समस्या के समाधान का सर्वश्रेष्ठ उपाय यही है !समस्या की श्रृखला में एक नई समस्या जोड़ दो !जनता का ध्यान पुरानी समस्या से हटा उस ओर मोड दो !जो यथार्थ का प्रतिबिंब दे उस शीशे को फोड़ दो !आचार्य महाप्रज्ञ

कुछ सारहीन बेगारों को, श्रमदान नहीं कहते ! बंजर भूमि देने को, भूदान नहीं कहते ! कुछ जोड़-तोड़ करने को, निर्माण नहीं कहते ! उठ-उठ कर गिर पड़ने को, उत्थान नहीं कहते ! दो-चार कदम चलने को, अभियान नहीं कहते ! सागर में तिरते तिनके को, जलयान नहीं कहते ! हर पढ़-लिख जाने वाले को, विद्धान नहीं कहते ! एक नजर मिल जाने को, पहचान नहीं कहते ! चिकनी-चुपडी बातों को, गुणगान नहीं कहते ! मंदिर में हर पत्थर को, भगवान नहीं कहते। --मुनि तरूणसागर
समाज तो सामायिक है,क्षणभंगुर है !रोज बदलता रहता है,आज कुछ-कल कुछ !भीड भेड है!

सदगुरू, तुम्हें भीड से मुक्त कराता है !सदगुरू, तुम्हें समाज से पार लेजाता है !सदगुरु तुम्हें शाश्वत के साथ जोड़ता है !
--रजनीश

वरूण गांधी को आतंकियों से खतरा !

अचानक आईबी ने सूचना दी है कि वरूण गांधी को आतंकवादियों से खतरा है। आईबी को यह जानकारी गत मार्च महिने के दूसरे व तीसरे सप्ताह के बीच मिली बताई जाती है। वरूण गांधी के पीछे आतंकवादी आखीर क्यों और किसलिये पड गये ? यह हमारी समझ के परे है। देश में 7 हजार से ज्यादा वीवीआईपी हैं, जो आतंकवादियों से जान के खतरे की आड में संगीनों के साये में चलना पसंद करते हैं। क्योंकि इससे उनके रूतबे का कद बढता है। जबकि इनमें से अधिकांश को आतंकवादियों ने छूआ तक भी नहीं है। दर असल इस देश का हर एक नेता अपना रूतबा बढाने के लिये संगीनों का साया आतंकवाद की आड लेकर ही तो प्राप्त करता है। देश का अवाम पिछले दो दशकों से उस आतंकवाद से पीडित है, जो हमारे देश के ही कुछ नेता, धर्म, सम्प्रदाय, जातिवाद, जातिवादी आरक्षण जैसे मुद्दों को गुब्बारों की तरह फुलाकर पैदा कर रहे हैं और फैला रहे हैं। कही सीधेसाधे आदिवासियों से ईसाइयों को लडवाया जा रहा है, तो कहीं हिन्दुओं को जैनियों से, मुसलमानों को हिन्दुओं से और कहीं-कहीं हिन्दुओं को हिन्दुओं से भी लडवाया जा रहा है ! वरूण गांधी ने अपनी चुनावी सभा में जो कुछ कहा उसका जवाब तो उन्हें और उनकी पार्टी व पार्टी के सहयोगी संगठनों को भारत गणतन्त्र की सवा सौ करोड जनता वखूबी देना जानती है और देगी। विदेशी तत्वों को इसमें कोई रूचि नहीं होनी चाहिये। अब चूंकि वरूण गांधी के किये धरे का जवाब उन्हें मिलने लगा है और भाजपा और आरएसएस को लगने लगा है कि वरूण गांधी कार्ड उन्हें भारी पडेगा, तो विदेशी आतंकवादियों को बीच में टपका दिया। हमारा, हमारे देश में कर्णधार नेताओं से जो कि धनबल, भुजबल, धर्मान्धता, क्षेत्रवाद, जातिवाद, साम्प्रदायिक उन्माद, आरक्षण की बिनापैंदे की नाव पर सवार होकर आगामी 15 वीं लोकसभा चुनावों में खम ठोक रहे हैं, यही कहना है कि वे खुद आतंकवाद की इस नैया पर सवारी बन्द करें। विदेशी आतंकवाद से देश की जनता निपटना जानती है और निपट लेगी। हमारे युवा बबुआ वरूण गांधी को भी समझाओ कि वे अपने दादा स्वर्गीय फिरोज गांधी के साथ जुडे "गांधी" शब्द के महत्व को समझें और मोहनदास कर्मचंद गांधी के विचारों-आदर्शों को सीखें, अपनायें !
सम्पादकीय, ऑब्जेक्ट साप्ताहिक जयपुर, सोमवार 13 अप्रेल, 2009