समस्या के समाधान का सर्वश्रेष्ठ उपाय यही है !समस्या की श्रृखला में एक नई समस्या जोड़ दो !जनता का ध्यान पुरानी समस्या से हटा उस ओर मोड दो !जो यथार्थ का प्रतिबिंब दे उस शीशे को फोड़ दो !आचार्य महाप्रज्ञ

कुछ सारहीन बेगारों को, श्रमदान नहीं कहते ! बंजर भूमि देने को, भूदान नहीं कहते ! कुछ जोड़-तोड़ करने को, निर्माण नहीं कहते ! उठ-उठ कर गिर पड़ने को, उत्थान नहीं कहते ! दो-चार कदम चलने को, अभियान नहीं कहते ! सागर में तिरते तिनके को, जलयान नहीं कहते ! हर पढ़-लिख जाने वाले को, विद्धान नहीं कहते ! एक नजर मिल जाने को, पहचान नहीं कहते ! चिकनी-चुपडी बातों को, गुणगान नहीं कहते ! मंदिर में हर पत्थर को, भगवान नहीं कहते। --मुनि तरूणसागर
समाज तो सामायिक है,क्षणभंगुर है !रोज बदलता रहता है,आज कुछ-कल कुछ !भीड भेड है!

सदगुरू, तुम्हें भीड से मुक्त कराता है !सदगुरू, तुम्हें समाज से पार लेजाता है !सदगुरु तुम्हें शाश्वत के साथ जोड़ता है !
--रजनीश

21/7/2008
परमाणु डील के पीछे क्या है ? डील के आगे क्या है ?
परमाणु डील की आड़ में भाजपा केन्द्र में सत्तारूढ़ होने के लिये लालायित है। ऐडीचोटी का जोर लगा रहे हैं, अडवानी प्रधानमंत्री बनने के लिये ! मायावती मनमोहन सिंह सरकार गिराने के लिये इसलिये तिलमिला रही हैं क्यों कि ऐसा करने से सीबीआई का शिकंजा उन पर से ढीला होगा। शिबू सोरेन को कोयला मंत्री की कुर्सी चाहिये ! मुलायम सिंह को यूपी का मुख्यमंत्री बनना है। अन्धे के हाथ बटेर लगी की लयताल में अजीत सिंह और एच. डी. देवेगौडा जो भी हाथ लगे, जहां से भी हाथ लगे, लपक ने में लगे हैं ! महान नेताओं की नजर में वामपंथी तो "बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना" सा लगते हैं। वामपंथियों ने परमाणु डील का जो गम्भीर मुददा उठाया है, उस मुददे पर हमारे कुर्सी चिपको नेताओं की कोई नजर नहीं है। कोई सोच नहीं है। समझ की तो बात ही छोड़ दें !
भारत की संसद में मनमोहन सिंह सरकार के विश्वास मत मुददे पर अमरीका के सारे राजनेताओं के मुंह सिले हैं और हाथों की उंगलियां एक दूजे में जकडी हैं। उन्हें डर है कि अगर मनमोहन सिंह सरकार लोकसभा में पराजित हो जाती है तो भारत द्वारा अगले 10 सालों में खरीदे जानेवाले परमाणु रिएक्टरों का, लगभग 100 बिलियन डालर का सौदा फ़्रान्स और रूस के पाले में चला जायेगा और अमरीका को इस मद में अगले 20 सालों में भारत से फूटी कौडी के भी आर्डर नहीं मिलेगें। भारत को अगले कुछ सालों में 125 लडाकू विमान खरीदने हैं और भारी मात्रा में अन्य रक्षा उपकरणों की खरीददारी भी होनी है। इस हेतु विश्व बाजार में इजराइल, रूस, फ़्रान्स सहित कुछ अन्य देश भी अमरीका के प्रतिद्वन्दी हैं। अमरीका हर हालत में भारत के रक्षा बाजार में अपना बडा हिस्सा और वर्चस्व चाहता है। अगर मनमोहन सिंह सरकार विश्वासमत जीत जाती है तो इनके अलावा अन्य मामलों में भी अमरीका को भारत से आर्थिक और राजनैतिक सम्बन्धों को मजबूत करने का मौका मिलेगा। लेकिन भारत और रूस के सम्बन्धों में दरार पड सकती है। चीन से प्रतिस्पर्धा हो सकती है। अमरीका भी यही चाहता है।
अमरीका के लिये मनमोहन सिंह का विश्वासमत जीतना इस लिये भी महत्वपूर्ण है कि इसका गम्भीर असर अमरीकी राष्ट्रपति चुनावों पर पडेगा। मनमोहन सिंह विश्वासमत जीतते हैं तो जार्ज बुश और रिपब्लिकन पार्टी को चुनावों में फायदा होना निश्चित है। ऐसी स्थिति में भारतीय अर्थव्यवस्था पर अमरीकी शिकंजा मजबूत होगा और भारत अमरीकी दबाव में आ जायेगा। अब कौन समझाये हमारे सत्तालोलुप महान राजनेताओं को, परमाणु डील के पीछे की साजिश भरी डील को ! क्योंकि वे तो सत्ता के मैदान में गुल्लीडण्डा खेलने में मशगूल हैं और लगे हैं अपनी डील तैय करने में !
हीराचंद जैन