समस्या के समाधान का सर्वश्रेष्ठ उपाय यही है !समस्या की श्रृखला में एक नई समस्या जोड़ दो !जनता का ध्यान पुरानी समस्या से हटा उस ओर मोड दो !जो यथार्थ का प्रतिबिंब दे उस शीशे को फोड़ दो !आचार्य महाप्रज्ञ

कुछ सारहीन बेगारों को, श्रमदान नहीं कहते ! बंजर भूमि देने को, भूदान नहीं कहते ! कुछ जोड़-तोड़ करने को, निर्माण नहीं कहते ! उठ-उठ कर गिर पड़ने को, उत्थान नहीं कहते ! दो-चार कदम चलने को, अभियान नहीं कहते ! सागर में तिरते तिनके को, जलयान नहीं कहते ! हर पढ़-लिख जाने वाले को, विद्धान नहीं कहते ! एक नजर मिल जाने को, पहचान नहीं कहते ! चिकनी-चुपडी बातों को, गुणगान नहीं कहते ! मंदिर में हर पत्थर को, भगवान नहीं कहते। --मुनि तरूणसागर
समाज तो सामायिक है,क्षणभंगुर है !रोज बदलता रहता है,आज कुछ-कल कुछ !भीड भेड है!

सदगुरू, तुम्हें भीड से मुक्त कराता है !सदगुरू, तुम्हें समाज से पार लेजाता है !सदगुरु तुम्हें शाश्वत के साथ जोड़ता है !
--रजनीश

29/7/2008

चीनी के पीछे पड़े हैं बेशर्म सटौरिये !

एक सोची समझी साजिश और योजना के तहत अब सटौरिये चीनी के भावों को आसमान में ले जाने की जुगत बैठा रहे हैं। कमोडिटी बाजार में सटौरिये लगे हैं लिवाली (खरीद) में। जो लोग कमोडिटी एक्सचेंजों के हिमायती हैं अब समझलें कि चीनी के भावों में बढ़ोत्तरी के लिये सीधे-सीधे वायदा सौदे और वायदा बाजार ही जुम्मेदार हैं। जब सटौरिये दालों, गेहूं, खाद्य तेल के वायदा सौदों में आपरेट कर रहे थे, तब तो चीनी के भाव नहीं बढ़े। अब सारे सटौरिये घुस गये चीनी कारोबार में। इन बेशर्मो को शर्म नहीं आ रही चीनी के भाव बढ़ा कर उसे मंहगी करने में। लगता है, इन बेलगामों के घरों में उनके परिवार के बच्चों को चीनी की जरूरत नहीं है या ऐसा तो नहीं कि इन सटौरियों के घरों में, इनके परिवारों में मां-बहिन-बीबी-बच्चे ही न हों ? चीनी में सट्टा करनेवाले कारोबारियों को शर्म आनी चाहिये ! देखते हैं शर्म आती है या नहीं !
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