समस्या के समाधान का सर्वश्रेष्ठ उपाय यही है !समस्या की श्रृखला में एक नई समस्या जोड़ दो !जनता का ध्यान पुरानी समस्या से हटा उस ओर मोड दो !जो यथार्थ का प्रतिबिंब दे उस शीशे को फोड़ दो !आचार्य महाप्रज्ञ

कुछ सारहीन बेगारों को, श्रमदान नहीं कहते ! बंजर भूमि देने को, भूदान नहीं कहते ! कुछ जोड़-तोड़ करने को, निर्माण नहीं कहते ! उठ-उठ कर गिर पड़ने को, उत्थान नहीं कहते ! दो-चार कदम चलने को, अभियान नहीं कहते ! सागर में तिरते तिनके को, जलयान नहीं कहते ! हर पढ़-लिख जाने वाले को, विद्धान नहीं कहते ! एक नजर मिल जाने को, पहचान नहीं कहते ! चिकनी-चुपडी बातों को, गुणगान नहीं कहते ! मंदिर में हर पत्थर को, भगवान नहीं कहते। --मुनि तरूणसागर
समाज तो सामायिक है,क्षणभंगुर है !रोज बदलता रहता है,आज कुछ-कल कुछ !भीड भेड है!

सदगुरू, तुम्हें भीड से मुक्त कराता है !सदगुरू, तुम्हें समाज से पार लेजाता है !सदगुरु तुम्हें शाश्वत के साथ जोड़ता है !
--रजनीश

20 सितम्बर, 2008

आमने सामने की नूरा कुश्ती चालू आहे !

सावधान, हो गई है शुरू आने-सामने की नूरा कुश्ती ! एक कहता है पोटा जैसा कानून लाओ ! दूसरा कहता है नहीं लायेगें ! इस नूरा कुश्ती में खमियाजा भुगतना पड रहा है आम अवाम को ! उसमें भी सब से ज्यादा नुकसान हो रहा है शोषित पीडित दबे कुचले वर्ग का !
कांग्रेस नहीं चाहती है और भारतीय जनता पार्टी चाहती है कि देश में आतंकवाद से मुकाबला करने के लिये पोटा जैसा सख्त कानून लाया जाये। आम राय है कि सख्त कानूनों से कोई फायदा नहीं । जो कानून बने हैं उनको सख्ती से लागू किया जाये। पंजाब में आतंकवाद को इन्हीं मौजूदा कानूनों को सख्ती से लागू कर खत्म किया गया था ! वर्तमान कानून आतंकवाद सहित गम्भीर अपराधों को रोकने के लिये सक्षम है। नया कानून बनाने से ज्यादा जरूरी है वर्तमान स्थापित कानूनों को सक्षमता से लागू करने के लिये चुस्त-दुरूस्त तन्त्र ! देश में केन्द्र हो या राज्य, दोनों ही स्तर पर शासन तन्त्र पूरी तरह नाकारा है। खुफिया तन्त्र और इन्वेस्टीगेशन ऐजेन्सियां भी पूरी तरह निकम्मी-नाकारा है।
काम तन्त्र को करना है। अगर तन्त्र में इच्छा शक्ति और क्षमता हो तो नये कानून बनाने की जरूरत ही नहीं है और तन्त्र निकम्मा-नाकारा हो तो नये कानून बनाने का भी कोई तुक नहीं ! इस लिये हमारे गणतन्त्र के तंत्र को चुस्त-दुरूस्त करना जरूरी है। गण याने कि आम अवाम तो सही है।अब वक्त आ गया है पक्ष-विपक्ष के सभी राजनेताओं को देश के शासनतन्त्र को चुस्त-दुरूस्त करने के लिये एकमत और एकजुट होने का। अमरीका में आतंकवाद-अपराध के मुद्दे पर राजनेता, प्रशासन और जनता एकमत हैं, तो हमारे यहां ऐसा क्यों नहीं हो सकता है ! अगर हमारे पक्ष-विपक्ष के राजनेता शासनतन्त्र को नहीं सुधारना चाहते हें तो देश की बागडोर फौज को सौंप दें। आम अवाम को कम से कम देश के स्वार्थी, सत्तालोलुप, भ्रष्ट और बेईमान राजनेताओं से और उनकी नूरा कुश्ती से तो छुटकारा मिलेगा ।
बेलगाम टीम