आखीरकार राज्य के मुख्यमंत्री इस बात को तो मान ही गये कि जयपुर में बैठे पचास लोग राज्य का शासन नहीं चला सकते हैं। संदर्भ चाहे जो भी रहा हो, लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की यह टिप्पणी अत्यन्त संजीदा है। लेकिन मुख्यमंत्री की इस टिप्पणी के साथ अब सवाल उठने लगे हैं कि सत्ता का विकेंद्रीकरण कैसे और कौन करेगा? पंचायतीराज को कुछ विभागों को चलाने के अधिकार देने भर से सत्ता का विकेंद्रीकरण नहीं हो सकता है। अगर सत्ता के विकेंद्रीकरण की बात करें तो हमें चीन का उदाहरण सामने रखना होगा। एक बात तो साफ है कि भारत और चीन के सम्बन्ध लम्बे अर्से से खराब चल रहे हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम उसकी अच्छाइयों, जिस पर उसकी बुनियाद टिकी है, को नजरन्दाज कर दें। चीन उत्तरी कोरिया, क्यूबा जैसे देशों की ग्रामीण शासन व्यवस्था का गम्भीरता से अध्ययन किया जाये और उसके अच्छे पहलुओं को भारतीय ग्रामीण प्रशासनिक व्यवस्था में समावेश किया जाये तो उसके साफ और सकारात्मक परिणाम आ सकते हैं। उदाहरण के लिये राजस्थान को ही लें, कि यहां ग्रामीण तंत्र कायम करने के लिये ग्राम स्तर पर प्रशासनिक कमेटियां बनें, ये कमेटियां ग्राम पंचायत का अंग हों और इन ग्राम कमेटियों और ग्राम पंचायतों के चुनिंदा प्रतिनिधियों को सघन प्रशिक्षण देकर स्थानीय व्यवस्था को स्थानीय परिस्थितियों, स्थानीय साधनों एवं साजोसामान के साथ वैज्ञानिक तरीके से क्रियाशील करने के लिये सक्षम बनाया जाये, स्थानीय शिक्षित युवकों को सघन प्रशिक्षण देकर उनके अपने दी गांवों या आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के शासन-प्रशासन को चुस्त दुरूस्त करने में लगाया जाये तो सत्ता का विकेंद्रीकरण सक्षमता से होगा। मात्र विभागों को पंचायतीराज के आधीन कर उन्हें नौकरशाही के बूते पर चलाने से सत्ता का विकेंद्रीकरण सम्भव नहीं है। ऐसा करने से भ्रष्टाचार और अनाचार को ही बढ़ावा मिलेगा। अत: मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का यह कथन सही है कि जयपुर में बैठ पचास लोग सत्ता नहीं चला सकते हैं। लेकिन गहलोत साहब की कथनी के विपरीत करनी को देखिये कि उनका सारा शासन दिन प्रतिदिन सचिवालय केंद्रित होता जा रहा है। पंचायतीराज प्रशासन को जो पांच विभाग सौंपे गये हैं, उन विभागों को सौंपने से पहिले ग्राम स्तर से जिला स्तर तक इनके सक्षमता से संचालन के लिये न तो कोई ठोस नीति बनाई गई और न ही कोई सक्षम कार्य योजना। जल्दबाजी में मात्र राजनैतिक फायदा उठाने के लिये इस की घोषणा कर दी गई। इसके विपरीत प्रभाव भी आने लगे हैं और उस पर भी मुख्यमंत्री जी की यह टिप्पणी कि 'अधिकार कलम से मिलते हैं, कुर्सी से नहीं अत्यन्त हास्यास्पद है। जब कुर्सी ही नहीं होगी तो कलम क्या करेगी? कलम की ताकत तो कुर्सी की कदकाठी में नीहित है।गहलोत साहब ने पंचायतीराज को पांच विभाग सौंप तो दिये। लेकिन इन विभगों में सत्ता विकेंद्रीकरण और प्रशासनिक दायीत्वों के बंटवारे के लिये कोई ठोस योजना नहीं बनाई। नतीजन जयपुर के सचिवालय के ऐयरकण्डिशण्ड कमरो में बैठे उच्चपदस्थ अफसरों के आधीन ही सत्ता की बागडोर सीमित हो गई है। जो आदेश वे देते हैं और दे रहे हैं, जिला स्तर पर उनकी पालना हो रही है। अब उन आदेशों की पालना चाहे कलक्टर करे या फिर जिला परिषद का सीईओ। क्या इसे ही सत्ता का विकेंद्रीकरण कहेंगे। ऐसे विकेंद्रीकरण से तो सत्ता का वर्तमान तंत्र ही सही है, जो भ्रष्ट होकर भी काम तो करता है। उसे उसकी करनी के लिये जुम्मेदार ठहराया जा सकता है, दण्ड दिया जा सकता है, लेकिन जो नया तंत्र जाने अनजाने में विकसित हो रहा है, वह तो घुन या दीमक के समान है, जो प्रशासन में एक बार पैठ गया तो उसे पूरी तरह बरबाद करके ही छोड़ेगा।अभी भी वक्त है अशोक गहलोत प्रशासन के पास, राज्य में सत्ता विकेंद्रीकरण के लिये ठोस नीति बनाकर उसके क्रियान्वयन का! अन्यथा वक्त निकल जाने के बाद पछताने के अलावा कुछ भी हाथ नहीं लगेगा। OBJECT WEEKLY
