कुछ सारहीन बेगारों को,
श्रमदान नहीं कहते !
बंजर भूमि देने को,
भूदान नहीं कहते !
कुछ जोड़-तोड़ करने को,
निर्माण नहीं कहते !
उठ-उठ कर गिर पड़ने को,
उत्थान नहीं कहते !
दो-चार कदम चलने को,
अभियान नहीं कहते !
सागर में तिरते तिनके को,
जलयान नहीं कहते !
हर पढ़-लिख जाने वाले को,
विद्धान नहीं कहते !
एक नजर मिल जाने को,
पहचान नहीं कहते !
चिकनी-चुपडी बातों को,
गुणगान नहीं कहते !
मंदिर में हर पत्थर को,
भगवान नहीं कहते।
--मुनि तरूणसागर
समस्या के समाधान का सर्वश्रेष्ठ उपाय यही है !समस्या की श्रृखला में एक नई समस्या जोड़ दो !जनता का ध्यान पुरानी समस्या से हटा उस ओर मोड दो !जो यथार्थ का प्रतिबिंब दे उस शीशे को फोड़ दो !आचार्य महाप्रज्ञ
कुछ सारहीन बेगारों को,
श्रमदान नहीं कहते !
बंजर भूमि देने को,
भूदान नहीं कहते !
कुछ जोड़-तोड़ करने को,
निर्माण नहीं कहते !
उठ-उठ कर गिर पड़ने को,
उत्थान नहीं कहते !
दो-चार कदम चलने को,
अभियान नहीं कहते !
सागर में तिरते तिनके को,
जलयान नहीं कहते !
हर पढ़-लिख जाने वाले को,
विद्धान नहीं कहते !
एक नजर मिल जाने को,
पहचान नहीं कहते !
चिकनी-चुपडी बातों को,
गुणगान नहीं कहते !
मंदिर में हर पत्थर को,
भगवान नहीं कहते।
--मुनि तरूणसागर
समाज तो सामायिक है,क्षणभंगुर है !रोज बदलता रहता है,आज कुछ-कल कुछ !भीड भेड है!
सदगुरू, तुम्हें भीड से मुक्त कराता है !सदगुरू, तुम्हें समाज से पार लेजाता है !सदगुरु तुम्हें शाश्वत के साथ जोड़ता है !
--रजनीश