समस्या के समाधान का सर्वश्रेष्ठ उपाय यही है !समस्या की श्रृखला में एक नई समस्या जोड़ दो !जनता का ध्यान पुरानी समस्या से हटा उस ओर मोड दो !जो यथार्थ का प्रतिबिंब दे उस शीशे को फोड़ दो !आचार्य महाप्रज्ञ

कुछ सारहीन बेगारों को, श्रमदान नहीं कहते ! बंजर भूमि देने को, भूदान नहीं कहते ! कुछ जोड़-तोड़ करने को, निर्माण नहीं कहते ! उठ-उठ कर गिर पड़ने को, उत्थान नहीं कहते ! दो-चार कदम चलने को, अभियान नहीं कहते ! सागर में तिरते तिनके को, जलयान नहीं कहते ! हर पढ़-लिख जाने वाले को, विद्धान नहीं कहते ! एक नजर मिल जाने को, पहचान नहीं कहते ! चिकनी-चुपडी बातों को, गुणगान नहीं कहते ! मंदिर में हर पत्थर को, भगवान नहीं कहते। --मुनि तरूणसागर
समाज तो सामायिक है,क्षणभंगुर है !रोज बदलता रहता है,आज कुछ-कल कुछ !भीड भेड है!

सदगुरू, तुम्हें भीड से मुक्त कराता है !सदगुरू, तुम्हें समाज से पार लेजाता है !सदगुरु तुम्हें शाश्वत के साथ जोड़ता है !
--रजनीश

27/7/2008
हमारे राजनेताओं को शर्म कब आयेगी ?
जयपुर के बाद बेंगलूरू और अब अहमदाबाद में बम ब्लास्ट हो गये। देशद्रोही आतंकवादी अपनी नापाक करतूतों को अन्जाम देकर जुट जाते हैं अगली करतूत करने की तैयारी में ! हमारी सरकारों के पास ऐसी प्रिवेंन्टिव कार्ययोजना ही नहीं हैं, जिसके दबाव में आकर आतंकवादी अपने कारनामों को अंजाम ही नहीं देने पाये। बम ब्लास्टों के बाद भी सरकारी जांच ऐजेन्सियां आतंकवादियों की करतूतों का भण्डाफोड करने में नाकाम साबित हो रही है। केन्द्रीय और राज्य की जांच ऐजेन्सियों में कोई तालमेल नहीं है। अलबत्ता सिरफुट्टव्वल जरूर है। रिसर्च एण्ड एनालिसिस विंग (रा) नाकारा और निकम्मों का तमाशाई खजाना बन गया है। आईबी सिफारिशी और आराम तलब अफसरों की आरामगाह ! मिलिट्री इन्टेलीजैन्स शायद बैरकों में आराम फरमा रही है। राज्यों के खुफियातन्त्र को सरकार की खिलाफत करने वाले राजनेताओं की खुफियागिरी करने से ही फुरसत नहीं है। आम अवाम की हिफाजत के लिये काम करने की शायद इनकी कोई जुम्मेदारी ही नहीं बनती है ? वैसे भी राज्यों के खुफियातन्त्र में राजनेताओं के कोपभाजक बने पुलिस अधिकारी ही ज्यादा मिलेंगे। प्रशिक्षित और काम के प्रति वफादार अफसर कम ! अपनी गलतियों और कमियों को छुपाने के लिये राज्य सरकार और केन्द्र सरकार के मंत्री एक दूसरे पर छींटाकशी करने, बिना मतलब की तूतू-मैंमैं कर तमाश खडा करने में व्यस्त रहते हैं। निरीह इन्सान मर रहे हैं, लाखों-करोडों की सम्पत्ति नष्ट हो रही है। लेकिन किसी को कोई परवाह नहीं है। समझ में नहीं आता है कि हमारे राजनेताओं और हुक्कामों को अपनी गैर जुम्मेदारान हरकतों-करतूतों पर कब शर्म आयेगी। इन बेशर्मों को सबक लेना चाहिये अमरीका से, जहां मुसीबत आने पर पूरा देश एक जुट हो जाता है।
हीराचंद जैन