समस्या के समाधान का सर्वश्रेष्ठ उपाय यही है !समस्या की श्रृखला में एक नई समस्या जोड़ दो !जनता का ध्यान पुरानी समस्या से हटा उस ओर मोड दो !जो यथार्थ का प्रतिबिंब दे उस शीशे को फोड़ दो !आचार्य महाप्रज्ञ

कुछ सारहीन बेगारों को, श्रमदान नहीं कहते ! बंजर भूमि देने को, भूदान नहीं कहते ! कुछ जोड़-तोड़ करने को, निर्माण नहीं कहते ! उठ-उठ कर गिर पड़ने को, उत्थान नहीं कहते ! दो-चार कदम चलने को, अभियान नहीं कहते ! सागर में तिरते तिनके को, जलयान नहीं कहते ! हर पढ़-लिख जाने वाले को, विद्धान नहीं कहते ! एक नजर मिल जाने को, पहचान नहीं कहते ! चिकनी-चुपडी बातों को, गुणगान नहीं कहते ! मंदिर में हर पत्थर को, भगवान नहीं कहते। --मुनि तरूणसागर
समाज तो सामायिक है,क्षणभंगुर है !रोज बदलता रहता है,आज कुछ-कल कुछ !भीड भेड है!

सदगुरू, तुम्हें भीड से मुक्त कराता है !सदगुरू, तुम्हें समाज से पार लेजाता है !सदगुरु तुम्हें शाश्वत के साथ जोड़ता है !
--रजनीश

18/8/2008

आडवानी चले जिन्ना से अमरनाथ की ओर !

चर्चा जोरों पर है कि भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवानी अपनी उदारवादी छवी बनाते-बनाते अब वापस कट्टर हिन्दूवादी बनने की कोशिश में जुट गये हैं और इस ही क्रम में वे एक नई रथ यात्रा की जुगत बैठा रहे हैं। इस बार उनका इरादा रामेश्वरम् से अमरनाथ की रथयात्रा करने का बताया जा रहा है। आडवानी की अयोध्या यात्रा के खून से रंगे दु:खदायी-मानवीय पीडा के क्षण आज भी देश की जनता नहीं भूली है। नहीं भूली है उन क्षणों का वे मातायें, जिन्होंने अपने लाल गंवाये ! वे पत्नियां, जिनकी मांग का सिन्दूर उजड गया ! उन मासूमों के जहन में आडवानी की अयोध्या यात्रा नासूर की तरह जमी हैं, जो अनाथ हो गये ! अब आडवानी अपनी मण्डली और आरएसएस, विश्वहिन्दू परिषद् सहित संद्य के अग्रिम संगठनों के साथ मिल कर देश में हिन्दूओं और मुसलमानों के बीच वैमनस्यता की खाई चौडी कर, हिन्दू वोट बैंक को एकजूट कर, दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने की जुगत बैठा रहे हैं। इस के लिये आडवानी ने रास्ता चुना है, रामेश्वरम् से अमरनाथ रथ यात्रा का ! सत्ता के भूखे इन नस्लवादियों की नजर में देश के सामने मौजूदा चुनौतियों, बदहाल अर्थव्यवस्था, देश के आन्तरिक व बाहरी मामलों में बढ रही अमरीकी दखलंदाजी, मंहगाई सहित अन्य गम्भीर मुददों की कोई अहमियत ही नहीं है। जनता पूंजीपतियों-सामन्तवादियों के अन्याय-अत्याचारों से त्रस्त है, लेकिन ये देश में अलगाव की आग फैला कर सत्ता पर काबिज होने की जुगत बैठा रहे हैं। इन नस्लवादियों को समझ लेना चाहिये कि वे जाने अनजाने में देश को खूनी क्रान्ति के रास्ते पर लेजा रहे हैं और शायद आडवानी की रथ यात्रा से ही सम्पूर्ण क्रान्ति की शुरूआत हो जाये ! हम यही उम्मीद कर सकते हैं कि हालात हमें खूनी क्रान्ति की तरफ न ले जायें।
हीराचंद जैन
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