समस्या के समाधान का सर्वश्रेष्ठ उपाय यही है !समस्या की श्रृखला में एक नई समस्या जोड़ दो !जनता का ध्यान पुरानी समस्या से हटा उस ओर मोड दो !जो यथार्थ का प्रतिबिंब दे उस शीशे को फोड़ दो !आचार्य महाप्रज्ञ

कुछ सारहीन बेगारों को, श्रमदान नहीं कहते ! बंजर भूमि देने को, भूदान नहीं कहते ! कुछ जोड़-तोड़ करने को, निर्माण नहीं कहते ! उठ-उठ कर गिर पड़ने को, उत्थान नहीं कहते ! दो-चार कदम चलने को, अभियान नहीं कहते ! सागर में तिरते तिनके को, जलयान नहीं कहते ! हर पढ़-लिख जाने वाले को, विद्धान नहीं कहते ! एक नजर मिल जाने को, पहचान नहीं कहते ! चिकनी-चुपडी बातों को, गुणगान नहीं कहते ! मंदिर में हर पत्थर को, भगवान नहीं कहते। --मुनि तरूणसागर
समाज तो सामायिक है,क्षणभंगुर है !रोज बदलता रहता है,आज कुछ-कल कुछ !भीड भेड है!

सदगुरू, तुम्हें भीड से मुक्त कराता है !सदगुरू, तुम्हें समाज से पार लेजाता है !सदगुरु तुम्हें शाश्वत के साथ जोड़ता है !
--रजनीश

18 सितम्बर, 2008

देश के महान नेताओं क्या तैयार हो ?

नेशनल सिक्यूरिटी एक्ट को कारगर ढंग से लागू करने के लिये देश के कुछ महान नेता तैयार नहीं है, वे चाहते हैं पोटा जैसा सख्त कानून ! दोनों कानूनों में फर्क है। एक निरोधात्मक है तो दूसरा दण्ड दण्डात्मक ! नेशनल सिक्यूरिटी एक्ट के तहत संदिग्ध व्यक्ति को निरोधात्मक कार्यवाही के तहत एक साल के लिये निरूद्ध कर दिया जाता है ताकि वह अपराध न कर सके। पोटा इस लिये बनाया गया कि अपराध करने वाले संदिग्ध के खिलाफ जांच और दण्डात्मक कार्यवाही की जाये ! दोनों कानून अपनी-आपनी जगह पर है।
हिन्दुत्वादी संगठनों व भाजपा पोटा जैसा कानून लाना चाहती है और नेशनल सिक्यूरिटी एक्ट को दरकिनार करना चाहती है। जबकि कांग्रेस पोटा के खिलाफ और एनएसए के पक्ष में है। दोनों ही पक्ष आधे अधूरे कानून चाहते हैं। आखीर क्यों ? दोनों ही पक्ष इस "क्यों" का जवाब भी अच्छी तरह जानते हैं। निरोधात्मक कार्यवाही का दायरा बडा है। इसके दायरे में सभी चरमपंथी आते हैं, चाहे वे हिन्दु, मुसलमान, सिख, ईसाई, बौद्ध या जैन हों या अन्य कोई ! दण्डात्मक कार्यवाही में दायरा बहुत छोटा और विवादास्पद होता है। इसमें पुलिस अधिकारियों को अपनी मनमर्जी की पूरी छूट होती है और पुलिस अधिकारी अपने राजनैतिक आका की मनमर्जी के अनुरूप काम करने के लिये मजबूर होता है, जिससे आक्रोश पनपता है। राजनेता इसका फायदा उठाते हैं, जनता सजा भुगतती है।
अगर नेशनल सिक्यूरिटी एक्ट में ही निरोधात्मक प्रावधानों के साथ-साथ इन्वेस्टीगेशन एवं दण्डात्मक कार्यवाही हेतु धाराऐं जोड दी जायें ताकि निरोधात्मक कार्यवाही के साथ-साथ जांचोंपरान्त दण्डात्मक कार्यवाही करने का प्रावधान हो जाये, तो सारी समस्या खत्म हो जाये।अब तैय करना है हमारे देश के महान्-महान् नेताओं को कि क्या वे ऐसा प्रावधान करने के लिये एक मत हो सकते है ?
बेलगाम टीम