समस्या के समाधान का सर्वश्रेष्ठ उपाय यही है !समस्या की श्रृखला में एक नई समस्या जोड़ दो !जनता का ध्यान पुरानी समस्या से हटा उस ओर मोड दो !जो यथार्थ का प्रतिबिंब दे उस शीशे को फोड़ दो !आचार्य महाप्रज्ञ

कुछ सारहीन बेगारों को, श्रमदान नहीं कहते ! बंजर भूमि देने को, भूदान नहीं कहते ! कुछ जोड़-तोड़ करने को, निर्माण नहीं कहते ! उठ-उठ कर गिर पड़ने को, उत्थान नहीं कहते ! दो-चार कदम चलने को, अभियान नहीं कहते ! सागर में तिरते तिनके को, जलयान नहीं कहते ! हर पढ़-लिख जाने वाले को, विद्धान नहीं कहते ! एक नजर मिल जाने को, पहचान नहीं कहते ! चिकनी-चुपडी बातों को, गुणगान नहीं कहते ! मंदिर में हर पत्थर को, भगवान नहीं कहते। --मुनि तरूणसागर
समाज तो सामायिक है,क्षणभंगुर है !रोज बदलता रहता है,आज कुछ-कल कुछ !भीड भेड है!

सदगुरू, तुम्हें भीड से मुक्त कराता है !सदगुरू, तुम्हें समाज से पार लेजाता है !सदगुरु तुम्हें शाश्वत के साथ जोड़ता है !
--रजनीश

11/8/2008

राजस्थान में शिक्षा विभाग का नाम बदल कर भ्रष्टाचार और चापलूस विभाग कर देना चाहिये !

लीजिये राजस्थान में राजनैतिक शुचिता का आन्दोलन शुरू करने के लिये भाजपा के वरिष्ठ नेता ललित किशोर चतुर्वेदी को भाजपानीत श्रीमती वसुन्धरा राजे सरकार ने एक नया मुद्दा और थमा दिया है। प्रिन्ट मीडिया में प्रकाशित "अब खुश हूं मैं, क्योंकि अब मैं भी कुछ बन कर दिखाऊंगी" शीर्षक से 11 अगस्त, 2008 को प्रकाशित सरकारी विज्ञापन में बताया गया है कि एक किलोमीटर परिधि में प्राथमिक स्कूल, प्रारम्भिक शिक्षा में 63 हजार शिक्षकों की नियुक्ति, 82 हजार स्कूलों में 85 लाख से अधिक बच्चों को पौष्टिक मिडडे मील, निशुल्क शिक्षा, किताबें, स्कूल ड्रेस, स्कूल बैग, साइकिल-स्कूटी सहित अनेक सुविधायें !
विज्ञापन की विषयवस्तु की गम्भीरता से अगर सही जांच हो तो सरकार के जिस विभाग ने भी यह विज्ञापन जारी किया है, उनके अफसरों के चेहरे पर हवाइयां उडती नजर आयेगीं ! अगर 85 लाख बच्चे स्कूलों में पढते और मिडडे मील लेते हैं तो 70 हजार वैग ही सितम्बर, 2008 में बांटने के लिये क्यों खरीदे जा रहे हैं ? हुजूर-ए-आला ! इससे तो छात्रों के नामांकन संख्या का घोटाला साफ-साफ सामने नजर आ रहा है, वह भी बिना चश्में के। एक किलोमीटर परिधि में प्राथमिक स्कूल कहां हैं ? बतायेगें शिक्षा विभाग के अधिकारी ! स्कूल बैग खरीद घोटाले के चलते आज तक नहीं बंटे स्कूल बैग ! बच्चों को स्कूल ड्रॆस कहां बटीं, यह तो विज्ञापनदाता विभाग-शिक्षा विभाग की अलमारियों में बंद कोई फाईल ही बता सकती है। क्योंकि बच्चों और उनके माता-पिता को तो पता नहीं है, उन्होंने तो पैसे देकर अपने लाडलों की स्कूल ड्रॆस बाजार से खरीदी है। खरीदे हैं स्कूल बैग बाजार से ! स्कूटी-साइकिलों की खरीद हुई होगी, लेकिन उनका वितरण कहां हुआ, हुजूर प्रमुख शिक्षा सचिव, शिक्षा सचिव, निदेशक, उपनिदेशक और जिला शिक्षा अधिकारी महोदय जी ! आप लोग ही फाइलों में ढूंढ कर बता सकते हैं, हकीकत !
अब राजस्थान में शिक्षा के बद् से बद्तर हालात पर जरा गौर फरमालें ! सत्र् 2007-2008 में स्कूली शिक्षा की जो बद्हाली रही उस का अन्दाज राज्य के माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के रिजल्ट 2008 से साफ हो जाता है। राज्य की सत्यानाशी शिक्षण व्यवस्था ने बोर्ड परीक्षा में बैठे लगभग आधे छात्रों का एक साल बर्बाद कर दिया ! बची-खुची कसर जिलों के आठवीं कक्षा बोर्डों ने निकाल दी। तबाह तो हुये बच्चे ! उनकी जिन्दगी का एक कीमती साल खराब हो गया। शिक्षा विभाग के भ्रष्ट, बे-इमान, चापलूस और नाकारा अफसर अपने वेतन-भत्तों की मोटी रकम महिने-दर-महिने उठाते रहे और चापलूसी करते रहे अपने आकाओं की ! ये गैर जुम्मेदार, लगे रहे शिक्षा विभाग में बह रही भ्रष्टाचार की मंदगी में डुबकी लगाने में !सत्र् 2008-2009, शिक्षा विभाग के निकम्मे अफसरों की नालायकी के कारण विलम्ब से एक मई, 2008 से शुरू हुआ ! उत्सवों-महाउत्सवों की नौटंकी में पूरा मई माह गुजर गया। बच्चों को किताबें वक्त पर नहीं दे पाया शिक्षा विभाग ! फिर शिक्षकों के तबादलों की महाकथा शुरू हुई और आज भी द्रोपदी के चीर की तरह खिंचती ही चली जा रही है, थमने का नाम ही नहीं ले रही। भाजपा के बडे नेता, छुट्भैय्या नेता-नांगले लगे हैं तबादलों की इस कीचड भरी महाकथा में डूबकी लगा कर चांदी चमकाने में। नये शिक्षकों की नियुक्ति में भी अन्धेरगर्दी चालू आहे ! स्कूली बच्चों को बांटे जाने वाले 70 लाख बैग कहां है ? विज्ञापन प्रचार-प्रसार चालू आहे ! बैग भ्रष्टाचार की छाया में गायब ! जब आजतक बैग बंटे ही नहीं तो प्रचार कैसे और क्यों ?
जरा राजस्थान में एकेडेमिक-शैक्षणिक स्तर की बात करलें ! मास्टरों से राजस्थान का इतिहास लिखाने के हवाई किले बनाने वाले तत्कालीन शिक्षामंत्री धनश्याम तिवाडी खुद शिक्षा विभाग का इतिहास बन कर रह गये। शिक्षक तो खुश हैं, लेकिन आरएसएस तथा भाजपाई शिक्षक नेताओं को मलाल है कि उनका शिक्षक से राजस्थान का इतिहासकार बनने का सपना हवा-हवाई हो गया ! समय पर सत्र् शुरू नहीं हुआ, स्कूलों में शिक्षक नदारद, किताबें नहीं मिली, उत्सव-महोत्सव में वक्त बरबाद हो गया। अब 15 अगस्त पर सरकारी जश्न ! पढाई की हो गई ऐसी की तैसी ! ऊपर से टैस्ट 18 अगस्त से सिर पर ! अब बच्चों के सामने टैस्ट में फेल होने के अलावा क्या बचा है, बतायें शिक्षा विभाग के सचिवालय में बैठे आला अफसरों से लेकर जिले में लगी अफसरों की फौज ? उन्हें तो भाजपा को चुनाव जिताने की मुहिम से ही फुरसत नहीं है। इन निकम्मे अफसरों को क्या लेनादेना बच्चों के भविष्य से ?
सरकार हजारों स्कूलों को माध्यमिक विद्यालय में क्रमोन्नत करने जा रही है। सत्र् शुरू हो चुका है, पढाई चालू आहे ! लेकिन सरकार स्कूल क्रमोन्नत नहीं कर पाई क्योंकि भाजपा को चुनावी फायदा जो पहुंचाना था। अब अगले महिने सितम्बर से पहिले 9वीं कक्षा इन स्कूलों में खुलने वाली नहीं है। शिक्षक नियुक्त होंगे, साजोसामान खरीदा जायेगा। फिर फरवरी, 2009 तक चुनावी फंदा ! इन क्रमोन्नत स्कूलों में जो बच्चे एडमीशन लेगें, उनका तो साल बरबाद होना तैय है ही !
शिक्षा विभाग के आला अफसरों से जरा पूछिये कि राजस्थान में कौनसी शिक्षा पद्धति के माध्यम से प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षण की व्यवस्था है ? मैथड आफ टीचिंग-शिक्षण का तरीका क्या है ? शिक्षक-छात्र अनुपात 1:40 है क्या ? साल में कुल कितने दिन शिक्षण कार्य होना चाहिये और होता कितने दिन है ? स्कूलों में लागू पाठ्य पुस्तकों की विषय वस्तु के चयन के क्या स्थायी मानदण्ड हैं ? क्या स्कूलों में लागू पाठ्यक्रम शिक्षा के मानदण्डों को पूरा करते हैं ? पासबुकों-कुंजियों पर प्रतिबन्ध क्यों नहीं लगाया है ? क्या जिले में जिला शिक्षा अधिकारियों के आधीन शैक्षिक प्रकोष्ठ कार्यरत है ? क्या काम करते हैं ये शिक्षा प्रकोष्ठ ? शिक्षकों को पाठ्यक्रम के अनुसार अपडेट करने की क्या व्यवस्था है ? जब इन सवालों के जवाब आप शिक्षा विभाग के आला अफसरों से पूछेगें तो हवाइयां उडेगीं उनके चेहरों पर ! तोते उड जायेगें इन हुक्कामों के !
शिक्षण संस्थाओं के आचार्यों-प्राचार्यों -प्रधानाचार्यों-प्रधानाध्यापकों के हालात तो इन से भी गये गुजरे हैं। सारा वक्त लोकल पालिटिक्स, खरीद के फर्जी बिलों और उनके एडजेस्टमेंट और निजी कामों में निकल जाता है, स्कूल एडमिनिस्ट्रेशन के लिये उनके पास अगर थोडा बहुत वक्त भूलचूक में बच भी जाता है तो अपने आकाओं की जी हुजूरी में गुजार देते हैं। ये हाल तो सरकारी स्कूलों के हैं जनाबा ! अब आगे-- गैर सरकारी स्कूलों के हाल तो इन से भी गये गुजरे हैं ! सेन्ट्रल बोर्ड आफ सैकण्डरी एज्यूकेशन से सम्बद्धता प्राप्त करने के लिये स्कूलों का कक्षा 8 तक राज्य सरकार से मान्यता प्राप्त होना अनिवार्य है। अब बतायें शिक्षा विभाग के अफसर कि केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से सम्बद्धता प्राप्त कितने स्कूल राज्य शिक्षा विभाग से मान्यता प्राप्त है और उनके वार्षिक निरीक्षण होते हैं क्या ? उनको खुद को ही पता नहीं होगा इसकी असलियत का ! बोलती बन्द हो जायेगी शिक्षा विभाग के अफसरों की ! कानूनों की धज्जियां उडा कर एक ही मान्यता/सम्बद्धता के तहत कई ब्रांचे चलती हैं, बच्चे पढते कहीं है, हाजरी कहीं बताई जाती है ! पूरी ढोल में पोल चल रही है इस भ्रष्ट महकमें में ! कौन लगाम कसे ! भाजपा को चुनाव जो जीतना है इनके बूते पर ! राजस्थान सरकार से मान्यता एवं अनुदान प्राप्त स्कूलों के हालातों की गहराई से जांच की जाये तो जांच अधिकारियों के ही छक्के छूट जायेगें। 1956 में पंजीकृत मान्यता अनुदान प्राप्त संस्था का अनुदान 1979 में पंजीकृत संस्था की उन स्कूलों को दिया जा रहा है, जिन्हें कभी शिक्षा विभाग और राजस्थान सरकार ने अनुदान ही मन्जूर नहीं किया। साफ-साफ शिकायतें राज्य सरकार के पास जांच के लिये पडी है। करोडों रूपयों के अनुदान का घोटाला है जिसे शिक्षा विभाग के अफसर दबा कर बैठे हैं ! उनकी हिम्मत नहीं है कि वे उस पर हाथ डालें, करोडों रूपयों की सरकारी जमीन पर कब्जा है। जिस संस्था को सरकार ने अनुदान ही मंजूर नहीं किया, उसे करोडों रूपये अनुदान में सरकार ने दे दिये और दिये जा रही है आखीर क्यों ? क्योंकि इसके तार भू-माफिया, टैक्स चोरों के एक समुह से जुडे हैं। तार जुडे हैं ऐसे सन्त से जिन्हें सरकार ने स्टेट गैस्ट का दर्जा दे रखा है। राजस्थान बोर्ड आफ सैकण्डरी एज्यूकेशन द्वारा गलत स्कूलों को मान्यता देने के मामले/शिकायतें भी सरकार के पास पडी हैं। उन्हें ठण्डे बस्ते में डाल कर आलमारियों में बन्द कर दिया गया है। शिक्षा विभाग के भ्रष्ट अफसरों की औकात नहीं है कि वे कार्यवाही करें। क्योंकि वे खुद भ्रष्टाचार में लिप्त तो हैं ही, उनके माध्यम से भाजपा-आरएसएस को मोटा चुनावी चन्दा जो मिलता है। आप ही बतायें अब हम वर्तमान शिक्षा मंत्री से क्या उम्मीद करें ! उनके लिये तो आम अवाम में स्पष्ट चर्चा है कि जब भी इन्होंने मंत्री पद सम्भाला तभी भाजपा राजस्थान में हारी और सत्ता परिवर्तन हुआ !
हमारी गुजारिश तो यही है कि अब शिक्षा विभाग का नाम बदल कर "राजस्थान भ्रष्टाचार और चापलूसों का विभाग" कर देना चाहिये ! वैसे भी राज्य सरकार ने भ्रष्टाचार निरोधक विभाग का नाम बदल कर "राजस्थान स्टेट ब्यूरो आफ इन्वेस्टीगेशन" कर दिया है अत: भ्रष्टाचार शब्द से जुडा एक विभाग तो होना ही चाहिये। कथा पूराण तो लम्बा चौडा है, लेकिन अभी बस इतनाही ! जय जय राजस्थान !
हीराचंद जैन
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