समस्या के समाधान का सर्वश्रेष्ठ उपाय यही है !समस्या की श्रृखला में एक नई समस्या जोड़ दो !जनता का ध्यान पुरानी समस्या से हटा उस ओर मोड दो !जो यथार्थ का प्रतिबिंब दे उस शीशे को फोड़ दो !आचार्य महाप्रज्ञ

कुछ सारहीन बेगारों को, श्रमदान नहीं कहते ! बंजर भूमि देने को, भूदान नहीं कहते ! कुछ जोड़-तोड़ करने को, निर्माण नहीं कहते ! उठ-उठ कर गिर पड़ने को, उत्थान नहीं कहते ! दो-चार कदम चलने को, अभियान नहीं कहते ! सागर में तिरते तिनके को, जलयान नहीं कहते ! हर पढ़-लिख जाने वाले को, विद्धान नहीं कहते ! एक नजर मिल जाने को, पहचान नहीं कहते ! चिकनी-चुपडी बातों को, गुणगान नहीं कहते ! मंदिर में हर पत्थर को, भगवान नहीं कहते। --मुनि तरूणसागर
समाज तो सामायिक है,क्षणभंगुर है !रोज बदलता रहता है,आज कुछ-कल कुछ !भीड भेड है!

सदगुरू, तुम्हें भीड से मुक्त कराता है !सदगुरू, तुम्हें समाज से पार लेजाता है !सदगुरु तुम्हें शाश्वत के साथ जोड़ता है !
--रजनीश

14 अक्टूबर, 2008

क्यों हिन्दूवादी भारत को नेपाल के रास्ते माओवाद की तरफ ले
जाने पर आमादा हैं ?

दक्षिणी उडीसा के पांच जिलों में वामदलों और आदिवासी संगठनों ने बन्द का जो आव्हान किया था उसे आम अवाम का व्यापक समर्थन मिला है। सीपीआई (एमएल-न्यू डेमोक्रेसी), सीपीआई (एमएल-लिबरेशन), एसयूसीआई और सीपीआई (एमएल) समाजवादी जन परिषद के साथ-साथ आदिवासी संगठन लोक संग्राम मंच ने इस बन्द का आव्हान किया !
माओवादियों और नक्सलवादियों से निपटने के लिये (कोबरा) बटालियनों का गठन करने वाली केन्æ सरकार और राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ, भाजपा और उनके अग्रिम नस्लवादी संगठनों के आकाओं को दक्षिणी उडीसा में बन्द का आव्हान करने वाले वामपंथी दलों की एकजुटता और उनकी संरचना के मददेनजर वक्त रहते समस्या के सामाजिक-मानवीय पहलुओं को ध्यान में रखते हुये समाधान की ओर ध्यान देना चाहिये। जिन वाम संगठनों व आदिवासी संगठनों ने बन्द का आव्हान किया है उनका बहुत ज्यादा पुराना कोई इतिहास नहीं है। ये संगठन जुल्म के खिलाफ एकजुट हुये आदिवासियों-पिछडे अनुसूचित जाति के लोगों ने स्थानीय स्तर पर बनाये हैं। इन्हें जातीय हिंसा, हिन्दुत्ववादी आतंकियों द्वारा जबरन धर्मान्तरण या सरकारी ताकत के बूते पर नहीं दबाया जा सकता है क्योंकि जुल्म के खिलाफ संघर्ष करने वाला संघर्ष की हर हद् को पार कर लेता है ! ऐसी स्थिति में जुनूनियों को ताकत के बूते पर दबाने का वहम सरकार और उनके नौकरशाहों को नहीं पालना चाहिये। आरएसएस के आकाओं को भी यह चाहिये कि नक्सलियों से निपटने की अपनी नौटंकी बन्द करें। बन्द करें अपनी हिन्दुत्ववादी आतंकी गतिविधियों को ! क्योंकि अब लगने लगा है कि माओवादी-नक्सलवादी नस्लवादीयों से आमने-सामने का हिसाब किताब करने का मानस बना चुके हैं।
वैसे भी नस्लवाद के खिलाफ नक्सलवादी-माओवादी मोर्चे देश के 22 प्रान्तों में फैल चुके हैं। राजस्थान व गुजरात में भी मध्यप्रदेश के रास्ते पैर जमा रहे हैं। अत: साफ है कि देश में खूनी क्रान्ति की बुनियाद पडनी शुरू हो गई है। देश वैसे ही आर्थिक मंदी का शिकार है। ऐसे में नस्लवाद बनाम नक्सलवाद का मोर्चा खुला तो देश में क्या हालात पनपेंगे ? लगता है हिन्दूवादी भारत को नेपाल के रास्ते माओवाद की तरफ ले जाने पर आमादा हैं !
बेलगाम टीम