समस्या के समाधान का सर्वश्रेष्ठ उपाय यही है !समस्या की श्रृखला में एक नई समस्या जोड़ दो !जनता का ध्यान पुरानी समस्या से हटा उस ओर मोड दो !जो यथार्थ का प्रतिबिंब दे उस शीशे को फोड़ दो !आचार्य महाप्रज्ञ

कुछ सारहीन बेगारों को, श्रमदान नहीं कहते ! बंजर भूमि देने को, भूदान नहीं कहते ! कुछ जोड़-तोड़ करने को, निर्माण नहीं कहते ! उठ-उठ कर गिर पड़ने को, उत्थान नहीं कहते ! दो-चार कदम चलने को, अभियान नहीं कहते ! सागर में तिरते तिनके को, जलयान नहीं कहते ! हर पढ़-लिख जाने वाले को, विद्धान नहीं कहते ! एक नजर मिल जाने को, पहचान नहीं कहते ! चिकनी-चुपडी बातों को, गुणगान नहीं कहते ! मंदिर में हर पत्थर को, भगवान नहीं कहते। --मुनि तरूणसागर
समाज तो सामायिक है,क्षणभंगुर है !रोज बदलता रहता है,आज कुछ-कल कुछ !भीड भेड है!

सदगुरू, तुम्हें भीड से मुक्त कराता है !सदगुरू, तुम्हें समाज से पार लेजाता है !सदगुरु तुम्हें शाश्वत के साथ जोड़ता है !
--रजनीश

फीस कमेटी ने छठे वेतन आयोग की फांस अटकाई स्कूल संचालकों के गले में

निजी स्कूलों में फीस बढ़ाने के मुद्दे पर आई फीस कमेटी की रिपोर्ट ने गैर सरकारी स्कूलों के मालिकों की नींद हराम कर दी है। कमेटी ने फीस बढ़ाने के लिये जो पैरामीटर्स बनाये हैं उसमें अहम है, छठे वेतन आयोग को लागू करने वाले स्कूलों को 15 प्रतिशत फीस बढ़ाने के प्रस्ताव। 15 प्रतिशत फीस तभी बढ़ाई जा सकेगी जब शिक्षण संस्था छठे वेतन आयोग का लाभ वास्तव में शिक्षकों को देंगे। हकीकत यह है कि राज्य में चलनेवाले गैर सरकारी मान्यता प्राप्त अथवा मान्यता एवं अनुदान प्राप्त शिक्षण संस्थाओं में से 86.5 प्रतिशत संस्थाओं के 79 प्रतिशत शिक्षकों को ये शिक्षण संस्थाऐं पूरा वेतन ही नहीं देती हैं। इन शिक्षण संस्थाओं में अधिकांश शिक्षकों को 1500 रूपये से 7 हजार रूपये के बीच कंसोलीडेटेड वेतन दिया जाता है। मंहगाई भत्ता, मकान किराया भत्ता, शहरी भत्ता तो इनके लिये सपना मात्र है। छठे वेतन आयोग की तो बात ही छोडिये, इन्हें आज तक बने पिछले पांच वेतन आयोगों के परिलाभ भी नहीं दिये गये हैं। इन शिक्षकों को किस ग्रेड में स्कूल में नियुक्ति दी गई है, खुद स्कूल के संचालकों को भी पता नहीं है। अधिकांश शिक्षकों को नियुक्ति पत्र ही नहीं दिये जाते हैं, उन्हें यह भी पता नहीं होता है कि वे स्कूल में कब से और किस पद पर नियुक्त है। कुछ स्कूलों में शिक्षकों को ग्रेड में नियुक्ति तो दे दी जाती है लेकिन उनसे बिना तारीख का त्यागपत्र एवं ब्लेंक बैंक चैकबुक स्कूल संचालक अपने पास रख लेते हैं एवं अपने हित के अनुसार उपयोग करते हैं। जयपुर शहर के लालकोठी स्कीम, टौंक फाटक, बरकत नगर, मालवीय नगर, बापूनगर, करतारपुरा, शहर की चार दिवारी में गणगौरी बाजार, जौंहरी बाजार, चार दरवाजा एवं शास्त्रीनगर, विद्याधर नगर सहित अन्य क्षेत्रों में जिला शिक्षा अधिकारी दफ्तरों में बैठे भ्रष्टाचारियों के सहयोग से शिक्षकों का शोषण बदस्तूर चालू है। स्कूलें इन्हें नियमानुसार पूरा वेतन नहीं देती हैं। क्योंकि स्कूल संचालकों को जिलास्तरीय कर्मचारियों के साथ-साथ शिक्षा निदेशालय में मान्यता एवं अनुदान शाखा में बैठे इनके आकाओं का वरदहस्त हैं, क्योंकि बंदरबांट ये आपस में मिल कर जो करते हैं। यही कारण है कि मान्यता एवं अनुदान प्राप्त स्कूलों के शिक्षकों को पीडी अकाउन्ट से भुगतान करने का मामला ठंडे बस्ते में दबा दिया गया है। कुछ सालों पूर्व तक सिंचाई विभाग एवं पुलिस महकमें को भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी के लिये अग्रणी माना जाता था, लेकिन अब शिक्षा विभाग इन विभागों को मात देकर इतना आगे निकल गया है कि ये विभाग शिक्षा विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार के आगे बौने हो गये हैं। अब फीस कमेटी ने छठे वेतन आयोग की फांस लगा कर इन स्कूलों के संचालकों के गले में घंटी अटका दी है। नतीजन स्कूल संचालक अदालत में जाने की बंदर घुडकियां दे कर धमका रहे हैं।