समस्या के समाधान का सर्वश्रेष्ठ उपाय यही है !समस्या की श्रृखला में एक नई समस्या जोड़ दो !जनता का ध्यान पुरानी समस्या से हटा उस ओर मोड दो !जो यथार्थ का प्रतिबिंब दे उस शीशे को फोड़ दो !आचार्य महाप्रज्ञ

कुछ सारहीन बेगारों को, श्रमदान नहीं कहते ! बंजर भूमि देने को, भूदान नहीं कहते ! कुछ जोड़-तोड़ करने को, निर्माण नहीं कहते ! उठ-उठ कर गिर पड़ने को, उत्थान नहीं कहते ! दो-चार कदम चलने को, अभियान नहीं कहते ! सागर में तिरते तिनके को, जलयान नहीं कहते ! हर पढ़-लिख जाने वाले को, विद्धान नहीं कहते ! एक नजर मिल जाने को, पहचान नहीं कहते ! चिकनी-चुपडी बातों को, गुणगान नहीं कहते ! मंदिर में हर पत्थर को, भगवान नहीं कहते। --मुनि तरूणसागर
समाज तो सामायिक है,क्षणभंगुर है !रोज बदलता रहता है,आज कुछ-कल कुछ !भीड भेड है!

सदगुरू, तुम्हें भीड से मुक्त कराता है !सदगुरू, तुम्हें समाज से पार लेजाता है !सदगुरु तुम्हें शाश्वत के साथ जोड़ता है !
--रजनीश

23 सितम्बर, 2008

उडीसा-कर्नाटक में राष्ट्रपति शासन लगाओ !
बजरंगियों की लगाम कसो !

उडीसा और कर्नाटक में गरीब दलित ईसाईयों पर बजरंगियों द्वारा जो हमले किये जा रहे हैं वे तो निन्दनीय हैं ही ! लेकिन हिन्दुत्ववादी आरएसएस के इस उत्पाती अग्रिम संगठन पर उडीसा और कर्नाटक सरकार द्वारा नकेल नहीं लगाना भी गंभीर आपत्तिजनक है। उडीसा में विश्व हिन्दू परिषद् के एक स्थानीय कार्यकर्ता की माओवादी उग्रवादियों द्वारा की गई हत्या से उपजी यह साम्प्रदायिक हिंसा राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के असली चेहरे को बेनकाब करती है। ईसाई मिशनरी ग्राहम स्टेन्स को उनकी गाडी में बच्चों सहित जब बजरंगी दारासिंह एण्ड कम्पनी ने जिन्दा जला दिया था, तब तो हिंसा का ऐसा तांडव नहीं हुआ था, जो आज उडीसा और कर्नाटक में हो रहा है। तब तो आरएसएसपंथी बिलों में घुस गये थे। जबान तालू से चिपक गई थी। आज सत्ता में बैठ कर आंखें तरेर रहे हैं।
अब वक्त आ गया है ! केन्द्र सरकार को पहल कर विश्व हिन्दू परिषद् और बजरंग दल पर तत्काल प्रतिबन्ध लगाना चाहिये। साथ ही संविधान के अनुच्छेद 355 के तहत राज्य सरकारों को स्पष्ट चेतावनी देकर अनुच्छेद 356 के तहत इन राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाया जाये ताकि इन राज्यों में बजरंगी उग्रवादियों पर लगाम कसी जा सके !
हीराचंद जैन