समस्या के समाधान का सर्वश्रेष्ठ उपाय यही है !समस्या की श्रृखला में एक नई समस्या जोड़ दो !जनता का ध्यान पुरानी समस्या से हटा उस ओर मोड दो !जो यथार्थ का प्रतिबिंब दे उस शीशे को फोड़ दो !आचार्य महाप्रज्ञ

कुछ सारहीन बेगारों को, श्रमदान नहीं कहते ! बंजर भूमि देने को, भूदान नहीं कहते ! कुछ जोड़-तोड़ करने को, निर्माण नहीं कहते ! उठ-उठ कर गिर पड़ने को, उत्थान नहीं कहते ! दो-चार कदम चलने को, अभियान नहीं कहते ! सागर में तिरते तिनके को, जलयान नहीं कहते ! हर पढ़-लिख जाने वाले को, विद्धान नहीं कहते ! एक नजर मिल जाने को, पहचान नहीं कहते ! चिकनी-चुपडी बातों को, गुणगान नहीं कहते ! मंदिर में हर पत्थर को, भगवान नहीं कहते। --मुनि तरूणसागर
समाज तो सामायिक है,क्षणभंगुर है !रोज बदलता रहता है,आज कुछ-कल कुछ !भीड भेड है!

सदगुरू, तुम्हें भीड से मुक्त कराता है !सदगुरू, तुम्हें समाज से पार लेजाता है !सदगुरु तुम्हें शाश्वत के साथ जोड़ता है !
--रजनीश

30 सितम्बर, 2008

हाथी के दांत दिखाने के ओर-खाने के ओर !

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और भूतपूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवानी का कहना है कि यदि भाजपा को केन्द्र में सत्ता प्राप्त होगी तो अल्पसंख्यकों को सुरक्षा दिलाई जायेगी। इस ही तरह उन्होंने कहा कि सत्ता में आये तो उत्तर पूर्व राज्यों की तरफ भी ज्यादा ध्यान देगें।
आडवानी जी का कहने का तात्पर्य साफ है। केन्द्र में सत्ता में आयेगें तो ही अल्पसंख्यकों की सुरक्षा हेतु "मगर के आंसू जरूर बहायेगें !" लेकिन भारतीय जनता पार्टी शासित प्रदेशों एवं भाजपा समर्थित शासित प्रदेशों में वर्तमान में बजरंगियों द्वारा बरसाये जा रहे कहर पर एक शब्द भी वे न तो बोलेगें। न ही कुछ करेगें।
भाजपा समर्थित बीजू पटनायक सरकार शासित उडीसा में ईसाइयों के पांच हजार से ज्यादा घर जला दिये गये। साढे चार सौ गांवों को नेस्तनाबूद कर दिया गया है। 40 से ज्यादा गरीब ईसाइयों का कत्लेआम हो चुका है। कंदमाल जिले में बजरंगियों और विश्व हिन्दू परिषद ने आदिवासियों और अनुसूचित जाति के गरीब ईसाइयों को 30 सितम्बर, 2008 तक जंगलों से वापस गांवों में आकर हिन्दू धर्म ग्रहण करने का फतवा जारी किया है। लेकिन इन फिदरतियों के खिलाफ आडवानी एण्ड पार्टी कुछ भी नहीं बोलेंगे और कुछ भी नहीं करेगें। भाजपा समर्थित कर्नाटक, उडीसा और उत्तराखण्ड सरकारों को ईसाइयों पर हो रहे वीहिप एवं बजरंगियों के हमलों को रोकने के लिये भी नहीं कहेगें। वैसे कहने को अल्पसंख्यकों के प्रति उनका रवैया नरम है। कहावत सही है कि हाथी के दांत दिखाने के ओर-खाने के ओर ! क्यों ? सही है न आडवानी जी !

बेलगाम टीम