समस्या के समाधान का सर्वश्रेष्ठ उपाय यही है !समस्या की श्रृखला में एक नई समस्या जोड़ दो !जनता का ध्यान पुरानी समस्या से हटा उस ओर मोड दो !जो यथार्थ का प्रतिबिंब दे उस शीशे को फोड़ दो !आचार्य महाप्रज्ञ

कुछ सारहीन बेगारों को, श्रमदान नहीं कहते ! बंजर भूमि देने को, भूदान नहीं कहते ! कुछ जोड़-तोड़ करने को, निर्माण नहीं कहते ! उठ-उठ कर गिर पड़ने को, उत्थान नहीं कहते ! दो-चार कदम चलने को, अभियान नहीं कहते ! सागर में तिरते तिनके को, जलयान नहीं कहते ! हर पढ़-लिख जाने वाले को, विद्धान नहीं कहते ! एक नजर मिल जाने को, पहचान नहीं कहते ! चिकनी-चुपडी बातों को, गुणगान नहीं कहते ! मंदिर में हर पत्थर को, भगवान नहीं कहते। --मुनि तरूणसागर
समाज तो सामायिक है,क्षणभंगुर है !रोज बदलता रहता है,आज कुछ-कल कुछ !भीड भेड है!

सदगुरू, तुम्हें भीड से मुक्त कराता है !सदगुरू, तुम्हें समाज से पार लेजाता है !सदगुरु तुम्हें शाश्वत के साथ जोड़ता है !
--रजनीश

थाना स्तर पर खुफियातंत्र कब होगा सक्रिय ?

प्रदेश में लम्बे समय से थाना स्तर पर खुफियातंत्र को सक्रिय करने की कवायद चल रही है। अगर सरकारी अमले को याद हो तो जयपुर के ओटीएस परिसर में राज्य मंत्रिमंडल के चिंतन शिविर की समाप्ति की बाद खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने थाना स्तर पर खुफियाकर्मियों की नियुक्ति और खुफियातंत्र को मजबूत करने हेतु त्वरित कार्यवाही करने की बात कही थी।
लेकिन ढाक के वही तीन पात। चिंतन शिविर के बाद से अब तक थाना स्तर पर खुफियातंत्र की आवश्यकता पर तो सब एक मत हैं, लेकिन खुफियातंत्र की तैनाती और उसे सक्रिय करने की जहमत नहीं उठाई जा रही है!
ऐसा नहीं है कि थानों में खुफियातंत्र पहली बार तैनात किया जाना हो! थाना स्तर पर पहिले खुफियातंत्र सक्रिय रहा है और पुलिस मुख्यालय में एक पुलिस अधिकारी के नियन्त्रण में यह तंत्र काम करता था। क्यों इस व्यवस्था को खत्म किया गया, यह तो सरकार में बैठे राजनेता और नौकरशाह ही सही ढंग से बता सकते हैं।
पिछले रविवार को राज्य के पुलिस महानिदेशक हरीशचंद्र मीणा ने अजमेर जिले के पुलिस अधिकारियों की एक बैठक में कहा था कि थानों में इंटेलीजेंस विंग अलग से तैयार करने की योजना है। इस विंग में शामिल पुलिस अधिकारी एवं सिपाही थाने के रोजमार्रा कामों से मुक्त होंगे और थाना क्षेत्र में खुफियातंत्र मजबूत कर गोपनीय सूचनाओं को इकठ्ठा कर ऊपर तक पहुंचायेंगे। उनका कहना था कि इस योजना पर काम चल रहा है।
वैसे सरकार में बैठे राजनेता और वरिष्ठ नौकरशाह चाहें तो थाने में खुफियातंत्र को तत्काल सक्रिय कर सकते हैं। अस्थायी तौर पर थाने से दो पुलिसकर्मियों को गोपनीय सूचनाएं एकत्रित करने के लिये लगा सकते हैं। थाने के स्टाफ में से दो व्यवहारिक रूपसे कुशल पुलिसकर्मियों का चयन करना भी कोई बहुत बड़ी बात नहीं है। ये विशेष चयनीत पुलिसकर्मी सीधे-सीधे अपने क्षेत्र के पुलिस अधीक्षक के आधीन हों और उन्हें व पुलिस मुख्यालय के इंटेलीजेंस विंग को सूचनाऐं ईमेल, फैक्स एवं व्यक्तिश: हार्डकापी के जरिये क्षेत्र की दिनभर के घटनाक्रमों की जानकारी दें। आवश्यकता होने पर वे टेलीफोन/मोबाइल का इस्तेमाल भी करें।
जब तक स्थायी व्यवस्था नहीं हो, ये अस्थायी व्यवस्था चले। इन विशेष पुलिसकर्मियों के जरिये थाना क्षेत्र की निष्क्रिय सीएलजी और मोहल्ला समितियों को भी सक्रिय किया जा सकता है और इनमें शामिल कार्यकर्ताओं, समाज सेवियों के जरिये भी क्षेत्र की कानून एवं व्यवस्था एवं अपराधियों के बारे में गोपनीय सूचनाएं एकत्रित की जा सकती है। लेकिन लगता है कि पुलिस मुख्यालय स्तर पर शायद कागजी कार्यवाही में ही ज्यादा विश्वास किया जाता है और फील्ड से जुड़े व्यवहारिक पहलुओं पर त्वरित कार्यवाही का शायद सोच ही नहीं है।
जयपुर बम कांड और राज्य मंत्रिमंडल की चिंतन बैठक के बाद उम्मीद तो यही थी कि थाना स्तर पर पुलिस की फील्ड इंटेलीजेंस गतिविधियां सक्षम रूपसे सक्रिय होंगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बस इस योजना पर काम चल रहा है और शायद अशोक गहलोत सरकार के पूरे शासनकाल तक चलता रहेगा। क्योंकि हमारा प्रदेश और हमारे प्रदेश की सरकार महान् है! उनकी कार्यप्रणली उसही तरह की है जैसी की कहावत है कि "सांप निकल गया और लकीर पीटते रहे!"
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