समस्या के समाधान का सर्वश्रेष्ठ उपाय यही है !समस्या की श्रृखला में एक नई समस्या जोड़ दो !जनता का ध्यान पुरानी समस्या से हटा उस ओर मोड दो !जो यथार्थ का प्रतिबिंब दे उस शीशे को फोड़ दो !आचार्य महाप्रज्ञ

कुछ सारहीन बेगारों को, श्रमदान नहीं कहते ! बंजर भूमि देने को, भूदान नहीं कहते ! कुछ जोड़-तोड़ करने को, निर्माण नहीं कहते ! उठ-उठ कर गिर पड़ने को, उत्थान नहीं कहते ! दो-चार कदम चलने को, अभियान नहीं कहते ! सागर में तिरते तिनके को, जलयान नहीं कहते ! हर पढ़-लिख जाने वाले को, विद्धान नहीं कहते ! एक नजर मिल जाने को, पहचान नहीं कहते ! चिकनी-चुपडी बातों को, गुणगान नहीं कहते ! मंदिर में हर पत्थर को, भगवान नहीं कहते। --मुनि तरूणसागर
समाज तो सामायिक है,क्षणभंगुर है !रोज बदलता रहता है,आज कुछ-कल कुछ !भीड भेड है!

सदगुरू, तुम्हें भीड से मुक्त कराता है !सदगुरू, तुम्हें समाज से पार लेजाता है !सदगुरु तुम्हें शाश्वत के साथ जोड़ता है !
--रजनीश

31/7/2008
प्रधानमंत्री जी पीएफ मैनेजमैंट के साथ-साथ अपनी सरकार चलाने का ठेका भी अम्बानियों को दे दो !

कर्मचारी भविष्यनिधी के प्रबन्धन का काम निजी हाथों में देने का सरकारी निर्णय पूरी तरह बेतुका है। लेकिन इससे भी अधिक गैर जुम्मेदारान निर्णय इस कोष के प्रबन्धन का काम एचएसबीसी और अनिल अम्बानी के स्वामित्व वाली रिलायंस केपिटल को देने का है। अम्बानियों को सैन्य क्षेत्र में मोबाईल टावर लगाने के ठेके भी दिये जा रहे हैं। ये वे ही अम्बानी हैं जिन्हें ईराक के तत्कालीन राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन ने ईराक में संचार व्यवस्था कायम करने का ठेका दिया था और इनके द्वारा स्थापित संचार व्यवस्था ही सद्दाम हुसैन के पतन का कारण बनी और ईराक पर अमरीका का कब्जा हुआ। आज अमरीका की गुलाम मनमोन सिंह सरकार और इसका पिछलग्गू पीएफ न्यासी बोर्ड मेहनतकश श्रमिकों के गाढे पसीने की दो लाख अस्सी हजार करोड रूपये की पूंजी इन अमरीकी परस्त पूंजीपतियों के कदमों में ऐसे डाल रहा है जैसे कि इनके बूते ही मनमोहन सिंह सरकार ने विश्वासमत हांसिल किया हो। अमरीकी परस्त ये पूंजीपति मेहनतकश मजदूरों की पूंजी से मोटा मुनाफा कमायेगें, लेकिन कम से कम कितना मुनाफा मजदूरों को देगें इस की कोई गारन्टी मजदूरों के शोषण में लिप्त इस अम्बानी ग्रुप ने आज तक नहीं दी है।
पीएफ न्यासी बोर्ड में जिस तरह अम्बानियों को कर्मचारी भविष्य निधी के प्रबन्धन का ठेका देने का फैंसला हुआ वह निहायत शर्मनाक है। अब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को चाहिये कि अपनी सरकार चलाने का ठेका भी अम्बानियों को देदे ताकि उनकी बाकी जिन्दगी चैन से बीते !
हीराचंद जैन
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