समस्या के समाधान का सर्वश्रेष्ठ उपाय यही है !समस्या की श्रृखला में एक नई समस्या जोड़ दो !जनता का ध्यान पुरानी समस्या से हटा उस ओर मोड दो !जो यथार्थ का प्रतिबिंब दे उस शीशे को फोड़ दो !आचार्य महाप्रज्ञ

कुछ सारहीन बेगारों को, श्रमदान नहीं कहते ! बंजर भूमि देने को, भूदान नहीं कहते ! कुछ जोड़-तोड़ करने को, निर्माण नहीं कहते ! उठ-उठ कर गिर पड़ने को, उत्थान नहीं कहते ! दो-चार कदम चलने को, अभियान नहीं कहते ! सागर में तिरते तिनके को, जलयान नहीं कहते ! हर पढ़-लिख जाने वाले को, विद्धान नहीं कहते ! एक नजर मिल जाने को, पहचान नहीं कहते ! चिकनी-चुपडी बातों को, गुणगान नहीं कहते ! मंदिर में हर पत्थर को, भगवान नहीं कहते। --मुनि तरूणसागर
समाज तो सामायिक है,क्षणभंगुर है !रोज बदलता रहता है,आज कुछ-कल कुछ !भीड भेड है!

सदगुरू, तुम्हें भीड से मुक्त कराता है !सदगुरू, तुम्हें समाज से पार लेजाता है !सदगुरु तुम्हें शाश्वत के साथ जोड़ता है !
--रजनीश

16 सितम्बर, 2008

मुद्दे पर तो बोलो खबरची महारथियों !

खबरची मीडिया जुटा है ड्रेस डिजाइन की खबरें छापने और दिखाने में गृहमंत्री शिवराज पाटिल ने कितनी बार कपडे बदले ! क्यूं बदले ? वगैहरा-वगैहरा ! असल मुद्दा है आतंकवादियों को तलाशने और उन्हें जेल की सलाखें के पीछे पहुंचाना ! ये कैसे हो सकता है, इस पर दिमाग लडाने और सुरक्षा ऐजेन्सियों को सहयोग करने के अपने दायीत्व को शायद खबरची भूल गये लगते हैं। आरूषि हत्याकाण्ड और अन्य कई मामलों में खबरची मीडिया की जो फजीयत हुई है, लगता है इन्होंने इससे सबक नहीं सीखा है। मनचले जिज्ञासू दर्शकों, जिनको मात्र तमाशा देखना होता है, उनके बूते पर टीआरपी बढाने मात्र से हमारे देश का भला नहीं होने वाला है, अब तो सम्भलो, खबरची भाईयों ! वक्त है देश के लिये कुछ कर गुजरने का। अपनी टीआरपी रेटिंग को छोडो और जुट जाओ आतंकवादियों को टूंढ निकालने की मुहिम में। अगर सरकारी अमला, राजनेता और मीडिया मिल कर आतंकवादियों के पीछे पड जाये तो देश का अवाम एकजुट होकर इनके साथ होगा, आतंकवाद को जड से साफ करने में !
बेलगाम टीम