10/8/2008
भाजपा नहीं चाहती है राजस्थान में गुर्जर आरक्षण !
राजस्थान की भाजपानीत श्रीमती वसुन्धरा राजे सरकार ने पिछली 28 जुलाई को गुर्जर आरक्षण के लिये एक गोलमोल चिट्ठी केन्द्र सरकार को लिख भेजी और गुर्जरों को अनुसूचित जनजाति में आरक्षण मुद्दे को केन्द्र सरकार के पाले में डाल दिया। इस तरह गुर्जरों को गुमराह करने की राज्य सरकार ने पुरजोर कोशिश की। ऐसा लगने भी लगा था कि राजस्थान सरकार गुर्जरों को गुमराह करने में सफल हो गई ! लेकिन केन्द्र सरकार ने अब फिर राज्य सरकार को पटकनी लगा दी है। केन्द्र सरकार ने राजस्थान सरकार को साफ-साफ जवाब दे दिया है कि राजस्थान सरकार केन्द्र सरकार की 3 दिसम्बर, 1999 की चिट्ठी का दो टूक जवाब भेजे कि "गुर्जरों को अनुसूचित जनजाति में शामिल करना है या नहीं ! अगर गुर्जरों को अनुसूचित जनजाति में शामिल करना है तो बताये कि राज्य के किसी क्षेत्र विशेष में या पूरे राजस्थान में !" अब भाजपानीत राजस्थान की वसुन्धरा राजे सरकार को साफ-साफ सिफारिश करनी होगी कि गुर्जरों को अनुसूचित जनजाति में आरक्षण दिया जाना चाहिये या नहीं। केन्द्र सरकार ने पहिले भी राज्य सरकार से स्पष्ट सिफारिश भेजने के लिये कहा था, लेकिन राजस्थान सरकार ने नहीं भेजी और बहानेबाजी कर आम अवाम को गुमराह करती रही। संविधान के अनुछेद 342 के अनुसार किसी वर्ग विशेष को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने हेतु उस जाति को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के लक्षित एवं स्पष्ट प्रस्ताव राज्य सरकार द्वारा केन्द्र सरकार को भिजवाने होते हैं। राज्य सरकार के इस लक्षित प्रस्ताव पर रजिस्ट्रार जनरल भारत सरकार उस जाति-वर्ग को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने सम्बन्धी संवैधानिक-वैद्यानिक प्रक्रिया के आधीन कार्यवाही शुरू करते हैं और प्रक्रियाके अन्तिम चरण में मंत्री मण्डल में निर्णय के साथ उस जाति-वर्ग को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने हेतु प्रस्ताव/बिल संसद में पेश किया जाता है। अन्तिम निर्णय संसद में होता है। लेकिन यहां तो सारा का सारा चौपट राज है। संविधान के अनुच्छेद 342 में वर्णित एवं निर्धारित संवैधानिक-वैधानिक प्रक्रिया का साफ-साफ उलंद्यन कर राजस्थान सरकार गुर्जरों को अनुसूचति जनजाति में शामिल करने के लिये स्पष्ट प्रस्ताव ही नहीं भेज रही है। भाजपा और भाजपानीत श्रीमती वसुन्धरा राजे सरकार गुर्जरों को अनुसूचित जनजाति में आरक्षण देना ही नहीं चाहते है। उनका प्रयास केवल गुर्जरों में फूट डालकर चुनावों में उनके वोट हांसिल करना मात्र है।
हीराचंद जैन
