समस्या के समाधान का सर्वश्रेष्ठ उपाय यही है !समस्या की श्रृखला में एक नई समस्या जोड़ दो !जनता का ध्यान पुरानी समस्या से हटा उस ओर मोड दो !जो यथार्थ का प्रतिबिंब दे उस शीशे को फोड़ दो !आचार्य महाप्रज्ञ

कुछ सारहीन बेगारों को, श्रमदान नहीं कहते ! बंजर भूमि देने को, भूदान नहीं कहते ! कुछ जोड़-तोड़ करने को, निर्माण नहीं कहते ! उठ-उठ कर गिर पड़ने को, उत्थान नहीं कहते ! दो-चार कदम चलने को, अभियान नहीं कहते ! सागर में तिरते तिनके को, जलयान नहीं कहते ! हर पढ़-लिख जाने वाले को, विद्धान नहीं कहते ! एक नजर मिल जाने को, पहचान नहीं कहते ! चिकनी-चुपडी बातों को, गुणगान नहीं कहते ! मंदिर में हर पत्थर को, भगवान नहीं कहते। --मुनि तरूणसागर
समाज तो सामायिक है,क्षणभंगुर है !रोज बदलता रहता है,आज कुछ-कल कुछ !भीड भेड है!

सदगुरू, तुम्हें भीड से मुक्त कराता है !सदगुरू, तुम्हें समाज से पार लेजाता है !सदगुरु तुम्हें शाश्वत के साथ जोड़ता है !
--रजनीश

20/7/2008
नक्सलवाद बनाम नस्लवाद
गत दिनों राष्ट्रीय स्वंयसेवक संद्य के अहमदाबाद में सम्पन्न राष्ट्रीय चिन्तन शिविर में नक्सलवाद और वामपंथ के खतरे से चिन्तित राष्ट्रीय स्वंयसेवक संद्य के शीर्ष नेताओं द्वारा इन से बौद्धिक स्तर पर निपटने की रणनीति तैयार की गई बतायी जाती है। जबकि देश को वास्तविक खतरा नस्लवादियों से है।
नस्लवादी देश में मुसलमानों को हिन्दुओं से, हिन्दुओं को ईसाइयों से, जैनों को हिन्दुओं से और हिन्दुओं को हिन्दुओं से लडा रहे हैं। जबकि वामपंथी, राष्ट्रवादी और नक्सलवादियों की अपनी अलग-अलग विचारधारा है और इन तीनों का ही नस्लवादियों से पंगा है।
अब राष्ट्रीय स्वंयसेवक संद्य के कर्णधार ही बता सकते हैं कि नस्लवादियों से संघर्ष जरूरी है या वामपंथियों और नक्सलवादियों से। क्या आरएसएस द्वारा नस्लवादियों को समर्थन देना, जरूरी है ? खुलासा करे आरएसएस !
हीराचंद जैन