समस्या के समाधान का सर्वश्रेष्ठ उपाय यही है !समस्या की श्रृखला में एक नई समस्या जोड़ दो !जनता का ध्यान पुरानी समस्या से हटा उस ओर मोड दो !जो यथार्थ का प्रतिबिंब दे उस शीशे को फोड़ दो !आचार्य महाप्रज्ञ

कुछ सारहीन बेगारों को, श्रमदान नहीं कहते ! बंजर भूमि देने को, भूदान नहीं कहते ! कुछ जोड़-तोड़ करने को, निर्माण नहीं कहते ! उठ-उठ कर गिर पड़ने को, उत्थान नहीं कहते ! दो-चार कदम चलने को, अभियान नहीं कहते ! सागर में तिरते तिनके को, जलयान नहीं कहते ! हर पढ़-लिख जाने वाले को, विद्धान नहीं कहते ! एक नजर मिल जाने को, पहचान नहीं कहते ! चिकनी-चुपडी बातों को, गुणगान नहीं कहते ! मंदिर में हर पत्थर को, भगवान नहीं कहते। --मुनि तरूणसागर
समाज तो सामायिक है,क्षणभंगुर है !रोज बदलता रहता है,आज कुछ-कल कुछ !भीड भेड है!

सदगुरू, तुम्हें भीड से मुक्त कराता है !सदगुरू, तुम्हें समाज से पार लेजाता है !सदगुरु तुम्हें शाश्वत के साथ जोड़ता है !
--रजनीश

धर्म का नाम बदनाम मत करो पूंजीपतियों

सरदारशहर में गत रविवार 10 अक्टूबर को 61वें अणुव्रत अधिवेशन की आड़ लेकर जिस अणुव्रत भवन का उद्घाटन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से करवाया गया, उस पूरे प्रकरण ने धर्म एवं धार्मिक संस्थाओं में पूंजीपतियों की अंदर तक पैठ को उजागर कर दिया है।तीन दिवसीय अणुव्रत अधिवेशन का प्रारम्भ शनिवार 9 अक्टूबर को ही हो गया था। प्रथम दिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को नहीं बुलाया गया और इस सम्मेलन का समापन भी 11 अक्टूबर सोमवार को हो गया है! इस दिन भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने शिरकत नहीं की! इससे एक बात तो साफ हो गई कि राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का अणुव्रत के इस अखिल भारतीय अधिवेशन से कोई लेना देना नहीं था। अशोक गहलोत से सोकाल्ड अणुव्रत भवन के उद्घाटन करवाने वाले कार्यक्रम की अध्यक्षता महाप्रज्ञ चातुर्मास समिति के अध्यक्ष सुमति चंद गोठी द्वारा की गई। इस अध्यक्षता ने भी धर्म की आड़ में पूंजीपतियों की नौटंकियों को गहराई से उजागर कर दिया है। ऑब्जेक्ट ने अपने पिछले अंकों में धर्म और पूंजीपतियों से छिछले सम्बन्धों को उजागर किया था। महाप्रज्ञ चातुर्मास समिति के लैटरहैड एवं विभिन्न होर्डिग्स बैनर्स एवं विज्ञापनों में महाप्रज्ञ/महाश्रमण के फोटो के ऊपर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का यह स्लोगन प्रकाशित हुआ था कि 'भारतीय स्टेट बैंक-सिर्फ बैंकिंग और कुछ भी नहीं! जो लिखा हुआ प्रदर्शित किया गया, अवाम ने उस पर गहरी आपत्ति जताई थी और ऑब्जेक्ट ने अपने 17 जून, 2010 के अंक में विस्तार से काफी कुछ लिखा था। उक्त डिस्पेच से साफ हो गया था कि धर्म पर पूंजीपति और धन भारी पड़ रहे हैं!गत शनिवार को सरदारशहर के तेरापंथ समाज के प्रबुद्धजनों ने जिला कलक्टर विकास एस.भाले को साफ-साफ बताया था कि 9 से 11 अक्टूबर तक होने वाला अणुव्रत अधिवेशन अणुव्रत समिति के आधीन हो रहा है। इस कार्यक्रम से सुमति कुमार गोठी और महाप्रज्ञ चातुर्मास समिति का कोई लेना देना नहीं है। महाप्रज्ञ चातुर्मास समिति एवं अणुव्रत समिति ने अलग-अलग कार्यक्रम भी प्रसारित किये। आखीर इन धार्मिक कृत्यों में पूंजीपतियों की दुकानदारी क्यों चल रही है? यह एक गम्भीर मंथन का मुद्दा है! महाप्रज्ञ जी के सरदारशहर चातुर्मास प्रारम्भ से पूर्व ही सुमति कुमार गोठी और अन्य पंूजीपतियों के बीच महाप्रज्ञ के चातुर्मास को लेकर काफी गहमा गहमी रही। खुद आचार्य महाप्रज्ञ पूंजीपतियों की चख-चख से दु:खी रहे एवं उनके परिनिर्वाण के बाद तो स्थितियां बद् से बद्तर होती गई और होती जा रही है।विभिन्न मुद्दों की आड़ में तेरापंथ महासंघ पर पूंजीपतियों का शिकंजा और दबदबा कायम रखने के प्रयास महाप्रज्ञजी के परिनिर्वाण के बाद अब ओर ज्यादा तेज हो गये हैं। समाधि स्थल, तेरापंथ भवन और अब सोकाल्ड अणुव्रत भवन पर कब्जे और नियन्त्रण के लिये पंूजीपतियों में घमासान है। वह भी धर्म की आड़ में!आखीर! पूंजीपति चाहते क्या हैं? क्या धर्म पूंजीपतियों की ही बपौती है? क्यों वे धर्म पर अपना शिकंजा कायम करना चाहते हैं? हम इस मुद्दे पर आगे विस्तार से लिखेंगे। लेकिन इससे पूर्व हम आज एक सवाल अवाम के सामने रखना चाहेंगे? मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित बड़े-बड़े दिग्गजों ने अपनी भाषणशैली का चटपटे जायकेदार लहजे में प्रस्तुतीकरण किया। मौका बताया गया 61वें आणुव्रत अधिवेशन का। दूसरे मायने में सोकाल्उ अणुव्रत भवन के उद्घाटन का! हमारे माननीय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ऊंची बात कही। उनका कहना था कि अणुव्रत आंदोलन में आतंकवाद, नक्सलवाद, जातिवाद, तनाव और हिंसा जैसी सभी समस्याओं का समाधान नीहित है। जोरदार ताली पिटाऊ गहलोत साहब की इन पंक्तियों को खुद गहलोत साहब का प्रशासन ही अंगीकार कर ले तो राजस्थान की पांच करोड़ से ज्यादा आबादी को भय, भूख और बीमारी से तो कम से कम मुक्ति मिल ही जायेगी। कब अपना रहा है गहलोत साहब का प्रशासन अणुव्रत आंदोलन को! अवाम जरूर इंतजार करेगा हमारे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के फैसले का। अब हमारा सवाल, अणुव्रति मठाधीशों से! पहला सवाल उन अणुव्रति मठाधीशों से यह है कि क्या उन्होंने 'ऋषभदेव के मानवधर्म सूत्र का अध्ययन किया है? हम दावे के साथ कह सकते हैं कि अध्ययन की तो बात ही छोड़ दें, उन्हें पता ही नहीं होगा ऋषभदेव के मानवधर्म सूत्र के बारे में! आचार्य तुलसी ने गहन अध्ययन किया था, ऋषभदेव के मानवधर्म सूत्र का और उसही के सार स्वरूप को उन्होंने अणुव्रत आंदोलन के रूप में चलाया। अब अणुव्रति और अणुव्रत आंदोलन से जुड़े लोग बतायें कि क्या वे ऋषभदेव के मानवधर्म सूत्र में वर्णित निर्देशों और इन निर्देशों के साररूप में संकलित एवं अणुव्रत आंदोलन के नियमों-निर्देशों का पालन करते हैं?हम ही देते हैं हमारे सवाल का सीधा जवाब! सत्य, अहिंसा, अचौर्य एवं अपरिग्रह की पालना कितने अणुव्रति मठाधीश करते हैं? ये पूंजीपति मठाधीश क्या टैक्स चोरी नहीं करते? क्या कालाबाजारी, जमाखोरी से इनका वास्ता नहीं है? गरीबों पर अत्याचार कर कितनी अहिंसा का पालन करते हैं? झूंट बोलने की फिदरत रखने वाले कितने सत्य का पालन करते हैं? बतायेंगे अणुव्रति महारथी! फिर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत साहब बतायें कि बेईमानी, अनाचार, अत्याचार, भ्रष्टाचार, जमाखोरी, कालाबाजारी में लिप्त लोग क्या अणुव्रत आंदोलन की तोप लेकर आतंकवाद, नक्सलवाद, जातिवाद का मुकाबला कर सकते हैं? कभी नहीं! क्योंकि इन सबकी जड़ में तो ये पूंजीपति खुद ही हैं और इन्हें खत्म करने की हैसियत हमारे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत में भी नहीं है। OBJECT WEEKLY