहीं प्रशासन गांवों के संग अभियान के कारण शहरी क्षेत्र के अधिकांश विभागों में प्रशासन पूरी तरह ठप्प पड़ा है। सामाजिक सुरक्षा से सम्बन्धित विभाग भ्रष्टाचार में इस कदर डूबे हैं कि इनकी असली शक्ल ही गायब हो गई है। पोषाहार कार्यक्रम को तो भ्रष्टाचार की दीमक ने इस कदर चाटना शुरू कर दिया है कि कुछ अर्से बाद इस योजना में पोषाहार गायब हो जायेगा और उसकी जगह लेगा भ्रष्टाचार! गहलोत मंत्रीमण्डल की स्थिति किसी से छिपी हुई नहीं है। मंत्रीमण्डल के एक-एक सदस्य का रिपोर्ट कार्ड तलाशा जाये तो जो स्थिति नजर आयेगी वह यह दर्शाती है कि नेता फुर्तीला और चुस्त-दुरूस्त है और उनकी फौज सुस्त-पस्त है। विधानसभा में गणित के आंकड़े को दुरूस्त रखने के लिये ही अधिकतर मंत्रीमण्डल में टिके हैं, बाकी ऊपरवाला मालिक है! OBJECT WEEKLY