समस्या के समाधान का सर्वश्रेष्ठ उपाय यही है !समस्या की श्रृखला में एक नई समस्या जोड़ दो !जनता का ध्यान पुरानी समस्या से हटा उस ओर मोड दो !जो यथार्थ का प्रतिबिंब दे उस शीशे को फोड़ दो !आचार्य महाप्रज्ञ

कुछ सारहीन बेगारों को, श्रमदान नहीं कहते ! बंजर भूमि देने को, भूदान नहीं कहते ! कुछ जोड़-तोड़ करने को, निर्माण नहीं कहते ! उठ-उठ कर गिर पड़ने को, उत्थान नहीं कहते ! दो-चार कदम चलने को, अभियान नहीं कहते ! सागर में तिरते तिनके को, जलयान नहीं कहते ! हर पढ़-लिख जाने वाले को, विद्धान नहीं कहते ! एक नजर मिल जाने को, पहचान नहीं कहते ! चिकनी-चुपडी बातों को, गुणगान नहीं कहते ! मंदिर में हर पत्थर को, भगवान नहीं कहते। --मुनि तरूणसागर
समाज तो सामायिक है,क्षणभंगुर है !रोज बदलता रहता है,आज कुछ-कल कुछ !भीड भेड है!

सदगुरू, तुम्हें भीड से मुक्त कराता है !सदगुरू, तुम्हें समाज से पार लेजाता है !सदगुरु तुम्हें शाश्वत के साथ जोड़ता है !
--रजनीश

12/8/2008

भारत गणतन्त्र को खूनी क्रान्ति के आगोश में मत ले जाओ नस्लवादियों !

जम्मू-काश्मीर श्राइन बोर्ड जमीन विवाद की आड में देश में साम्प्रदायिक सद् भाव को तार-तार कर दिल्ली की गद्दी हांसिल करने के मंसूबे संजोये बैठे नस्लवादी विचारधारा के संगठनों और समूहों को वक्त रहते समझ लेना चाहिये कि वे जाने-अनजाने में देश में खूनी क्रान्ति की बुनियाद जमा रहे हैं। जम्मू इलाके में शेष काश्मीर की आर्थिक नाकेबन्दी करने वाले उपद्रवियों ने सोचा था कि जम्मू क्षेत्र में काश्मीर की आर्थिक नाकेबन्दी करने से काश्मीर के लोगों पर मुसीबत का पहाड टूटेगा ! उपद्रव और अराजकता के तांडव के आगे काश्मीर के लोग झुक जायेगें और दबाव बना कर वे श्राइन बोर्ड जमीन प्रकरण में अपनी मनमर्जी का फैंसला सरकार से करवालेगें ! लालकृष्ण आडवानी और उनकी मण्डली ने जुगत बैठाई थी कि श्राइन बोर्ड जमीन प्रकरण को लेकर पूरे देश में भ्रम की स्थिति पैदा कर दी जाये और राष्ट्रीय स्वंयसेवक संद्य, भाजपा, विश्वहिन्दू परिषद् सहित आरएसएस के सभी अग्रिम संगठन मिल कर देश में ऐसी स्थिति पैदा कर दें कि हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच वैमनस्यता की खाई चौडी हो जाये ताकि हिन्दू वोट बैंक को कन्सोलीडेट कर दिल्ली की सत्ता पर कब्जा जमा लिया जाये।

सत्ता के भूखे इन नस्लवादियों की करतूतों का फायदा काश्मीर में अब अलगाववादी उठायेगें और काश्मीर को भारत से अलग करने की राग अलापेगें ! शुरूआत मुजफराबाद मार्च से हो चुकी है और हुरियत के एक वरिष्ठ नेता शेख अब्दुल अजीज की मौत से पूरी काश्मीर घाटी धधक रही है। श्राइन बोर्ड जमीन विवाद को लेकर आर्थिक नाकेबन्दी करना निहायत गैर जुम्मेदारान हरकत है। इस ही का नतीजा है कि काश्मीर के ट्रेडर्स ऐसोसियेशनों ने चेतावनी दी थी कि वे अपना माल लेकर सीमापार मुजफराबाद जायेंगे ! लेकिन हिन्दुत्ववादियों ने इस तरफ इस लिये ध्यान नहीं दिया कि उन्हें हालात बिगाड कर दिल्ली की गद्दी हांसिल जो करनी है।

जिस जमीन के लिये हिन्दुत्ववादी काश्मीर की आर्थिक नाकेबन्दी कर रहे हैं, वह तो अमरनाथ यात्रियों के ठहरने, विश्राम करने और आगे यात्रा के लिये कैम्प स्थल के रूप में काम आ रही है। जमीन सरकार की है ! काश्मीर का एक भी मुसलमान इस पर अपना कोई हक नहीं जता रहा है। सभी जानते हैं कि उनकी रोजी-रोटी इस यात्रा से जुडी है और यात्री भी जानते हैं कि स्थानीय मुसलमान भाइयों की मदद से ही यह दुर्गम यात्रा सम्भव है। ऐसी स्थिति में जम्मू-काश्मीर में हिन्दुओं-मुसलमानों में अलगाव की आग भडकाने का क्या तुक है। यह स्थिति भी साफ है कि जम्मू में काश्मीर की आर्थिक नाकेबन्दी करने से परेशान काश्मीर के लोग अपना माल कहीं तो बेचेगें ही। भारत में या पाकिस्तान में ! उन्हें अपना माल बेचने से मतलब वह कहीं भी बिके ! लेकिन हिन्दुत्ववादियों ने आर्थिक नाकेबन्दी कर अलगाववादियों के हाथ में झुंझना थमा दिया है और शेख अब्दुल अजीज की मौत इसे नौबत का नगाडा बना देगी।

अभी भी वक्त है सम्भल जाओ नस्लवादियों वर्ना काश्मीर के साथ-साथ पूरा देश खूनी क्रान्ति की चपेट में आ जायेगा !

हीराचंद जैन

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