समस्या के समाधान का सर्वश्रेष्ठ उपाय यही है !समस्या की श्रृखला में एक नई समस्या जोड़ दो !जनता का ध्यान पुरानी समस्या से हटा उस ओर मोड दो !जो यथार्थ का प्रतिबिंब दे उस शीशे को फोड़ दो !आचार्य महाप्रज्ञ

कुछ सारहीन बेगारों को, श्रमदान नहीं कहते ! बंजर भूमि देने को, भूदान नहीं कहते ! कुछ जोड़-तोड़ करने को, निर्माण नहीं कहते ! उठ-उठ कर गिर पड़ने को, उत्थान नहीं कहते ! दो-चार कदम चलने को, अभियान नहीं कहते ! सागर में तिरते तिनके को, जलयान नहीं कहते ! हर पढ़-लिख जाने वाले को, विद्धान नहीं कहते ! एक नजर मिल जाने को, पहचान नहीं कहते ! चिकनी-चुपडी बातों को, गुणगान नहीं कहते ! मंदिर में हर पत्थर को, भगवान नहीं कहते। --मुनि तरूणसागर
समाज तो सामायिक है,क्षणभंगुर है !रोज बदलता रहता है,आज कुछ-कल कुछ !भीड भेड है!

सदगुरू, तुम्हें भीड से मुक्त कराता है !सदगुरू, तुम्हें समाज से पार लेजाता है !सदगुरु तुम्हें शाश्वत के साथ जोड़ता है !
--रजनीश

14/8/2008

ये आजादी झूंटी है - देश की जनता दु:खी है !

भारत में हम आजाद है ! हिन्दुत्व का झण्डा बुलन्द करने के लिये चक्का जाम लगाने को, चाहे निरीह बीमार-मरीज मर जायें। हम आजाद हैं पंथों की लडाई सडकों पर लडने के लिये ! चाहे जानमाल का कितना भी नुकसान हो जाये ! हम आजाद हैं, सत्ता में बैठ कर भारत के संविधान की धज्जियां उडाने के लिये ! हम आजाद हैं, सत्ताधीशों की रहनुमाई में जमाखोरी-काला बाजारी करने के लिये ! सन्यास लेने के बाद भी, धर्म के नाम पर चन्दा-चिट्ठा इकट्ठा करने, संस्थाओं, सोसायटियों की आड में बडे-बडे मठ बनाने-सम्पत्ति अर्जित करने और गरीबों का शोषण करने के लिये भी हम आजाद हैं ! धर्म के नाम पर साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड ने की तो हमें पुख्ता आजादी है। सत्ता प्राप्ति के लिये जो भी कु-कर्म किये जा सकते हैं, करने की आजादी है ! गरीबों का शोषण, महिलाओं, बच्चों, आदिवासी तबके पर अत्याचार करने की भी हमें खुली आजादी है। क्योंकि हम इण्डियन्स हैं वो सम्पन्न 5 प्रतिशत लोग, जो भारत के 95 प्रतिशत लोगों को अपना गुलाम बनाकर रखना चाहते हैं ! सच्चाई भी यही है कि 5 प्रतिशत इण्डियन्स ने 95 प्रतिशत भारतीयों को गुलाम बना कर रखा है। दु:खी हैं 95 प्रतिशत जनता इनसे ! यही है "इण्डिया दैट इज भारत" की असली व्यथा-कथा ! देश में अराजकता फैला कर देश की सत्ता अपने कब्जे में रखने वाले इन 5 प्रतिशत लोगों का जब तक सूपडा साफ नहीं होगा, हमारी ये आजादी झूंटी है। वक्त आगया है, शुरू करो इन बेलगामों पर चोट करना ! कहीं से भी ! कभी भी ! कहीं भी ! तभी मिलेगी भारत को सच्ची आजादी !
हीराचंद जैन
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