समस्या के समाधान का सर्वश्रेष्ठ उपाय यही है !समस्या की श्रृखला में एक नई समस्या जोड़ दो !जनता का ध्यान पुरानी समस्या से हटा उस ओर मोड दो !जो यथार्थ का प्रतिबिंब दे उस शीशे को फोड़ दो !आचार्य महाप्रज्ञ

कुछ सारहीन बेगारों को, श्रमदान नहीं कहते ! बंजर भूमि देने को, भूदान नहीं कहते ! कुछ जोड़-तोड़ करने को, निर्माण नहीं कहते ! उठ-उठ कर गिर पड़ने को, उत्थान नहीं कहते ! दो-चार कदम चलने को, अभियान नहीं कहते ! सागर में तिरते तिनके को, जलयान नहीं कहते ! हर पढ़-लिख जाने वाले को, विद्धान नहीं कहते ! एक नजर मिल जाने को, पहचान नहीं कहते ! चिकनी-चुपडी बातों को, गुणगान नहीं कहते ! मंदिर में हर पत्थर को, भगवान नहीं कहते। --मुनि तरूणसागर
समाज तो सामायिक है,क्षणभंगुर है !रोज बदलता रहता है,आज कुछ-कल कुछ !भीड भेड है!

सदगुरू, तुम्हें भीड से मुक्त कराता है !सदगुरू, तुम्हें समाज से पार लेजाता है !सदगुरु तुम्हें शाश्वत के साथ जोड़ता है !
--रजनीश

19/7/2008
हमें हमारे दीपेश-अभिषेक वापस दे दो आसाराम बापू !
आसाराम गुरूकुल के दो मासूम बच्चों दीपेश-व अभिषेक की अकाल मौत से गुजरात का ही नहीं देश का आम अवाम गुस्साया है। परिजनों ने दोनों बच्चों की हत्या का आरोप लगाया है और पुलिस मामले की लीपापोती में जुटी है। वहीं गुजरात सरकार भी मौन साधे तमाशा देख रही है। उसकी हिम्मत नहीं है कि आसाराम बापू के खिलाफ कार्यवाही कर सके ! जब आसाराम बापू दीपेश के घर गये तो स्थानीय लोगों ने उन्हें घेर कर खूब खरी खोटी सुनाई। नतीजन तीन मिनट में ही आराराम बापू वहां से खिसक लिये और उन्होंने वहां पर जिन-जिन चीजों को छुआ, परिजनों ने उन्हें आग के हवाले कर दिया। आसाराम आश्रम के लोगों ने प्रेस कांफ्रेंस के लिये आमन्त्रित किये गये मीडियाकर्मियों से भी मारपीट की, उनके कैमरे तोड दिये और ओबी वैनों में तोडफोड की। महिला मीडियाकर्मियों को भी नहीं बख्शा ! यही नहीं उन्होंने पुलिस के वाहनों पर भी पत्थर फैंके और नुकसान पहुचाया। पुलिस तमाशबीन और सरकार मौन रही और आसाराम बापू के लोग बेलगाम !
भारत एक निरपेक्ष देश है। लेकिन पिछले कुछ सालों से धर्म और मजहब के नाम पर अपने आपको साधुसन्त का दर्जा देनेवालों ने राष्ट्रीय स्वंय सेवक संद्य के अग्रिम संगठनों और भारतीय जनता पार्टी की सरकारों की शह पर सरकार से अपने नाम कौडियों के भाव जमीने अलाट करवा कर बडे-बडे मठ बना लिये हैं और जनता के गाढे पसीने की कमाईके बूते पर अपनी सल्तनते बनाली हैं। कानून और कानून के शासन से बडा समझने लगे हैं अपने आपको ये बेलगाम ! क्योंकि सत्ता प्राप्ति के लिये तरसते सत्ता लोलुपों के लिये नोटों और वोटों का जुगाड जो करते हैं ये बेलगाम !क्या आसाराम बापू दीपेश और अभिषेक को जिन्दा कर उनके परिवार को लौटा सकते हैं ! अगर नही तो फिर प्रायश्चित के रूप में तत्काल अपनी, मठों-आश्रमों और गुरूकुलों के नाम पर खडी की गई, सल्तनत को त्याग कर अपने आपको सन्यासी साबित करना होगा ! हिम्मत है ऐसा करने की आसाराम बापू में ! क्योंकि जनता सब कुछ जानती है।
हीराचंद जैन
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