समस्या के समाधान का सर्वश्रेष्ठ उपाय यही है !समस्या की श्रृखला में एक नई समस्या जोड़ दो !जनता का ध्यान पुरानी समस्या से हटा उस ओर मोड दो !जो यथार्थ का प्रतिबिंब दे उस शीशे को फोड़ दो !आचार्य महाप्रज्ञ

कुछ सारहीन बेगारों को, श्रमदान नहीं कहते ! बंजर भूमि देने को, भूदान नहीं कहते ! कुछ जोड़-तोड़ करने को, निर्माण नहीं कहते ! उठ-उठ कर गिर पड़ने को, उत्थान नहीं कहते ! दो-चार कदम चलने को, अभियान नहीं कहते ! सागर में तिरते तिनके को, जलयान नहीं कहते ! हर पढ़-लिख जाने वाले को, विद्धान नहीं कहते ! एक नजर मिल जाने को, पहचान नहीं कहते ! चिकनी-चुपडी बातों को, गुणगान नहीं कहते ! मंदिर में हर पत्थर को, भगवान नहीं कहते। --मुनि तरूणसागर
समाज तो सामायिक है,क्षणभंगुर है !रोज बदलता रहता है,आज कुछ-कल कुछ !भीड भेड है!

सदगुरू, तुम्हें भीड से मुक्त कराता है !सदगुरू, तुम्हें समाज से पार लेजाता है !सदगुरु तुम्हें शाश्वत के साथ जोड़ता है !
--रजनीश

मार्क्सवादियों की करतूतों की सजा भुगतेंगी सहयोगी पार्टियां !

सत्ता के लिये मार्क्सवादियों की बैसाखी पर टिकी जनवादी पार्टियों के सामने मार्क्सवादियों के बडबोलेपन के कारण अस्तित्व की लडाई लडने के अलावा कोई विकल्प कांग्रेस ने नहीं छोडा है। वामपंथी-जनवादी मोर्चे के घटक दलों माकपा, भाकपा, फारवर्ड ब्लाक एवं आरएसपी को उनके गढों, केरल, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में ही कारगर तरीके से घेरने की कांग्रेस की रणनीति ने इन पार्टियों की नींद उडा दी है। आज स्थिति यह बन गई है कि केरल की लोकसभा की 20 सीटों पर कांग्रेसी नेतृत्व वाले लोकतान्त्रिक मोर्चा से वामपंथी मोर्चे को सीधी टक्कर मिल रही है। भाकपा को सीधे-सीधे तीन सीटों का घाटा होने की स्थिति पैदा हो गई है। वहीं एक सीट पर माकपा ने अपना दावा ठोक रखा है। इसका सीधा-साधा अर्थ केरल से भाकपा, आरएसपी और फारवर्ड ब्लाक का सूपडा साफ ! मार्क्सवादियों को भी अपनी आपसी सिर फुटव्वल के चलते 6 सीटों का घाटा तैयशुदा है। त्रिपुरा में दो सीटों के लिये मार्क्सवादियों की सीधी टक्कर कांग्रेस से है। कांटे की लडाई करवट किस ओर लेगी, यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा। पश्चिम बंगाल में भी अब 42 सीटों पर वामपंथी-जनवादी मोर्चे की सीधी टक्कर कांग्रेस-तृणमूल कांग्रेस गठबन्धन से है। बारासात व जलपाईगुडी में फारवर्ड ब्लाक को तृणमूल से सीधे कांटे की टक्कर में अपने अस्तित्व को बचाने की लडाई लडनी है। वहीं अन्य 10 सीटें एलडीएफ के अन्य घटक दलों को कांग्रेस गठबंधन से सीधी टक्कर के चलते गंवानी पडेगी, यह अब लगभग तैय है ! वैसे नतीजे तो 16 मई, 2009 को ही सामने आयेंगे, लेकिन एक बात साफ है कि मार्क्सवादियों के बडबोलेपन एवं सहयोगियों के साथ दादागिरी का खमियाजा माकपा के साथ-साथ उसके छोटे सहयोगियों भाकपा, फारवर्ड ब्लाक को भी उठाना ही होगा ! परिस्थितियों की गम्भीरता के मद्देनजर वक्त रहते मार्क्सवादियों को अपनी नात्सीवादी अक्खड दादागिरी को तिलांजली देकर अपने सहयोगियों के साथ जनवादी तौर तरीके अपनाते हुये शालीनता से सच्चे सहयोगी का सहयोग-धर्म निभाना होगा।
बेलगाम टीम, 17 मार्च, 2009