पोटा-सोटा-लोटा कुछ भी नाम दीजिये !
बहुत शोर शराबा मचाया जा रहा है कि आतंकवाद के खिलाफ जंग के लिये पोटा जैसा या इससे भी सख्त कानून बना कर लागू किया जाये। पोटा कानून कुछ सालों तक देश में लागू भी रहा है। जितने समय पोटा देश में लागू रहा, क्या आतंकवाद थम गया था ? बिलकुल नहीं ! संसद पर हमला हुआ ! इसके अलावा भी काश्मीर सहित अन्य राज्य में आतंकवादी घटनाऐं हुई पोटा के रहते हुये भी !
दरअसल देश में जितने भी कानून बने हुये हैं वे वास्तव में अपराध रोकने के लिये नहीं हैं, बल्कि अपराधियों को दण्डित करने के लिये हैं। जिनका उपयोग-दुरूपयोग होता रहता है और उन पर आरोप-प्रत्यारोप चलते रहते हैं। देश में एक भी ऐसा कानून नहीं है जो अपराध रोकने के लिये बनाया गया हो या उस कानून में अपराध न होने देने की व्यवस्था हो !
देश में कानून और व्यवस्था की जो दयनीय स्थिति है, उसके लिये हमारी राजनैतिक व प्रशासनिक व्यवस्था जुम्मेदार है। जुम्मेदार है, पक्ष और विपक्ष के सारे राजनेता। पिछले साठ सालों में हम देश में ऐसी अपराध निरोधक व्यवस्था नहीं बना पाये जिसके तहत अपराध हो ही नहीं सके ! वहीं अपराध होने की स्थिति में उसके त्वरित इन्वेस्टीगेशन की व्यवस्था भी हमारे देश में नहीं है। देश में पुलिस, गुप्तचर सेवा, क्राइम इन्वेस्टीगेशन-डिटेक्शन के लिये अफसरों-कर्मचारियों की लम्बी चौडी फौज है, लेकिन न तो इस काम के लिये उन्हें उपयुक्त पुख्ता ट्रेनिंग दी जाती है, न ही उनमें काम के प्रति जज्बा है। कोढ में खाज यह है कि राजनैतिक हस्तक्षेप इतना अधिक है कि वे अपने दायीत्व को निभाने की क्षमता भी खो देते हैं। कानून आप सौ नहीं हजार बनाइये। पोटा-सोटा-लोटा कुछ भी नाम दीजिये ! लेकिन एक ऐसी स्वतन्त्र ऐजेन्सी जरूर बनाइये जिसका काम अपराध होने की परिस्थितियों को खत्म करना हो, ताकि अपराध ही न हो ! अपराध होने की स्थिति में वह बिना किसी तरह के दबाव के सक्षम कठोर कार्यवाही कर दोषियों को दण्डित करवा सके। हिम्मत है, राजनेताओं में ऐसी व्यवस्था बनाने हेतु एकजुट होने की ?
हीराचंद जैन hcjain41@yahoo.com
