समस्या के समाधान का सर्वश्रेष्ठ उपाय यही है !समस्या की श्रृखला में एक नई समस्या जोड़ दो !जनता का ध्यान पुरानी समस्या से हटा उस ओर मोड दो !जो यथार्थ का प्रतिबिंब दे उस शीशे को फोड़ दो !आचार्य महाप्रज्ञ

कुछ सारहीन बेगारों को, श्रमदान नहीं कहते ! बंजर भूमि देने को, भूदान नहीं कहते ! कुछ जोड़-तोड़ करने को, निर्माण नहीं कहते ! उठ-उठ कर गिर पड़ने को, उत्थान नहीं कहते ! दो-चार कदम चलने को, अभियान नहीं कहते ! सागर में तिरते तिनके को, जलयान नहीं कहते ! हर पढ़-लिख जाने वाले को, विद्धान नहीं कहते ! एक नजर मिल जाने को, पहचान नहीं कहते ! चिकनी-चुपडी बातों को, गुणगान नहीं कहते ! मंदिर में हर पत्थर को, भगवान नहीं कहते। --मुनि तरूणसागर
समाज तो सामायिक है,क्षणभंगुर है !रोज बदलता रहता है,आज कुछ-कल कुछ !भीड भेड है!

सदगुरू, तुम्हें भीड से मुक्त कराता है !सदगुरू, तुम्हें समाज से पार लेजाता है !सदगुरु तुम्हें शाश्वत के साथ जोड़ता है !
--रजनीश

29 सितम्बर, 2008

आतंकवाद, आतंकवाद, आतंकवाद बनाम आतंकवाद ?
आतंकवाद का जोर है ! राजनेता मदहोंश हैं, जनता बेचारी कमजोर है। पूरा देश आतंकवाद की चपेट में है। कहीं सिमी-इण्डियन मुजाहिदीन ने आतंक फैला रखा है तो कहीं बजरंगियों ने ! कहीं नक्सलवादियों का आतंक है तो कहीं नक्सलियों का मुकाबला करने की आड में सरकारी सलवा जुडूम और प्रशासन का आतंक है। नागालैण्ड में नागा विद्रोहियों का तो मिजोरम में मिजो विद्रोहियों व मणिपुर में स्थानीय विद्रोहियों का आतंक गहराता जा रहा है। जम्मू-काश्मीर में भी अलगाववादी फिर से एक जुट होने लगे हैं।

लेकिन इन सब से बडा और खतरनाक आतंकवाद हमारे राजनेताओं ने फैला रखा है। कुछ राजनेता सिमी पर कार्यवाही की मांग करते हैं तो कुछ उसका विरोध। बजरंगियों की करतूतों के खिलाफ उन पर प्रतिबन्ध की बात आने पर कुछ राजनेता उनके पक्ष में उतर जाते हैं और कार्यवाही का विरोध करते हैं। नागा, मिजो, मणिपुरी, उल्फा और काश्मीरी अलगाववादी देश से अलग होने की बांग मार रहे हैं, लेकिन विपक्ष में बैठे राजनेताओं का कहना है कि सत्ता में आयेगें तब देखेगें। सत्ता में बैठे राजनेताओं का सोच है कि अगर अभी कार्यवाही करेगें तो हमारी सत्ता के खिलाफ विरोध पनपेगा और विरोधी फायदा उठा कर सत्ता पर काबिज हो जायेगें और हम देखते ही रह जायेगें। नतीजन पूरे देश में अलग-अलग रूप में, अलग-अलग कारणों से आतंकवाद का दैत्य विकराल रूप लेता ही जा रहा है। देश का अस्तित्व खतरे में है ! उसकी परवाह किसे है ? सब लगे हैं आतंकवाद की आड में सत्ता पर काबिज होने में ! खबरची मीडिया की नैतिक जुम्मेदारी इस वक्त देश की अखण्डता-एकता को कायम रखने की है। लेकिन वे भी अपने दायीत्वों को भूल गये लगते हैं। अपनी टीआरपी बढा कर विज्ञापनों की मोटी रकम इकठ्ठा करने के चक्कर में दूसरे ही किस्म का आतंकवाद फैला रहे हैं। कोई बांग मार रहा है, कि तुझ पर शनि महाराज की काली छाया है ! तो कोई उपाय बता रहा है, मंगल की कुदृष्टि से बचने के लिये। एक बोलता

है राहू-केतू से सावधान ! दूसरा चिल्ला रहा है कालसर्प योग से बचो ! तीसरा कहता है सूर्य नीच का है ! तो चौथा कहता है बुद्ध को मनाओं ! लगे हैं म्रहों के नाम पर आतंक फैलाने में ! कभी कोई धरती पर महाप्रलय की बात करता है तो कोई अपराध की घटनाओं पर मक्खन मिर्च मसाला लगा कर परोस रहा है। लगे हैं सब आतंकवाद की आड में आतंक फैलाने में !

ममता बनर्जी तोप चला रही है कि बंगाल पर 356 लगाओ ! आम अवाम का कहना है कि बंगाल पर ही क्यों ? पूरे देश पर जितने भी कानून हैं उनकी सारी धाराऐं-अनुच्छेद जोड कर उनकी जंजीर बना कर लगा दो ताकि देश की बेबस जनता निकम्में नाकारा राजनेताओं के हाथों मरने के लिये उनके हवाले हो जाये। शायद तब इन बेशर्मो को थोडी सी शर्म आये, देश के प्रति दायीत्व बोध हो !
बेलगाम टीम