समस्या के समाधान का सर्वश्रेष्ठ उपाय यही है !समस्या की श्रृखला में एक नई समस्या जोड़ दो !जनता का ध्यान पुरानी समस्या से हटा उस ओर मोड दो !जो यथार्थ का प्रतिबिंब दे उस शीशे को फोड़ दो !आचार्य महाप्रज्ञ

कुछ सारहीन बेगारों को, श्रमदान नहीं कहते ! बंजर भूमि देने को, भूदान नहीं कहते ! कुछ जोड़-तोड़ करने को, निर्माण नहीं कहते ! उठ-उठ कर गिर पड़ने को, उत्थान नहीं कहते ! दो-चार कदम चलने को, अभियान नहीं कहते ! सागर में तिरते तिनके को, जलयान नहीं कहते ! हर पढ़-लिख जाने वाले को, विद्धान नहीं कहते ! एक नजर मिल जाने को, पहचान नहीं कहते ! चिकनी-चुपडी बातों को, गुणगान नहीं कहते ! मंदिर में हर पत्थर को, भगवान नहीं कहते। --मुनि तरूणसागर
समाज तो सामायिक है,क्षणभंगुर है !रोज बदलता रहता है,आज कुछ-कल कुछ !भीड भेड है!

सदगुरू, तुम्हें भीड से मुक्त कराता है !सदगुरू, तुम्हें समाज से पार लेजाता है !सदगुरु तुम्हें शाश्वत के साथ जोड़ता है !
--रजनीश

17/8/2008

रक्षाबन्धन पर भाई पिटे-बहिने अपमानित हुई !

राजस्थान की राजधानी जयपुर की सेन्ट्रल जेल परिसर में रक्षाबन्धन पर भाइयों को राखी बांधने आई बहिनों को अपमानित होना पडा और परिजनों को पुलिस के डण्डे खाने पडे। यह सब हुआ जेल अधिकारियों के गैर जुम्मेदारान लालफीताशाही रवैय्ये के कारण। जब सारी दुनिया को यह पता है कि रक्षाबंधन पर बहिने अपने भाई को राखी बांधती है और जेल प्रशासन की जानकारी में था कि रक्षाबंधन पर भीड जुटेगी और बहिने परम्परागत सामाजिक तरीके से भाइयों को राखी बान्धेगी। ऐसी स्थिति में भाईयों को जंगले में खडा कर राखी बन्धवाने के लिये मजबूर करने का क्या तुक था ! दूसरे कई तरीके थे शालीनता से जेल में इस पवित्र पर्व को मनाने हेतु इन्तजाम करने के ! लेकिन लालफीताशाही-जेल में पनप रहे भ्रष्टाचार से आगे नौकरशाही को कुछ नजर ही नहीं आता !
शर्मनाक है जेल प्रशासन का रवैय्या ! शर्मनाक इस लिये भी है कि राज्य की मुख्यमंत्री और जेल अधीक्षक भी महिलाऐं हैं। क्या इनके दिलों में मानवीय संवेदनाऐं खत्म हो चुकी है ?
हीराचंद जैन
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