फौज के साथ नाइन्साफी क्यों ?
फौज में भर्ती होने के लिये शिक्षित नौजवानों की देश में वैसे ही कमी है और केन्द्र सरकार ने छठे वेतन आयोग की सेना से सम्बन्धित सिफारिशों को व्यवहारिक रूप से समझे बिना लागू कर सेना में अनावश्यक असंतोष पैदा करने का अत्यन्त गैर जुम्मेदारान कृत्य किया है। सेना के अफसरों को पुलिस अफसरों से कम वेतन देना और पुलिस के मुकाबले सैन्य अधिकारियों को प्रोटोकाल श्रेणियों में नहीं रखना भी पूरी तरह गैर जुम्मेदारान कृत्य है। राष्ट्रीय अखण्डता को अक्षुण्ण बनाये रखने में सेना की ही प्रमुख भूमिका होती है। आज भी जब सिविल पुलिस प्रशासन अपने दायित्व को पूरा करने में अक्षम एवं विफल होता है तो सेना ही "इन एड टू सिविल पावर" के तहत उसे सक्षम बनाने एवं मदद के लिये पहुंचती है। देश की सीमाओं की रक्षा का दायीत्व तो सिर्फ सेना को ही दिया गया है। ऐसी स्थिति में सेना के रोल को कम आंकना और सिविल अधिकारियों से उन्हें कम महत्व देना उचित नहीं है। इससे सेना के प्रति योग्य युवाओं में रूचि में कमी को बढावा मिलेगा। वैसे भी योग्य व उच्च शिक्षित युवक सेना से किनारा करते जा रहे हैं। नतीजन सेना में योग्य एवं उच्च शिक्षित अधिकारियों की निरन्तर कमी होती जा रही है और जो अधिकारी अभी हैं वे भी सेना से इस्तीफा देकर अलविदा कह रहे हैं। यह स्थिति अत्यन्त गम्भीर है और सरकार को इस पर गम्भीरता से मंथन कर उचित निर्णय लेना चाहिये।
बेलगाम टीम
