अमरीका में अगले दस सालों में, भारतीय बाजारों पर आधारित अमरीकी उद्योगों में साढ़े सात लाख नौकरियां सुरक्षित होंगी। इसके साथ-साथ आउट सोर्सिंग पर लगे कड़े प्रतिबंधों के तहत अमरीका में स्थित भारतीय कम्पनियां और व्यवसाइयों ने भारतीयों के स्थान पर अमरीकियों को नौकरियां देना शुरू कर दिया है। नतीजन आनेवाले समय में देश के युवाओं के सामने रोजगार पाने का गम्भीर संकट पैदा हो गया है। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआई आई) ने भी माना है कि भारतीय बाजारों के माध्यम से सात लाख अमरीकियों को रोजगार निश्चित रूप से सुरक्षित हो जायेंगे।इधर भारत में रिटेल सेक्टर में अमरीकी कम्पनियों के प्रवेश के चलते देश के खुदरा व्यापारी तबाह हो जायेंगे। एक जटिल सर्वे के अनुसार देश की लगभग 15 हजार लद्यु इकाइयां और 35 हजार कुटीर उद्योग अमरीकी रिटेल चेनों के भारत में सक्रिय होने के बाद बंद हो जायेंगे। नतीजन 80 लाख से ज्यादा लोग बेरोजगार हो जायेंगे। वहीं आने वाले पांच सालों में देश की अर्थव्यवस्था का ग्राफ बिना रोकटोक नीचे की ओर बढऩा शुरू हो जायेगा। भारतीय शेयर मार्केट दिन प्रतिदिन ऊंचाई लेता जा रहा है। शेयर मार्केट के इण्डेक्स रेकार्ड तेजी दिखा रहे हैं। जबकि स्क्रिप्स में कोई उतार-चढ़ाव नहीं हो रहा है। बीस-पच्चीस कम्पनियों की स्क्रिप्स के आधार पर शेयर मार्केट में इण्डेक्स के ऊंचे चढऩे मात्र से पूंजीकरण में बढ़ोत्तरी के दावे किये जा रहे हैं, जो पूरी तरह से असत्य एवं भ्रामक है और जब भी इण्डेक्स में गिरावट होगी देश का रिटेल इन्वेस्टर मंदी की तबाही के ज्वालामुखी में समा कर बर्बाद हो जायेगा। शेयर मार्केट के इण्डेक्स में जो स्क्रिप्ट हैं, हकीकत में उनका बाजार भाव उतना है ही नहीं है। केवल सटोरियों ने राजनैतिक दबाव के कारण इन स्क्रिप्ट के भाव सिर से ऊपर तक चढ़ा रखे हैं। अगर हर्षद मेहता और उनके बाद शेयर मार्केट के धराशाही होने के मंजरों को याद करें तो इस बार अगर शेयर मार्केट धाराशाही हुआ तो आम इन्वेस्टर तो बबार्द होगा ही, देश की अर्थव्यवस्था भी चरमरा जायेगी। देश के कृषि क्षेत्र, लद्यु उद्योग क्षेत्र, कुटीर उद्योग, ग्रामीण कुटीर उद्योग लगभग तबाही के कागार पर हैं। किसान अपनी जमीन बेच रहे हैं। नतीजन खेती का रकबा सिकुड़ रहा है। इसके साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था चरमरा रही है। लेकिन एयरकण्डीशंड कमरों में बैठे हमारे अर्थशास्त्री देश की अर्थव्यवस्था को कागजों में फुला कर देश को बर्बादी की दलदल में धकेलने से बाज नहीं आ रहे हैं। देश में खाद्य वस्तुओं की बेहद कमी के बावजूद हमारे देश के कर्णधार लगातार उन जिंसों का निर्यात कर रहे हैं, जिनकी कमी के कारण देश का आम अवाम अभाव की स्थिति से जूझ रहा है!शहरों से लेकर गांवों तक देश में उपभोक्ता वस्तुओं की कमी के कारण आम अवाम हैरान परेशान है। ऊपर से जमाखोरों-कालाबाजारियों द्वारा उपभोक्ता वस्तुओं की कालाबाजारी ने अवाम की कमर तोड़ कर रख दी है, लेकिन देश की डॉ.मनमोहन सिंह सरकार को आम अवाम की कोई चिंता नहीं है। उनके हिसाब से अपनी तकलीफें अवाम को खुद बर्दाश्त करना चाहिये।आखीर इस देश के कर्णधार चाहते क्या हैं? क्या अमरीकी गुलामी और देश की बर्बादी का जश्र मनाने के अलावा उनके पास भारत के सौ करोड़ अवाम की खुशहाली और देशहित में करने के लिए कुछ भी नहीं है। हमारे देश के कर्णधारों को अमरीका से सबक लेना चाहिये कि अमरीकियों की खुशहाली के लिये वहां की सरकार-प्रशासन किस हद तक जा सकता है। हमें चीन को भी कोसने की बजाय उसकी आर्थिक एवं राजनैतिक संरचना का गम्भीरता से अध्ययन करना चाहिये। सैंद्यान्तिक रूपसे घोर विरोधी अमरीका और चीन की आर्थिक, राजनैतिक और सामरिक रणनीति का ही गहराई से अध्ययन कर उनकी अच्छाइयों को अगर भारतीय नेता आत्मसात करें तो देश का कहीं ज्यादा भला हो सकता है। अन्यथा हम अपने देश की बर्बादी का जश्र तो वैसे ही मनाते आ रहे हैं और आगे भी मनाते रहेंगे। -हीराचंद जैन
