सुनते हैं सब अमीर की .............

सभी मदद करते हैं धनी की, निर्धन की करता है कोई-कोई
अमीर की तो हर कोई सुनता, गरीब की सुनता है कोई-कोई !
अमीर की तो हर कोई सुनता, गरीब की सुनता है कोई-कोई !
वतन का खाते, वतन का पाते, वतन में सोते, वतन में रहते,
सब अपनी-अपनी है मौत मरते, वतन पे मरता है कोई-कोई !
उदर से माता के सब जनमते हैं हाथ-पांव सबके एक जैसे
कोई है राजा, कोई रंक है, पर ऋषि बनता है कोई-कोई !
उपदेश का नित है उपदेस करते, मनुस्मृति की बातें गढते
सभी हैं श्रोता जो ध्यान से सुनते, पर उन पे चलता है कोई-कोई !
हजारों मरघट में रोज जाते, जलाके प्राणी को घर में आते
वही है रिश्ते, वही है नाते, पापों से बचता है कोई-कोई !
प्रस्तोता- बेलगाम
