समस्या के समाधान का सर्वश्रेष्ठ उपाय यही है !समस्या की श्रृखला में एक नई समस्या जोड़ दो !जनता का ध्यान पुरानी समस्या से हटा उस ओर मोड दो !जो यथार्थ का प्रतिबिंब दे उस शीशे को फोड़ दो !आचार्य महाप्रज्ञ

कुछ सारहीन बेगारों को, श्रमदान नहीं कहते ! बंजर भूमि देने को, भूदान नहीं कहते ! कुछ जोड़-तोड़ करने को, निर्माण नहीं कहते ! उठ-उठ कर गिर पड़ने को, उत्थान नहीं कहते ! दो-चार कदम चलने को, अभियान नहीं कहते ! सागर में तिरते तिनके को, जलयान नहीं कहते ! हर पढ़-लिख जाने वाले को, विद्धान नहीं कहते ! एक नजर मिल जाने को, पहचान नहीं कहते ! चिकनी-चुपडी बातों को, गुणगान नहीं कहते ! मंदिर में हर पत्थर को, भगवान नहीं कहते। --मुनि तरूणसागर
समाज तो सामायिक है,क्षणभंगुर है !रोज बदलता रहता है,आज कुछ-कल कुछ !भीड भेड है!

सदगुरू, तुम्हें भीड से मुक्त कराता है !सदगुरू, तुम्हें समाज से पार लेजाता है !सदगुरु तुम्हें शाश्वत के साथ जोड़ता है !
--रजनीश

पिछलग्गूपन की आदत छोडो ! नेपाल से सबक लो वामपंथियों !

कुछ दिन पहिले तक कांग्रेस के पिछलग्गू बने वामपंथी अब चौथे मोर्चे के पिछलग्गू बनने की तैयारी कर रहे हैं। कालमार्क्स ने अपनी पूरी जिन्दगी गरीबी में बितायी। लेकिन वे किसी के पिछलग्गू नहीं बने। उन्होंने संघर्षपूर्ण यथार्थ की जिन्दगी जी। लेनिन, चेग्वारा, माओत्सेतुग, फिडेलकास्ट्रो सहित अन्य क्रान्तिकारी मार्क्स की पीड़ा को आम जनता की पीड़ा मान पूरी जिन्दगी, जनहित में संघर्ष करते रहे। वे संघर्षों में पलेबढे और संघर्षों में जिये। इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन अरब देशों में एक मात्र वामपंथी नेता थे, जिन्होंने अमरीका और अमरीकी पूंजीवाद से अपने बूतेपर संघर्ष किया और कुर्बानी दी।
भारत में वामपंथी दलों में से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और भारत की कम्युनिस्ट पार्टी "मार्क्सवादी" आज पूरी तरह कालमार्क्स, लेनिन और माओत्सेतुग के विचारों, सिद्धान्तों और उनकी शिक्षाओं से भटक चुके हैं। फारवर्ड ब्लाक नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा स्थापित एक राष्ट्रवादी क्रान्तिकारी पार्टी है, जिसका जन्म राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम के बीच हुआ। लेकिन इस पार्टी के नेता भी नेताजी के आदर्शों से भटक गये हैं। क्रान्तिकारी सोशलिस्ट पार्टी अब न तो क्रान्तिकारी है और न ही सोशलिस्ट ! ये पार्टियां बंगालवाद-क्षेत्रवाद में ऐसी जकड़ गई हैं कि आज जिनका अस्तित्व राष्ट्रीय स्तर का होना चाहिये था, वे अब क्षेत्र विशेष में सिमट कर रहगयी है। वामपंथी आज आम अवाम की आवाज बनने के बजाय अवसरवादी-साम्प्रदायिक-क्षेत्रवादी पार्टियों के पिछलग्गू बन उनकी जी हुजूरी में लगे, अपने आपको तुर्रमखान मान रहे हैं, जबकि ऐसा है नहीं। वामपंथी संघर्ष की अपनी धरोहर खो चुके हैं। आज आम वामपंथी कार्यकर्ता के दिल में एक टीस है कि 'आम अवाम के लिये संघर्षों में जीलूं ऐसा क्षण हमें मिला कहां ? वह इन्तजार कर रहा है उस क्षण का, जब उनके नेता अपने व्यक्तिगत हितों-स्वार्थों को त्याग कर जनता के लिये संघर्ष के अग्निपथ पर उसका नेतृत्व करेंगे।
भारत के वापंथियों को सबक लेना चाहिये क्यूबा की जनता से ! सबक लेना चाहिये नेपाल से ! जहां साधारण कार्यकर्ताओं ने जातिवाद-ऊँचनीच, छुआछूत, सामन्तवाद, पूंजीवाद के खिलाफ जमीनी संघर्ष किया। संघर्ष किया, उस राजा के खिलाफ जिसने हिन्दू राष्ट्र की आड़ में सत्ता प्राप्ति के लिये अपने ही भाई और उसके परिवार को खत्म कर दिया। जमीनी संघर्ष कर आज इन वामपंथियों ने नेपाल में गणतान्त्रिक लोकशाही कायम कर दी। लेकिन भारत में वामपंथी अपने मूल दायीत्वों को भूल गये हैं, भूल गये हैं मार्क्स को ! भूल गये हैं नेताजी सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, अशफाकुल्ला और उनके साथी क्रान्तिकारियों की कुर्बानी को !
अब भी वक्त है इन वामपंथी-जनवादी पार्टियों के नेताओं के पास, अपने आपको सुधारने का ! अपनी पार्टियों को जनसंघर्ष के लिये क्रियाशील करने का ! वह भी अपने बलबूते पर ! अन्यथा इन पिछलग्गुओं की आनेवाले समय में जनता ऐसी दुर्गति करेगी कि इतिहास में अपने आप में मिसाल होगी !
सम्पादकीय, ऑब्जेक्ट साप्ताहिक जयपुर, सोमवार 27 अप्रेल, 2009