समस्या के समाधान का सर्वश्रेष्ठ उपाय यही है !समस्या की श्रृखला में एक नई समस्या जोड़ दो !जनता का ध्यान पुरानी समस्या से हटा उस ओर मोड दो !जो यथार्थ का प्रतिबिंब दे उस शीशे को फोड़ दो !आचार्य महाप्रज्ञ

कुछ सारहीन बेगारों को, श्रमदान नहीं कहते ! बंजर भूमि देने को, भूदान नहीं कहते ! कुछ जोड़-तोड़ करने को, निर्माण नहीं कहते ! उठ-उठ कर गिर पड़ने को, उत्थान नहीं कहते ! दो-चार कदम चलने को, अभियान नहीं कहते ! सागर में तिरते तिनके को, जलयान नहीं कहते ! हर पढ़-लिख जाने वाले को, विद्धान नहीं कहते ! एक नजर मिल जाने को, पहचान नहीं कहते ! चिकनी-चुपडी बातों को, गुणगान नहीं कहते ! मंदिर में हर पत्थर को, भगवान नहीं कहते। --मुनि तरूणसागर
समाज तो सामायिक है,क्षणभंगुर है !रोज बदलता रहता है,आज कुछ-कल कुछ !भीड भेड है!

सदगुरू, तुम्हें भीड से मुक्त कराता है !सदगुरू, तुम्हें समाज से पार लेजाता है !सदगुरु तुम्हें शाश्वत के साथ जोड़ता है !
--रजनीश

16 अक्टूबर, 2008

देश बरबाद हो जाये-जनता बरबाद हो जाये !
क्या फर्क पडता है ?

जेट एयरवेज ने मौखिक आदेश के जरिये अपने 800 कर्मचारियों को निकाल दिया और 1100 को बाहर का रास्ता दिखाने की कार्यवाही की जा रही है। चौलामण्डलम फाइनेन्स ने 250 कर्मचारियों को निकाल दिया। रिलायंस फ्रेश ने 1850 से अधिक कर्मचारियों को घर बैठा दिया, वहीं किंगफिशर ने 300 कर्मचारियों को अपने घर का रास्ता दिखा दिया है। यही नहीं कोटक महेन्द्रा, आईसीआईसीआई सहित सैंकडों फाइनेन्स कम्पनियों ने अपने हजारों कर्मचारियों निकाल कर काली दिवाली बनाने पर मजबूर कर दिया है। अनुमान है कि इस वित्तीय वर्ष 2008-2009 में लगभग 7 लाख नये कर्मचारी बेरोजगारों की लाईन में जुट जायेगें। अर्थात नये सात लाख परिवारों को दालरोटी के लिये तरसने के लिये मजबूर होना पडेगा।
शेयर मार्केट का मंदी की मार के चलते भटटा बैठ चुका है और आम निवेशकों का इन शेयर मार्केट ने दिवाला निकाल दिया है। साधारण नौकरीपेशा, खुदरा व्यापारियों व मध्यमवर्ग के निवेशकों का करोडों-करोड रूपया शेयर मार्केट में डूब चुका है। केन्द्रीय सरकार ने गरीबों की गाढे पसीने की भविष्य निधि की जमा पूंजी को शेयर मार्केट में निवेश करने का फैंसला किया है। इस का अन्जाम क्या होगा ? भगवान जाने !
देश की राष्ट्रीय राजनैतिक पार्टियां देश को इस गम्भीर आर्थिक संकट की घडी से उबारने के लिये कोई प्रयास नहीं कर रही है। इस गम्भीर आर्थिक संकट की घडी में, जब कि सारा अवाम हाहाकार कर रहा है, हमारे देश के निकम्में नाकारा राजनेता चुनावी चकल्लस में जुटे हैं। उन्हें न तो इस देश की फिक्र है और न ही इस देश के उस आम आवाम की, जिसके बूते पर वे सत्ता में बैठे हैं। वे जुगत बैठा रहे हैं, विधान सभा और लोकसभा में ज्यादा से ज्यादा सीटें हथियाने की। ताकि सत्ता पर काबिज होकर साम्प्रदायिक, नस्लवादी-सामन्तवादी ताकतों के जरिये जनता पर अत्याचार कर अपनी सत्ता चला सकें। इसके लिये वे बेशर्मी की सभी हदें पार करने के लिये तैयार हैं। चाहे ये देश बरबाद हो जाये-जनता बरबाद हो जाये। इन्हें इससे क्या फर्क पडता है ?
बेलगाम टीम